एक तरफ संसद में रक्षा मंत्री और गृहराज्य मंत्री के बयान और दूसरी तरफ चीनी विदेश मंत्रालय का बयान, इन सबको एक साथ रखकर आप पढ़ें तो आपको पल्ले ही नहीं पड़ेगा कि गलवान घाटी में हुआ क्या था ? भारत और चीन के फौजी आपस में भिड़े क्यों थे ? हमारे 20 जवानों का बलिदान क्यों हुआ है ? हमारे फौजी अफसर चीनी अफसरों से दस-दस घंटे क्या बात कर रहे हैं ? हमारे और चीन के विदेश और रक्षा मंत्री आपस में किन मुद्दों पर बात करते रहे हैं ? उनके बीच जिन पांच मुद्दों पर सहमति हुई है, वे वाकई कोई मुद्दे हैं या कोई टालू मिक्सचर है ? गृहराज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बुधवार को राज्यसभा में कह दिया कि पिछले छह माह में चीन ने भारतीय सीमा में कोई घुसपैठ नहीं की है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस कथन पर दुबारा मुहर लगा दी कि चीन ने भारत की किसी चौकी पर कब्जा नहीं किया है और वह भारत की सीमा में बिल्कुल नहीं घुसा है।
जब मैंने नरेंद्र भाई के राष्ट्रीय संबोधन में इस आशय की बात सुनी तो मुझे बहुत धक्का लगा और मैं सोचने लगा कि चीन के इस अचानक हमले ने उन्हें इतना विचलित कर दिया कि यह बात उनके मुंह से अनचाहे ही निकल गई लेकिन मुझे तब और भी आश्चर्य हुआ, जब वे लद्दाख जाकर टीवी चैनलों पर बोले और उन्होंने चीन का नाम तक नहीं लिया। अब भी संसद के दोनों सदनों में सिर्फ रक्षामंत्री बोले। प्रधानमंत्री क्यों नहीं बोले ? वे गैर-हाजिर ही रहे। उनका डर स्वाभाविक था कि चीन के नाम पर उनकी चुप्पी के कारण विपक्ष उन पर हमला बोलेगा। रक्षामंत्री राजनाथसिंह ने अपने मर्यादित लहजे में सारी कहानी कह दी। वह लहजा इतना संयत रहा कि उससे न तो चीन भड़क सकता था और न ही चीन के खिलाफ भारत की जनता! सच्चाई तो यह है कि गलवान घाटी में हमारे सैनिकों के बलिदान पर संसद का खून खौल जाना चाहिए था लेकिन हमारा विपक्ष कितना निस्तेज, निष्प्रभ और निकम्मा है कि उसकी बोलती ही बंद रही।
इस संकट के वक्त वह सरकार का साथ दे, यह बहुत अच्छी बात है लेकिन वह सच्चाई का पता क्यों नहीं लगाए कि गलवान घाटी में गलती किसने की है ? हमारे जवानों के बलिदान के लिए जिम्मेदार कौन है ? उधर चीनी विदेश मंत्रालय ने भारत सरकार के सभी तेवरों और दावों पर पानी फेर दिया है। उसका कहना है कि चीन ने कहीं कोई घुसपैठ नहीं की है। गलवान घाटी में जो मुठभेड़ हुई है, वह चीन की जमीन पर हुई है। भारत ने 1993 और 1996 में हुए सीमा पर शांति संबंधी जो समझौते हुए थे, उनका उल्लंघन किया है। भारत ही घुसपैठिया है। भारत पीछे हटे, यह जरुरी है। राहुल गांधी ने पूछा है कि मोदी किसके साथ है ? भारतीय सेना के साथ है या चीन के साथ ? सरकार के इस अटपटे रवैए पर राहुल का यह सवाल थोड़ा फूहड़ है लेकिन सटीक है लेकिन राहुल का वज़न इतना हल्का हो चुका है कि ऐसी बात भी हवा में उड़ जाती है।