अब क्या मथुरा-काशी की बारी हैं ?

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अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के भूमिपूजन और शिलान्यास के बाद अचानक पूरे देश में मथुरा और काशी की चर्चा शुरू हो गई है। खबर आई थी भूमिपूजन और शिलान्यास कराने वाले पुरोहित ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूजा के बाद दक्षिण में मथुरा और काशी मांगने का इरादा बनाया था। इस बात का काफी प्रचार हुआ। अब खबर है कि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा पहुंच रहे हैं। खबरों के मुताबिक ऐसा पहली बार हो रहा है कि अयोध्या के इतने बड़े संत मथुरा में जन्माष्टमी में पधार रहे हैं और वह भी सरयू का पवित्र जल लेकर। ध्यान रहे यमुना के किनारे कृष्ण का जन्म हुआ था और सरयू के किनारे भगवान राम का। पहली बार यमुना के किनारे श्रीकृष्णनगरी में अयोध्या नगरी से सरयू का जल लाया जा रहा है भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का अभिषेक करने। चूंकि जन्माष्टमी का मौका है इसलिए इसे एक धार्मिक कृत्य ही माना जाएगा। पर इस पूरे राजनीतिक घटनाक्रम का राजनीतिक मतलब भी हो सकता है। गौरतलब है कि अयोध्या में राम मंदिर के आंदोलन के समय विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या तो झांकी है, मथुरा-काशी बाकी है का नारा दिया था।

नरेंद्र मोदी के काशी यानी बनारस से सांसद बनने के बाद से काशी विश्वनाथ मंदिर के सामने से गंगा तट तक एक कॉरीडोर बनाने का काम चल रहा है। यह लगभग पूरा होने वाला है। अनेक लोगों का मानना है कि कॉरीडोर बनने के बाद समापन ज्ञानवापी मस्जिद की विदाई से हो सकता है। एक तरफ काशी में ‘ऐतिहासिक कलंक’ मिटाने की चर्चा तेज हो गई है तो दूसरी ओर मथुरा में भी धार्मिक गतिविधियों के ही बहाने पुराने एजेंडे क आगे बढ़ाया जाने लगा है। करीब डेढ़ साल बाद उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले मथुरा और काशी का मसला बड़ा मुद्दा बन सकता है। वैसे भी साल 2020 को किस तरह से याद किया जाएगा? सारे लोग इस बात पर सहमत होंगे कि इसे कोरोना वायरस की महामारी के साल के तौर पर याद किया जाएगा। कोरोना महामारी ने देश के एक-एक आदमी का जीवन प्रभावित किया है। सो, सब नागरिक अपनी अपनी मुश्किलों के हिसाब से कोरोना वर्ष के तौर पर इसे याद करेंगे। एक बड़ा वर्ग सोशल मीडिया पर इस प्रचार में जुटा है कि साल 2020 को अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के साल के तौर पर याद किया जाएगा।

उनका कहना है कि इस साल पांच सौ साल की गलती को सुधारा गया है और हिंदुओं के ऐतिहासिक अपमान का बदला लिया गया है। उार प्रदेश के मुयमंत्री से लेकर विश्व हिंदू परिषद के सदस्यों तक ने पांच सौ साल का मुद्दा बनाया हुआ है। इस बीच यह कहने वाले लोग भी हैं कि इस साल को इसलिए भी याद किया जाएगा क्योंकि इस साल तीन बार दिवाली मनेगी। एक बार कोरोना के कारण मनी, दूसरी बार मंदिर निर्माण के कारण और तीसरी पारंपरिक दिवाली मनाई जाएगी। ध्यान रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने होली के तुरंत बाद पहली दिवाली मनवाई थी। उन्होंने देश के लोगों से अपील की थी कि वे पांच अप्रैल को शाम में अपने अपने घरों पर पांच दीये जलाए। सो, लोगों ने दीये जलाए और अनेक जगह लोगों ने पटाखे छोड़े। इसके बाद दूसरी दिवाली उार प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने मनवाई। अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के शिलान्यास के एक दिन पहले यानी चार अगस्त को शिलान्यास के रोज यानी पांच अगस्त को उनके कहने पर देश भर में बड़ी संख्या में लोगों ने दीपोत्सव मनाया। इसके बाद 14 नवंबर को कार्तिक मास की अमावस्या को पारंपरिक दिवाली मनाई जाएगी। हो सकता है कल ये काशी-मथुरा को लेकर दीवाली मनाने की बात कहें।

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