गलवान में भारत-चीन के बीच मुठभेड़

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भारत और चीन के सैनिकों की बीच हुई मुठभेड़ और उसके कारण हताहतों की खबर ने देश के कान खड़े कर दिए। यह मुठभेड़ में तीन भारतीय फौजी मारे गए और माना जा रहा है कि चीन के चार या पांच फौजी मारे गए। आश्चर्य की बात यह है कि ये मौतें तो हुईं लेकिन उन जवानों के बीच हथियारों का इस्तेमाल नहीं हुआ। हथियारों का इस्तेमाल नहीं हुआ, गोलियां नहीं चलीं, तोपें नहीं दागी गईं लेकिन दोनों तरफ के जवान मारे गए। तो क्या उन लोगों के बीच हाथापाई हुई ? क्या उन लोगों ने एक-दूसरे का दम घोट दिया या गलवान घाटी में धक्का दे दिया। आखिर हुआ क्या, यह शाम तक पता नहीं चला। यह मुठभेड़ 5-6 मई को धक्का-मुक्की से ज्यादा खतरनाक सिद्ध हुई है। भारतीय टीवी चैनलों को चीनी सैनिकों के मरने की खबर चीनी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ से मिली।

उसके संपादक ने ट्वीट करके यह बताया और यह खबर भी दी कि चीन इस मामले को तूल नहीं देना चाहता है। वह बातचीत जारी रखेगा। वैसे ‘ग्लोबल टाइम्स’ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का ऐसा अखबार है, जो बेहद आक्रामक और बड़बोला है लेकिन आज उसका स्वर थोड़ा नरम मालूम पड़ रहा है ? इससे क्या अंदाज लगता है ? क्या यह नहीं कि गलवान घाटी के आस-पास जो दुखद घटना घटी है, उसमें ज्यादती चीन की तरफ से हुई होगी। यह घटना रात को घटी है। अभी तक पता नहीं चला है कि यह कितने बजे हुई, ठीक-ठाक कहां हुई और उसका तात्कालिक कारण क्या था ? इतने घंटे बीत जाने पर भी भारत सरकार की कोई दो-टूक प्रतिक्रिया इस घटना पर अभी तक क्यों नहीं आई ?

हमारे रक्षामंत्री, विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री अभी आपस में विचार कर रहे हैं कि इस घटना के बारे में सार्वजनिक रुप से क्या कहा जाए ? इससे जाहिर होता है कि दोनों देशों की सरकारें इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर संयत रुख अपनाना चाह रही हैं। दोनों देशों की सरकारें अपने-अपने राजदूतों से अब तक सारा विवरण ले चुकी होंगी। शायद दोनों सरकारें बहुत ही सम्हलकर अपनी प्रतिक्रियाएं देना चाह रही होंगी, क्योंकि पिछले कई दशकों से भारत-चीन सीमा पर ऐसी हिंसक घटनाएं नहीं घटीं, जबकि दोनों देशों के सैनिक एक-दूसरे की सीमाओं में भूल-चूक से आते-जाते भी रहे। दोनों तरफ के फौजियों और राजनयिकों के बीच बातचीत से जो मामला सुलझता हुआ लग रहा था, वह अब थोड़ा मुश्किल में जरुर पड़ जाएगा लेकिन दोनों देश इस दुर्घटना को किसी बड़ी मुठभेड़ का रुप नहीं देना चाहेंगे।

डा.वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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