दुनिया में माता पिता से बड़ा कोई भगवान नहीं

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दुनिया में माता-पिता का भार सात जन्मों तक कोई भी संतान नहीं उतार सकती क्योंकि माता-पिता तो दुनिया के सबसे बड़े भगवान हैं। फिर भी हमारी पीढ़ी यह समझने में भूल कर रही है। तभी तो आज के समय में जो परिवार अपने आपको संपन्न मानते हैं ऐसे परिवारों में हमारे बुजूर्गों को पूरा सम्मान नहीं मिल रहा है जिस कारण आज वे आश्रमों में शरण लेने को मजबूर हैं। ऐसा तब हो रहा है जब हम सब काफी शिक्षित हो गये हैं। अरे, ऐसी शिक्षा का क्या फायदा जो अपने बूढ़े माता-पिता को धिक्कार दे ऐसे समाज का क्या फायदा जहां उन बुजूर्ग माता-पिता को अनदेखा कर दिया जाये जिन्होंने अपने परिवार को पालने के लिये दिन-रात एक कर दिये। कमोबेश कैसा समय आ गया है।

जरा सोचिये! क्या गुजरेगी एक मॉं-बाप पर जब उनके साथ ऐसा व्यवहार होगा। क्या आप सब जानते हैं कि जैसा बोओगे, वैसा काटोगो। फिर आप का शिक्षित होने का क्या फायदा वैसे भी वो ही दिन अच्छे थे जब धरती पर श्रवण कुमार जैसे पुत्र जन्म लेते थे या फिर कह सकते हैं वह समय वास्तव में बहुत अच्छा रहा होगा। हम सब यह बात अच्छी तरह समझ सकते हैं कि हम उस पश्चिमी देशों की श्रेणी में पहुंचने की होड़ में रत हैं परंतु उस होड़ के पीछे हमारी सभ्यता, संस्कृति और समाज, तथा आप सबका परिवार भी जुड़ा होता है। हम पश्चिमी देशों की सभ्यता से जुड़ते तो जा रहे हैं परंतु बहुत नासमझी कर रहे हैं उस होड़ में हमारे परिवार बढ़ तो रहे हैं परंतु जिसको हमें वहन करना चाहिए उस बात को हम वहन नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि वहां का जनमानस अपने आपको बिल्कुल बेकार नहीं छोड़ता यानि की वह अपने समय का सदुपयोग करता है क्योंकि वहां का एक तांगा चालक भी खाली समय में समाचार पत्र पढ़ता है और तो और वहां की फिल्मी दुनिया भी अपने देश में ऐसे फिल्म परोसते हैं जिनसे उनकी आने वाली जनरेशन का भी विकास और वह सारे संसार में राज केरें ठीक इसके उल्टे हमारे देश में हो रहा है। यहां तो सिर्फ एक ही बात दिखाते हैं वह किसी से छिपी नहीं है। इसके पीछे ही हमारे नौजवान भटक रहे हैं। तभी इसका खामियाजा हमारे परिवार को बुजूर्गों को झेलना पड़ रहा है। जरा सोचिये जिस मॉं-बाप ने अपने बच्चों के लिये कड़ी मेहनत करके पढ़ाया-लिखाया और उसे उसका काबिल बना दिया जिसकी कल्पना भी कर पाना कठिन है। फिर ऐसे बच्चे अपने माता-पिता को आश्रमों में रहने के लिये मजबूर कर देते हैं। हम सबको आजकल समाचार पत्रों में या टीवी चैनलों पर यह बात देखने को मिल जाती ही हैं। इन खबरों को पढ़कर या देखकर बहुत दुख होता है।

एक बात यह भी है कि हमारे बुजूर्ग साठ-सत्तर साल के भी नहीं थकते क्योंकि एक पोता अपने दादा से अपने बचपन में सैंकड़ों बार यह पूछता है कि दादा जी, दादा जी यह क्या है, दादा जी बड़े मुस्कराते हुए उसको उसका उत्तर देते हैं कि यह कौआ है और ठीक उसका उल्टा होता है जब एक बुजूर्ग व्यक्ति जब अधिक बूढ़ा हो जाता है जब उसके बस की चलना-फिरना या खाना-पीना भी नहीं रहता तब वह पीड़ा से अपने उसी पोते से पानी या अन्य कोई चीज मांगता है तो वह पोत्र यह कहते हुए नहीं थकते कि इस बूढ़े ने तो हमारा जीना दुश्वार कर रखा है। क्या उसे यह नहीं मालूम की कुछ सालों बाद उसका भी यही हाल हो सकता है जो आज उसके दादा जी का है। क्योंकि बचपन, जवानी और बुढ़ापा सदैव नहीं रहते यह प्रकृति के साथ चलते हैं।

अब विश्वास की बात देखिये कि जिन मॉं-बाप ने हमें जन्म दिया, हमारी परवरिश की तथा हमें पढ़ा-लिखा कर हमें कामयाब इंसान बना दिया हम उन्हीं मॉ-बाप को अकेले मरने के लिये छोड़ देते हैं। आज जिस परिवार में माता-पिता का सम्मान होता हो उनकी पूजा होती हो वही परिवार इस धरती पर स्वर्ग हैं क्योंकि हमारे देश में छत्तीस करोड़ा देवता बताये गये हैं और एक आदमी की उम्र होती है साठ-सत्तर साल यदि वह आदमी एक दिन कम से कम पचास देवताओं की पूजा केरेगा या अराधना केरेगा फिर भी आपका जीवन कम पड़ जायेगा। जिसे हमने देखा ही नहीं हम उससे तो डरते हैं परंतु जो साक्षात हमारे सामने हम उनसे नहीं डरते क्योंकि वे आपके माता-पिता हैं। जरा सोचि एक बंदरिया अपने बच्चे को जब तक नहीं छोड़ती तब तक वह छ: महीने का न हो जाये और वो भी यदि मर जाये तब भी अपने बच्चे को नहीं छोड़ती। अब आप जरा सोच सकते हैं जब जानवर इतने समझदार हैं और उन्हें अपने बच्चों से इतना लगाव है तो फिर आपको यह नहीं मालूम कि हमारे माता-पिता को आपसे कितना लगाव होगा।

फिर भी हम सब अपने बूढ़े माता-पिता को आश्रय देने के बजाये उन्हें शरणालयों में भेज देते हैं। क्या आपको इस बात का जरा सा भी ख्याल नहीं आता क्योंकि आप जो कर रहे हैं वैसा ही आपके साथ आपकी आने वाली संतान केरेगी फिर आप कोर्ट, कचहरी या पाखंडी लोगों की शरण में जाते हैं। इससे तो अच्छा है कि हम सब पश्चिमी सभ्यता को छोड़ें। क्योंकि इसी धरती पर इसी जन्म में स्वर्ग-नरक है। क्योंकि आरमी साथ बुराई और अच्छाई साथ चलती है जिस प्रकार से आदमी के पीछे परछाई चलती है। हमारे देश में इसके लिये भी कानूनी प्रावधान हैं। परंतु एक माता-पिता अपनी लोक-लज्जा के इतना दुख सहते हुए भी यानी मरते दम तक भी अपने बच्चों का ही साथ देते हैं। क्योंकि हमारे देश की संस्कृति है ही ऐसी। वह अपने बच्चों को किसी भी हालत में दुखी होना चाहते।

लेखक
सुदेश वर्मा

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