पड़ौसी देश श्रीलंका में कायम हुआ भाई-भाई का राज

0
176

श्रीलंका में हुए संसदीय चुनाव में वहां भाई-भाई राज कायम कर दिया है। अब उस पर मोहर लगा दी है। बड़े भाई महिंद राजपक्ष तो होंगे प्रधानमंत्री और छोटे भाई गोटाबया राजपक्ष होंगे राष्ट्रपति ! इनकी पार्टी का नाम है- ‘श्रीलंका पोदुजन पेरामून’। यह नई पार्टी है। जिन दो बड़ी पार्टियों के नाम हम दशकों से सुनते आ रहे थे—— श्रीलंका फ्रीडम पार्टी और युनाइटेड नेशनल पार्टी— वे लगभग शून्य हो गई हैं। इन पार्टियों के नेताओं— श्रीमावो भंडारनायक, चंद्रिका कुमारतुंग, जयवर्द्धन, प्रेमदास आदि से मैं कई बार मिलता रहा हूं, उनके साथ यात्राएं और प्रीति-भोज भी होते रहे हैं। इनमें से ज्यादातर दिवंगत हो गए हैं, जो बचे हैं, उन्हें श्रीलंका के लोगों ने घर बिठा दिया है। पिछली सरकार में राष्ट्रपति थे मैत्रीपाल श्रीसेन और प्रधानमंत्री थे- रनिल विक्रमसिंघ।

इन दोनों ने गठबंधन करके सरकार बनाई थी लेकिन दोनों की आपसी खींचातानी और भ्रष्टाचार ने इन्हें सत्ता से हाथ धोने के लिए मजबूर कर दिया। दो साल पहले श्रीलंका के एक गिरजाघर पर हुए आतंकवादी हमले में 250 से ज्यादा लोग मारे गए थे। उस घटना ने इस सरकार की गुप्तचर व्यवस्था और लापरवाही की पोल खोल कर रख दी थी। इसीलिए इस संसदीय चुनाव में राजपक्ष की पार्टी को 60 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले और 225 सदस्यों की संसद में 145 सीटें मिलीं। पांच सीटों वाली कुछ पार्टियों को मिलाकर 150 सीटों का दो-तिहाई बहुमत बन जाएगा। इस प्रचंड बहुमत का लाभ उठाकर दोनों भाई चाहते हैं, जैसा कि तीसरे भाई बसील राजपक्ष ने कहा है कि उनकी पार्टी अब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और भारत की भारतीय जनता पार्टी की तरह श्रीलंका में एकछत्र शासन करेगी।

इस प्रचंड बहुमत का इस्तेमाल श्रीलंका के संविधान में हुए संशोधनों को पलटने के लिए भी किया जाएगा। 19 वें संशोधन द्वारा राष्ट्रपति की अवधि और शक्तियों में जो कटौतियां की गई थीं, उनकी वापसी की जाएगी। 13 वां संशोधन भारत-श्रीलंका समझौते के बाद किया गया था। उसमें श्रीलंका के तमिलों को संघवादी छूटें दी गई थीं। उन्हें भी ठीक किया जाएगा। यों भी इस चुनाव में तमिल स्वायत्ता के लिए लड़नेवाले ‘तमिल नेशनल एलायंस’ की सीटें 16 से घटकर 10 रह गई हैं। दूसरे शब्दों में श्रीलंका के तमिलों का जीना अब मुहाल हो सकता है। भारत के साथ श्रीलंका के संबंधों में अब तनाव बढ़ने की पूरी आशंका है। राजपक्ष बंधुओं का चीन-प्रेम पहले ही काफी उजागर हो चुका है। डर यही है कि श्रीलंका का यह भाई-भाई राज कहीं वहां के लोकतंत्र के लिए खतरा न बन जाए।

डा.वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here