आत्मनिर्भर भारत! हमारे भरोसे मत रहना

0
869

आज जैसे ही मोदी जी का मेल आया, हमने पोते को, भारतीय समाज के इस सनातन मैसेज के साथ तोताराम के घर दौड़ा दिया कि खाना नहीं खाया हो तो यहाँ आकर खाना, यदि खाना खा रहे हो तो पानी यहाँ आकर पीना। पाँच मिनट में तोताराम बिना मास्क के हाज़िर। हमने कहा- क्या तू खुद को ट्रंप की तरह सुपर मैं समझता है जो मास्क नहीं लगाता? यदि रास्ते में किसी ईमानदार पुलिस वाले कोरोना वॉरियर ने देख लिया होता और डेढ़ सौ रुपए का जुर्माना ठोक दिया होता तो? बोला- आदरणीय, जहाँ तक ठोक देने की बात है तो इस कोरोना-काल में कोई भी, किसी भी सड़क चलते मजदूर की तरह ठोका जा सकता है। कोर्ट तक ने कह दिया कि रेल की पटरी कोई सोने की जगह थोड़े ही है। सोना ही है तो नेताओं की तरह सर्किट-हाउस में रुको, सब कुछ जनता के पैसे से मुफ्त। सेवा का मेवा। वैसे अब तो मोदी जी ने खुद ही कह दिया है कि जनता को कोरोना के साथ रहना सीख लेना चाहिए। जब साथ ही रहना है तो कब तक चेहरा ढँक कर इश्क फरमाएँगे। कभी तो पर्दा हटाना ही पड़ेगा, मुखड़ा दिखाना ही पड़ेगा। सो फेंक दिया मास्क, लेकिन पहले यह बता कि ऐसा ‘मन की बात’ जैसा कौन-सा ज़रूरी काम आ पड़ा जो खाना भी नहीं खाने दिया?

हमने कहा- ‘माई गुव’ से मोदी जी का मेल आया है, लिखा है- नो वॉट्स देअर फॉर यू इन ट्वेंटी करोर पैकेज- आत्मानिर्भर भारत अभियान। हमने सोचा इतना महत्त्वपूर्ण मेल तुम्हारे आने पर ही खोलेंगे। इतना लम्बा चौड़ा हिसाब समझ पाना हमारे अकेले के वश का नहीं है। बोला- मोदी जी का विजन बहुत बड़ा है जिसे समझ पाना तेरे-मेरे क्या, किसी के भी वश का नहीं है। मोदी जी के आईआईटी में पढ़े, एम.बी.ए. मित्र चेतन भगत को ही जब जीएसटी. समझ में नहीं आया हम कहाँ के जेटली जी हैं। मुझे तो लगता है कि खुद मोदी जी को भी नोटबंदी और जीएसटी समझ नहीं आए होंगे तभी तो उनके बारे में कभी बात नहीं करते। हमने कहा- यह बात नहीं है। असल बात यह है कि मोदी जी के पास इतनी अधिक योजनाएँ हैं कि पुरानी योजनाओं पर बात करना संभव नहीं है। अब यदि चार दिन बाद कोई इस 20 लाख करोड़ के पैकेज के बारे में पूछेगा तो ज़वाब मोदी जी नहीं, कोई साक्षी महाराज या गिरिराज किशोर देंगे। मोदी जी किसी और क्रांतिकारी, न भूतो न भविष्यति….योजना पर चिंतन कर रहे होंगे। बोला- सही पकड़े हैं…। जब यही बात है तो मोदी जी के पास तुझे मेल करने का समय कहाँ से आ गया? जिसे तू मोदी जी का मैसेज समझ रहा है वह उनके आईटीसेल द्वारा बल्क में फ्री भेजी गई जंक मेल है।

हमने कहा- आजकल जंक फूड तो सुनते हैं लेकिन यह जंक मेल क्या है ? बोला- यह वह मेल है जिसे दिवाली की हवाई बधाई की तरह तुझ जैसे मूर्ख भक्तों को खुश करने के लिए फेंक दिया जाता है। खैर, तू कहता है तो देख लेते। खोल अपना लैपटॉप। हमने लैपटॉप खोला। कई देर सिर मारा लेकिन कुछ समझ नहीं आया। हाँ, मोदी जी का गमछा लगाए हुए फोटो ज़रूर था और उनकी 31 मई को होने वाली ‘मन की बात’ की सूचना। इसके बाद महानायक जी का कोरोना के खिलाफ मानसिक लड़ाई जीतने का नुस्खा, इसके अलावा डाउनलोड करने के लिए कुछ ऐप। 20 लाख करोड़ के हिसाब में अस्सी बरस के होने जा रहे मास्टरों की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए एक किलो च्यवनप्राश तक का प्रावधान नहीं दिखा। अब क्या चाटें इस पैकेज को? इतनी देर में तो यदि सूक्ष्म दर्शक यंत्र देकर भारतीय खाद्य निगम के गोदाम में छोड़ दिया जाता तो हम अपने नाम लिखे दाने ढूँढ़ लाते। हमने कहा- तोताराम, इस पैकेज को छोड़, मिशन को समझ। इसका मूल मन्त्र है- ‘आत्मनिर्भर भारत’ मतलब अब भारत को आत्मनिर्भर बनना है। लॉकडाउन में गृहस्थी अपने सिर लादे पैदल घर पहुँचने की ही नहीं, अब अपने मरने-जीने, रोटी-रोजी सबकी जिम्मेदारी जनता की खुद की। आत्मनिर्भर बनो।
हमारे भरोसे मत रहना।

रमेश जोशी
(लेखक देश के वरिष्ठ व्यंग्यकार और ‘विश्वा’ (अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, अमरीका) के संपादक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here