ये लड़ाई तो लंबी चलेगी

0
238

संसद से पास विवादित कृषि विधेयकों को अदालत में चुनौती मिलेगी। विपक्षी पार्टियां इसकी तैयारी कर रही हैं कि राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने और अधिसूचना जारी होने के बाद इनको अदालत में चुनौती दी जाएगी। हालांकि अदालत में या होगा यह नहीं कहा जा सकता है पर विपक्ष इसको आसानी से कानून नहीं बनने देगा। विपक्षी पार्टियों की योजना इस पर अदालत से रोक लगवाने की है। इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि विपक्षी पार्टियां दो कृषि विधेयकों के राज्यसभा से पास होने के तरीके को भी चुनौती देगी। वैसे संसद की कार्रवाई को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है और इस मामले में संसद का अधिकार अंतिम होता है। परंतु रविवार को जैसे ही राज्यसभा से दोनों कृषि विधेयक पास हुए वैसे ही सुप्रीम कोर्ट के जाने माने वकील प्रशांत भूषण ने ट्विट करके विपक्षी पार्टियों को सलाह दी कि वे संसद के उच्च सदन की कार्रवाई को अदालत में चुनौती दें। अगर ऐसा होता है तो इससे एक नई संसदीय बहस शुरू होगी। आमतौर पर संसद के अंदर की किसी भी गतिविधि को अदालत में चुनौती नहीं दी जाती है।

पर हो सकता है कि विवाद बढ़ाने के लिए विपक्षी पार्टियां इसे भी सुप्रीम कोर्ट में लेकर जाएं। यह भी कहा जा रहा है कि विपक्षी पार्टियों के अलावा किसान संगठन भी इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। इसके अलावा जमीनी आंदोलन चलता रहेगा। कांग्रेस के एक जानकार नेता का कहना है कि यह बहुत भावनात्मक मुद्दा है और इस पर देश भर के किसानों को आंदोलित किया जा सकता है। जैसे भूमि अधिग्रहण बिल पर कांग्रेस ने सरकार को झुकने के लिए मजबूर किया था उसी तरह इस बिल पर भी तैयारी हो रही है। राहुल गांधी के अमेरिका से लौटने के बाद कांग्रेस के आंदोलन की रूप-रेखा बनेगी। कांग्रेस के लिए अच्छी बात यह है कि दिल्ली से सटे जिन तीन राज्यों- पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में यह आंदोलन हो रहा है वहां कांग्रेस मजबूत है। दो राज्यों में उसकी सरकार है और हरियाणा में वह एक मजबूत विपक्षी पार्टी है। इतना ही नहीं बीजू जनता दल और तेलंगाना राष्ट्र समिति ने विवादित कृषि विधेयकों पर सबको हैरानी में डाल दिया। राज्यसभा में कृषि विधेयक पेश किए जाने से पहले कहा जा रहा था कि ये दोनों पार्टियां सरकार का साथ देंगी।

इससे पहले लगभग हर मसले पर कम से कम बीजू जनता दल ने सरकार को समर्थन दिया था। आंध्र प्रदेश में सत्तरूढ़ वाईएसआर कांग्रेस के बारे में भी तय माना जा रहा था कि ये सरकार के साथ रहेंगे। असल में इन दोनों राज्यों में खेती करने वाला समुदाय मजबूत है और तेलंगाना सरकार ने तो किसानों के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं शुरू की हैं। किसानों को नकद पैसा देने की केंद्र सरकार की योजना तेलंगाना सरकार की योजना पर ही आधारित है। इसलिए दोनों ने कृषि विधेयकों पर सरकार का साथ नहीं देने का फैसला किया। यह भी कहा जा रहा है कि सरकार को इन दोनों पार्टियों की राय का पहले पता चल गया था और इसलिए भी सरकार ने दोनों विधेयकों पर वोटिंग नहीं कराने का फैसला किया। हालांकि भाजपा के संसदीय प्रबंधकों का कहना है कि कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस सहित कई विपक्षी पार्टियों के बड़ी संख्या में सांसद सदन में मौजूद नहीं थे इसलिए वोटिंग होती तब भी सरकार जीतती। इसके बावजूद वोटिंग नहीं कराना समझ में नहीं आता है। तभी माना जा रहा है कि टीआरएस और बीजद के इनकार ने सरकार को वोटिंग से बचने के लिए मजबूर किया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here