हे राम अब अन्नदाता को भी खैरात

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चुनाव से ठीक पहले अगर प्यार दिखाएंगे तो भले ही आपकी नीयत देने की हो लेकिन जनता तो यही समझेगी कि सब वोट पाने की खातिर हो रहा है। आखिर सरकारें चुनाव से पहले ही क्यों रहम दिल नजर आती हैं? अगर अपने कार्यकाल के चार साल में मोदी सरकार के पास खजाने में मेहरबानियों के लाकय दौलत नहीं।।

मोदी राज ने अपना आखिरी पिटारा भी खोल ही दिया। वो सब निकला जिसका एहसास हफ्तों से चहेते मीडिया के जरिए जनता को कराया जा रहा था। किसानों, मजदूरों, वेतनभोगियों के लिए सुनने में अच्छी लगने वाली तमाम घोषणाएं की गई। समर्थक खुश भी बहुत होंगे और विपक्षी तिलमिलाते नजर आएंगे। आखिर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार को जनता को अपनी बात कहने का इससे सुनहरी मौका और क्या हो सकता था? सवाल यही है कि कहने में क्या जाता है? करने के लिए जनता ने फिर मौका नहीं दिया तो? इससे भी बड़ा सवाल ये है कि आखिर जिन तबकों पर मोदी सरकार शुक्रवार को संसद में मेहरबान थी तो फिर उन्हीं तबकों की पिछले चार साल में जान लेने में कोई कसर क्यों नहीं छोड़ी? इन तबकों से इतना ही प्यार था तो पहले चार बजट में वो नजर क्यों नहीं आया? ना किभी किसान एजेंडे पर था और ना ही मजदूर। चुनाव से ठीक पहले आप अगर प्यार दिखाएंगे तो भले ही आपकी नीयत देने की हो लेकिन जनता तो यही समझेगी कि सब वोट पाने की खातिर हो रहा है। आखिर सरकारें चुनाव से पहले क्यों रहम दिल नजर आती हैं? अगर अपने कर्यकाल के चार साल में मोदी सरकार के पास खजाने में मेहरबानियों के लायक दौलत नहीं थी तो अब कौन सा कुबेर का खजाना उनके हाथ लग गया है जो वो हर किसी के दुख हरने के लायक दौलत उड़ेल देगा? किसानों को 6 हजार रूपये सलाना दिए जायेंगे।

सरकार ने तय कर भी लिया लिया है कि दो हेक्टेयर से कम की जोत के कुल 12 करोड़ ही किसान हैं। आंकड़े हो सकते हैं कि सही हों क्योंकि आजकल इस सरकार के किसी भी आंकड़े पर संदेह के बादल मंडराए रहते हैं। लेकिन क्या इस सरकार में बैठा कोई भी नेता ये बता सकता है कि हर महीनें 500 रुपये की ये खैरात किसान का कौन सा भला कर देगी? क्या आएगा तिमाही दो हजार रुपये में? क्या बीज या खाद इतने पैसे में आ सकती है? आखिर सरकारों को कब ये समझ में आएगा कि किसानों को ना तो कर्जमाफी चाहिए ना ही खैरात, उनकी फसलों के दाम सही दो, उनकी आय फसलों से बढ़ाओं तो उन्हें भी ये संतोष रहे कि वो इस देश के नागरिक हैं और सच में अन्नदाता हैं। इससे बड़ा मजाक अन्नदाता के साथ और क्या हो सकता है कि जो पूरे देश को दान कर पेट भरता है उसे 500 रुपये का दान दिया जा रहा है? हकीकत ये है कि ये केवल राहुल गांधी के मिनिमम आय गारंटी की घोषणा का कैश कार्ड के रूप में चुनावी जवाब है। आखिर ये मानने में हर्ज ही क्या है कि ये एक वोट की कीमत है? वो भी संवैधानिक रूप से।

हैरानी की बात ये है कि संसद में इस तरह किस्त के बारे में कार्यवाहक वित्त मंत्री बोल रहे थे जैसे वो पांच लाख रुपये देने जा रहे हों और उसकी पहली किस्त मार्च में ही जारी कर देंगे। चलों खैर होली पर रंग खेलने के लायक पैसा तो मिल ही जाएगा। एक किसान ने तो मजाक में बहुत ही गहरी बात तक मुझसे कह डाली-इससे बेहतर तो रोजना एक बीड़ी का बंडल और माचिस ही फ्री दे देते। एक दिलजले की पढ़िये बजट के जरिये जनता को लॉलीपॉप थमायेंगे, चार-साल मार कर अब जिन्दा रहना सिखायेंगे, जुमलों में लूटने वालो किस्तों में मार रहे है, इसमें में मत आना ये फिर आएंगे और रुलायेंगे, ना खाने देंगे, ना खाएंगे। खैर अपनी-अपनी पीड़ाएं सबकी। लेकिन इस बजट को देखकर एक बात मेंरी समझ में नहीं आई कि जब मोदी भक्त ये चिल्लाते रहे हैं कि उनके राज में कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलता तो फिर अब ये मुफ्त की बात कहां से आ गई? चलिए जो है सो है। मोदी सरकार ने पारी की आखिरी गेंद हवा में उछाल दी है। मैदान के बाहर छक्के के रूप में जाएगी या फिर जनता के हाथों कैच होगी ये लोकसभा चुनाव के नतीजे बताएंगे। तब तक खुश होइए कि घोषणाओं से राम राज्य बस आने ही वाला है।

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