देश में कोरोना महामारी का कहर रोज ज्यादा गंभीर होता जा रहा है। और इसके साथ ही बढ़ती जा रही है आर्थिक महामारी। कोरोना वायरस के फैलते संक्रमण और मौतों की बढ़ती संया के बीच सामान्य ढंग से आर्थिक गतिविधियां शुरू होने की संभावना लगातार दूर होती जा रही है। लॉकडाउन जो हालात सामने हैं, उससे साफ है कि सत लॉकडाउन लागू करके महामारी को कंट्रोल कर लेने की भारत सरकार की रणनीति पूरी तरह नाकाम रही। यही बात अब ग्लोबल फोरकास्टिंग फर्मयानी आर्थिक भविष्य का अनुमान लगाने वाली एजेंसी ऑसफॉर्ड इकॉनमिस ने कही है। इस एजेंसी ने लॉकडाउन के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था को दोबारा खोलने के अब तक के अनुभव को लेकर एक रिपोर्ट निकाली है। रिपोर्ट इंडिया-एरिओपेनिंग गॉन वॉन्र्ग नाम से ये रिपोर्ट निकाली है। इसमें कहा गया है कि अर्थव्यवस्था को दोबारा चालू करने की भारत की सरकार की कोशिश गतिरुद्ध हो चुकी है। इसलिए हालत सुधरने में उससे ज्यादा वत लगेगा, जितनी पहले अपेक्षा की गई थी। ऑसफॉर्ड इकॉनमिस का अनुमान है कि इस वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर में और गिरावट आएगी।
ये रिपोर्ट आने के बाद भारत और एशिया मामलों की इस संस्था की प्रमुख अर्थशास्त्री प्रियंका किशोर का इंटरव्यू एक वेबसाइट पर छपा। उसमें उन्होंने दो टूक कहा कि भारत में आई मौजूदा आर्थिक तबाही जिस ढंग से सत लॉकडाउन लागू किया गया, उसका परिणाम है। प्रियंका किशोर की राय है कि सरकार ने अगर इतना सत लॉकडाउन लागू किया, तो उसे आम लोगों और उद्योग जगत को वित्तीय मदद देने की तैयारी रखनी चाहिए थी। लेकिन उसने पैकेज के रूप में मोटे तौर पर आसानी से कर्ज उपलब्ध कराने के ऐलान किए, जिससे फौरी राहत की जरूरत पूरी नहीं हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस वक्त महामारी आई, उसके पहले ही भारत की अर्थव्यवस्था संकट में घिर चुकी थी। उस वत भारतीय अर्थव्यवस्था बैलेंस शीट से जुड़े मुद्दों से जूझ रही थी। बाजार में मांग घटी हुई थी। लॉकडाउन ने तो कमर ही तोड़ दी। इस वक्त ये चर्चा जोरों पर है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में तेजी है और यह भारत की माली हालत को सुधार लेगी। लेकिन अन्य कई अर्थशास्त्रियों की तरह प्रियंका किशोर भी इससे सहमत नहीं हैं। उन्होंने ध्यान दिलाया है कि भारत के जीडीपी में खेती और मछलीपालन जैसे धंधों का योगदान बहुत कम है। 50 से 55 फीसदी योगदान सेवा क्षेत्र का है। 15 से 16 प्रतिशत योगदान मैनुफैचरिंग का है।
ये क्षेत्र शहर केंद्रित हैं। तो फिर ग्रामीण अर्थव्यवस्था कितना सहारा दे पाएगी? कोरोना कब जाएगा ये तो किसी को पता नहीं लेकिन सारा संसार झगड़ अलग से रहा है ये भी इकोनोमी के लिए शुभ संकेत नहीं। रूस की कोरोना वैसीन को लेकर अंतरराष्ट्रीय संदेहों का दौर थमता नजर नहीं आता। ऐसे में बेहतर होता, रूस पूरी सूचनाएं जारी कर देता। लेकिन ऐसा ना कर वह संदेहों को जारी रखने का आधार प्रदान कर रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन, अमेरिका,फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी और कनाडा मेडिकल कारणों का हवाला देकर रूसी वैसीन का विरोध कर रहे हैं। लेकिन कुछ जानकारों का कहना है कि विरोध सिर्फ मेडिकल कारणों के हवाले से ही नहीं है। दुनिया भर में करीब आठ लाख लोगों की जानें ले चुकी ये महामारी बड़ा बाजार भी है। हर देश वैसीन बनाने में जुटा हुआ है। जिसकी वैसीन सबसे भरोसेमंद होगी और समय पर आएगी, उसे भारी मुनाफा भी होगा। मुमकिन है यह पहलू भी रूसी वैसीन के विरोध का एक प्रमुख कारण हो। अमेरिकी मीडिया के मुताबिक अगर रूसी वैसीन सफल हुई, तो ये रूस के भूराजनैतिक दबदबे को मजबूत करेगी। शीत युद्ध के सोवियत संघ दुनिया के कई देशों को सस्ती दवाएं निर्यात किया करता था। फिलहाल के माहौल में किसी तरह पहले आने की होड़ नहीं होनी चाहिए। यहां बात एक सुरक्षित टीके की है। रूस के आलोचकों के मुताबिक लाखों लोगों को बहुत जल्द टीका लगाना खतरनाक भी हो सकता है, योंकि अगर ये गलत साबित हुआ तो लोगों का टीकाकरण से भरोसा उठ जाएगा।