ऐसा लग रहा है कि भारत सरकार अब भी अंधेरे में है। पिछले 50 दिन से ज्यादा समय तक तो सरकार अंधेरे में थी ही, जब चीन ने पूर्वी लद्दाख के चार सेक्टरों में घुसपैठ की और कम से कम एक सेक्टर- गलवान घाटी में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार यथास्थिति बदल दी। इसके बाद ही चीन दावा कर रहा है कि पूरी गलवान घाटी उसकी है। इसके लिए वह सदियों पुराने कथित ऐतिहासिक सबूत पेश कर रहा है। भारत ने हालांकि कह दिया है कि चीन का दावा स्वीकार करने लायक नहीं है और उसका कोई आधार नहीं है। पर भारत की ओर से क्या यह दावा किया जा सकता है कि पूरी गलवान घाटी भारत के पास ही है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्वदलीय बैठक में कहा कि भारत की सीमा में न कोई घुस आया है, न कोई घुसा हुआ है और न भारत की किसी चौकी पर किसी का कब्जा है। बाद में इस पर सफाई देते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा कि चीन के सैनिकों ने घुसने का प्रयास किया था पर भारत के जवानों ने उस प्रयास को नाकाम कर दिया और 15 जून की रात के बाद स्थिति यह है कि भारत की सीमा में कोई भी घुसा नहीं है।
चीन ने प्रधानमंत्री की इस बात का पूरा प्रोपेगेंडा किया है। मैंडेरिन अनुवाद और सब टाइटल के साथ मोदी का यह भाषण चीन के चैनलों पर दिखा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन ने इस वीडियो के जरिए इस बात का प्रोपेगेंडा किया कि वह भारत की सीमा में नहीं घुसा है और यह बात खुद भारत के प्रधानमंत्री कह रहे है। अब स्थिति यह है कि भारत कह रहा है कि चीन उसकी सीमा में नहीं घुसा है और चीन कह रहा है कि वह भारत की सीमा में नहीं घुसा है। तो अब विवाद कहा हैं? जब दोनों देश एक ही बात कह रहे हैं इसका मतलब है कि विवाद खत्म हो गया और अप्रैल से पहले की यथास्थिति बहाल हो गई है! पर असल में ऐसा नहीं है। असलियत यह है कि चीन गलवान घाटी को अपना बता रहा है। अगर वह वास्तविक नियंत्रण रेखा, एलएसी के उस पार से यानी अपने हिस्से में बैठ कर यह दावा कर रहा होता तो भारत के लिए चिंता की बात नहीं थी। देश के तमाम सामरिक और कूटनीतिक विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि उसने भारत की सीमा में घुसपैठ की है और यह उसकी पुरानी रणनीति है। वह किसी भी देश के खाली हिस्से में घुस कर दावा कर सकता है कि वह उसका है।
तभी भारत मौजूदा स्थिति तो स्वीकार करके चुप नहीं बैठ सकता है। अगर वह चुप बैठा तो चीन की हिम्मत बढ़ेगी और वह ज्यादा आगे बढ़ेगा। असल में यह चीन की विस्तारवादी नीति का हिस्सा है, जो वह हांगकांग से लेकर हिमालय तक अपनी सीमा का विस्तार करने में लगा है। उसने हांगकांग में राष्ट्रीय सुरक्षा के नियम बदल दिए हैं। उसने दुनिया के विरोध की या हांगकांग में चल रहे लोकतंत्र समर्थक आंदोलन की परवाह नहीं की। उसने तमाम दबावों के बावजूद ताइवान को विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से आयोजित वर्ल्ड हेल्थ एसेंबली में नहीं शामिल होने दिया। उसने दक्षिण चीन सागर में फिलीपींस और वियतनाम के खिलाफ मोर्चा खोला है। उसकी नजर भूटान पर है और कहा जा रहा है कि डोकलाम के बड़े हिस्से को उसने फिर से कब्जे में ले लिया है। अरुणाचल प्रदेश के भाजपा सांसद तापिर गाव ने इस बारे में सरकार को आगाह किया है और भाजपा के बड़े नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी डोकलाम को लेकर चिंता जताई है। चीन ने इस समय आपदा को अवसर बनाया हुआ है।
उसको लग रहा है कि दुनिया इस समय कोरोना वायरस के संकट से जूझ रही है और वह उस संकट से बाहर निकल गया है। दूसरे, उसके पास अथाह आर्थिक और सैन्य ताकत है, जिसके दम पर वह अगले पांच-दस साल में दुनिया की इकलौती महाशक्ति अमेरिका को पीछे छोड़ कर महाशक्ति बन सकता है। इसके लिए उसने कई मोर्चे पर आर्थिक लड़ाई तो छेड़ी ही है पर साथ ही चीन की सीमा के विस्तार के माओ के समय की योजना को भी आगे बढ़ाया है। माओ के समय से चीन में यह धारणा है कि तिब्बत अगर हथेली है तो लद्दाख, नेपाल, सिक्किम, अरुणचाल प्रदेश और भूटान उसकी उंगलियां हैं। इन पांचों उंगलियों को तिब्बत की हथेली के साथ जोड़ना है। इस खतरनाक मंशा के साथ चीन आगे बढ़ रहा है। लद्दाख पर उसकी नजर है और इसलिए उसने गलवान घाटी में यथास्थिति बदलने का प्रयास किया है। ध्यान रहे उसकी 60 अरब डॉलर की महत्वाकांक्षी चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर गुजरनी है, जो लद्दाख के साथ जुड़ती है। इसलिए वह बहुत आसानी से पीछे नहीं हटने वाला है।
भारत को उसकी इस खतरनाक मंशा को समझते हुए काम करना होगा। भारत को एक साथ कई मोर्चे पर अपने को मजबूत करना होगा। किसी भी हाल में भारत को पूर्वी लद्दाख के चारों सेक्टरों- गलवान घाटी, डेमचक, पैंगोंग झील और दौलत बेग ओल्डी में अप्रैल से पहले की यथास्थिति बहाल करानी होगी। अगर ऐसा नहीं होता है तो भारत के लिए खतरा बढ़ेगा। भारत का दूसरा मोर्चा वापस सिक्कम, अरुणाचल प्रदेश में होगा, जहां चीन डोकलाम में फिर अपने कदम बढ़ा रहा है। नेपाल और पाकिस्तान की सीमा पर भी भारत को लापरवाही नहीं करनी होगी। ध्यान रहे नेपाल के सैनिकों ने भारत की सीमा में काम कर रहे लोगों को गोलियां चलाई थीं और एक व्यक्ति को मार डाला था। अब नेपाल सीमा के बहुत अंदर भारत में पूर्वी चंपारण जिले में बांध निर्माण के काम को रूकवाना चाहता है। यह चीन की साजिश की वजह से हो रहा है।
शशांक राय
(लेखक पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं )