जेपी एक बार गंभीर रूप से बीमार हो गए और उनका इलाज मुंबई के जसलोक अस्पताल में चल रहा था। तब मैं धर्मयुग पत्रिका में पत्रकार के रूप काम करता था। तत्कालीन संपादक धर्मवीर भारती ने मुझे और अनुराग चतुर्वेंदी को अस्पताल के आसपास लगातार नजर रखने की ड्यूटी दी थी। चंद्रशेखर भी लंबा समय वहीं गुजारते थे। एक दिन वह रामनाथ गोयनका, मोहन धारिया और नानाजी देशमुख के साथ इंडियन ऑयल गेस्ट हाउस में आए। वहां सभी जेपी के स्वास्थ्य की चर्चा करते हुए भावुक हो गए। गोयनका ने चंद्रशेखर से कहा कि अगर जेपी को कुछ हो जाता है तो उनका अंतिम संस्कार ठीक उसी तरह होना चाहिए जिस तरह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का हुआ था। चंद्रशेखर उनकी बातों से सहमत नहीं हुए और कहा कि यह सरकार को तय करना चाहिए न कि इसके लिए दबाव बनाया जाना चाहिए। मोहन धारिया ने कहा कि वह इसके लिए सरकार के अंदर अपने करीबियों से बात करेंगे। उन्होंने इसके लिए सबसे पहले मोरारजी देसाई, चरण सिंह और जगजीवन राम से संपर्क किया। लेकिन इससे कोई लाभ नहीं हुआ। अंत में जॉर्ज फर्नांडीस से संपर्क किया गया। लेकिन वहां से यही संदेश आया कि वे पहले ही इस बारे में इन तीनों से बात कर चुके हैं जिसे मना कर दिया गया। यह सुनकर गोयनका को आघात लगा।
उन्हें दु:खी देख चंद्रशेखर ने भरोसा दिलाया कि सरकार का जो भी फैसला हो वे अपने स्तर पर सुनिश्चित करेंगे कि जेपी को मौत के बाद राजकीय सम्मान मिले। इसके बाद तीनों फिर अस्पताल लौट आए। लौटने के बाद वहां पहले से मौजूद नानाजी देशमुख से चंद्रशेखर ने कहा कि वे राज्यों के सीएम से जेपी को राजकीय सम्मान देने की बात करें अगर उनकी मृत्य हो जाती है। अफवाह को इस तरह मिले पंख प्रस्ताव आया कि देशमुख जनता पार्टी शासित राज्यों के सीएम से बात करेंगे तो चंद्रशेखर कांग्रेस शासित राज्यों के सीएम से। जब ये आपस में बात कर रहे थे और बीच-बीच में सीएम से भी बात होने लगी तो वहां मौजूद इंटेलिजेंस एजेंसी के लोगों को लगा कि ये बातें इसलिए हो रही हैं कि शायद जेपी की मौत हो चुकी है। एजेंसी ने यह बात आगे बढ़ानी शुरू कर दी। राज्य मुख्यालय होते-होते दिल्ली और अंत में पीएमओ तक यह जानकारी पहुंच गई। हैरानी तब हुई जब खबर की बिना सत्यता जांचे पीएम मोरारजी देसाई ने संसद के अंदर यह सूचना प्रसारित कर दी। इस बीच चंद्रशेखर अपने साथियों के साथ गेस्टहाउस पहुंचे जहां पता चला कि दिल्ली में उनके दल के सारे नेता संसद में जेपी की मौत पर शोक व्यक्त करने गए हैं। वे सभी इस बात पर हैरान हो गए कि अभी तो अस्पताल से उनसे मिलकर आए थे। हड़बड़ी में वे सभी अस्पताल की ओर दौड़े।
वहां देखा कि भारी भीड़ अस्तपाल की ओर से जा रही थी। जेपी की मौत की खबर आग की तरह फैल चुकी थी। अस्पतालकर्मी भीड़ देखकर बुरी तरह डर गए थे। तभी एक अंबेसेडर कार को आता देख चंद्रशेखर उस ओर दौड़े और उसपर चढ़ गए। वहां से उन्होंने कहा कि मौत की खबर अफवाह है और सभी लौट जाएं। तब जाकर मामला शांत हुआ। मैंने चंद्रशेखर के साथ अपने पहले इंटरव्यू में उनकी जेपी से पहली मुलाकात के बारे में पूछा था। चंद्रशेखर ने बताया कि जेपी से मिलना उनकी जिंदगी में बड़ा बदलाव लाने वाला लम्हा था। चंद्रशेखर ने उस मुलाकात और उसके पीछे के घटनाक्रम को याद करते हुए कहा कि उन्होंने दिल्ली में सोशलिस्ट पार्टी के पीपल्स डे इवेंट में शामिल होने के लिए ट्रेन का टिकट लिया था। रेलवे स्टेशन पर वह गेंदा सिंह से मिले। गेंदा सिंह तब उत्तर प्रदेश सोशलिस्ट पार्टी के जोनल सेक्रेटरी थे। गेंदा सिंह ने नाराजगी भरे लहजे में कहा कि उन्हें कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिल रहा है जो जेपी का इलाहबाद में एक पब्लिक मीटिंग करवा सके। चंद्रशेखर से यह भी पूछा कि क्या वह इसमें उनकी मदद कर सकते हैं? जेपी-चंद्रशेखर की पहली मुलाकात शुरू में चंद्रशेखर पब्लिक मीटिंग कराने को लेकर सशंकित थे। पहली बात कि ग्रीष्मावकाश के कारण यूनिवर्सिटी में छुट्टियां थीं और दूसरी यह कि वकील समूह की ओर से किस तरह की प्रतिक्रिया मिलेगी इस बारे में वह आश्वस्त नहीं थे।
लेकिन अपने संदेह को दरकिनार करते हुए गेंदा सिंह को बोले कि अगर वे चाहते हैं कि जेपी की पब्लिक मीटिंग हो तो वह मदद करने को तैयार हैं। उन्होंने दिल्ली जाने का इरादा छोड़ दिया और अपने दोस्त- रामेश्वर बाली और काशीनाथ मिश्रा से मदद मांगी कि वे जेपी की पब्लिक मीटिंग इलाहबाद में करवा दें। इन लोगों को तब यह भी पता चला कि जेपी कई मजदूर संगठनों को भी हेड करते थे। इसके बाद चंद्रशेखर ने इन संगठनों से भी सहयोग का अनुरोध किया। छोटे दुकानदारों और आम लोगों से डोनेशन मांगे गए। जब जेपी मीटिंग में भाग लेने इलाहबाद रेलवे स्टेशन पर आए तो शहर के कई गणमान्य लोगों ने उनका स्वागत किया। हालांकि उनमें कई ऐसे थे जो उनकी पब्लिक मीटिंग कराने के इच्छुक नहीं थे। जेपी ने इलाहबाद दौरे में चार-पांच पब्लिक मीटिंग की थी। इलाहबाद से जाने से पहले जेपी ने चंद्रशेखर से मिलने की इच्छा जताई। वह तब तक एक बार भी उनसे नहीं मिले थे। जब दोनों की मुलाकात हुई तो किसी ने कहा कि वे दोनों बलिया के हैं। जेपी ने अपनी पब्लिक मीटिंग में लोगों से आग्रह किया था कि वे अपने इलाके में कुछ जनोपयोग निर्माण करें। चंद्रशेखर ने उनकी बात को बहुत गंभीरता से लिया और अपने गांव में लोगों की मदद से अस्पताल का निर्माण करवाया। इसके उद्घाटन के लिए उन्होंने जेपी को बुलाया। वे मान गए। जेपी गांव आए और रात वहां के प्राइमरी स्कूल में बिताई। अगले दिन चंद्रशेखर जेपी के गांव गए। उनके गांव के दौरे के दौरान चंद्रशेखर को अपने सामाजिक परिवेश और इसकी जटिलता को नजदीक से समझने का मौका मिला।
हरिवंश नारायण सिंह
(रूपा पलिककेशन से प्रकाशित हरिवंश की पुस्तक से साभार)