वैश्विक महामारी कोविड-19 ने दुनिया की रफ़्तार पर ब्रेक लगा दिया है। वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी कई सालों पीछे कर दिया है। विश्व के अधिकांश देशों में लॉक डाउन है या फिर कर्फ़्यू जैसे हालात है। केवल जरूरी सामान व सेवाएं ही सुचारू रूप से संचालित हो रही है। भारत में भी इस महामारी ने विकराल रूप धारण कर लिया है। देश पूरी तरह से लॉक डाउन के कारण ठप्प पड़ा है। मानों लगता है, अब मानवीय सभ्यता अपनी आख़िरी सांसें गिन रही हो। ऐसे में भले ही आज संकट की घड़ी मानव सभ्यता पर आन पड़ी हो, लेकिन मानवीय जीवटता इतनी बलवती है कि वह इस संकट से हार नहीं मानेगी यह तो निश्चित है। ऐसे में सवाल उठता है शिक्षण संस्थानों का क्या होगा? जो कहीं न कहीं आता तो है जरूरी सेवाओं में, लेकिन जब सोशल डिस्टनसिंग बनाकर रखना है। फ़िर शिक्षण संस्थानों पर ताला लगना स्वाभाविक है। इन सब के बीच हमारी व्यवस्था ने बच्चों का भविष्य और समय बर्बाद न हो इसके लिए ऑनलाइन क्लासेज आदि का इंतज़ामात करा दिया है। लेकिन जिस शिक्षा व्यवस्था पर यूं तो हमेशा से ही सवाल उठते आ रहे है। वह शिक्षा ऑनलाइन होकर कैसे बेहतर विकल्प बन सकती बड़ा सवाल यह भी है।
लॉकडाउन के वक्त शिक्षा में सकारात्मक बदलाव हुए है। आज देश ऑनलाइन शिक्षा की ओर आगे बढ़ रहा है । वैसे भी जब तक बहुत आवश्यक न हो हम बदलाव को स्वीकारते नही है । लेकिन इस महामारी ने, न केवल हमारी दिनचर्या में परिवर्तन किए बल्कि आज सामाजिक, सांस्कृतिक, रीति रिवाजों में भी बदलाव आ गए है । जिसकी तस्वीर आए दिनों हम देख रहे है । जन्म , शादी समारोह और मृत्यु ये तीन कर्म को भारतीय संस्कृति में बहुत ही धूमधाम से मनाए जाता था, लेकिन इस एक वायरस ने इन सब पर ग्रहण लगा दिया है । इस भागती ज़िन्दगी में लोगो के पास स्वयं के लिए भी समय नही था आज वह अपने परिवार के साथ समय बिता रहे है । अपने हुनर को तराश रहे है । इस लॉकडाउन में भले ही लोगो से मिलना जुलना बन्द हो गया हो। लेकिन संवाद का एक नया रूप हमारे सामने आया है । जिसका असर शिक्षण संस्थाओं पर भी दिखाई दे रहा है।
आज से करीब साढ़े पांच दशक पहले सन 1964 में कनाड़ा के प्रसिद्ध दार्शनिक मार्शल मैकलुहान ने कहा था कि संस्कृति की सीमाएं खत्म हो रही हैं , और पूरी दुनिया एक ग्लोबल विलेज में तब्दील हो रही है । 1997 में वरिष्ठ अर्थशास्त्री एवं पत्रकार फ्रैंसिस केन्कोर्स ने ‘ द डेथ ऑफ डिस्टेंस ‘ सिद्धान्त दिया था। जिसमें कहा गया कि दुनिया की दूरियों का अंत हो गया है। लेकिन उन महान दार्शनिकों ने तो कभी वैश्विक महामारी की कल्पना नहीं की होगी और न ही कभी वैश्विक लॉक डाउन के बारे में सोचा होगा । कोरोना महामारी ने आज दुनिया भर में लोगो को अपने अपने घरों में कैद कर दिया है। लोग डर और भय के माहौल में जी रहे है, और दुनिया में हो रहे इस बदलाव को स्वीकार कर रहे है । देखा जाए तो प्रत्येक चुनौती अपने साथ नए अवसरों को लेकर आती है । आज जरूरत है उन अवसरों को समझने और उनका लाभ उठाने की । शिक्षण संस्थानों ने भी ऑनलाइन शिक्षा की दिशा में कदम बढ़ाया है । इसमें सरकार ने भी व्यापक पहल की है। जिसके तहत मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा लॉक डाउन के दौरान शिक्षा व्यवस्था गतिशील रह सकें, इसके लिए 11 अप्रैल 2020 को “भारत पढ़ें ऑनलाइन” की शुरुआत की। यह कार्यक्रम ऑनलाइन शिक्षा पारिस्थिकी तंत्र में सुधार और निगरानी के लिए लांच किया गया। इसके अलावा सरकार ने “युक्ति पोर्टल” भी लांच किया। सरकारी तंत्र द्वारा उठाया गया यह प्रयास अलहदा है। पर सवाल यह उठता है कि क्या ऑनलाइन शिक्षा, शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य चरित्र निर्माण और समाज कल्याण के लक्ष्यों की पूर्ति कर पायेगी ? माना कि इस नई शिक्षा नीति में चुनोतियाँ बहुत है । लेकिन इस ओर एक व्यापक पहल आने वाले समय मे शिक्षा के स्तर में सुधार की दिशा में एक नया कदम है। एक बात यह भी है।
इन सब के दरमियान देखें तो भारत जैसे विविधताओं से भरे विशाल देश में ऑनलाइन शिक्षा में कई चुनौतियां है। शैक्षणिक संस्थानों , कालेजों के पाठ्यक्रम में भिन्नता इसमें बहुत बड़ा रोड़ा है । जो ऑनलाइन शिक्षा के लिए बहुत बड़ी समस्या खड़ी कर सकता है । देश मे समान पाठ्यक्रम पर लम्बी बहस बरसों से होती आई है , लेकिन इस पर एक राय कभी नही बन पाई । तो वही भारत में इंटरनेट की स्पीड भी ऑनलाइन क्लासेस में एक बड़ी समस्या रही है। ब्राडबैंड स्पीड विश्लेषण कम्पनी ऊकला की रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर 2019 में भारत में मोबाइल इंटरनेट स्पीड में 128 वें स्थान पर रहा । भारत में लॉकडाउन के दौरान इंटरनेट स्पीड 11.18 एमबीपीएस ओर अपलोड स्पीड 4.38 एमबीपीएस रही । ऑनलाइन क्लासेस के समय इंटरनेट स्पीड का कम ज्यादा होना समस्या पैदा करता है । गांवों में यह समस्या कई गुना बढ़ जाती है । गांव में अधिकांश विद्यार्थियों के पास ऑनलाइन पढ़ने के लिए न ही संसाधन उपलब्ध है और असमय बिजली कटौती एक गंभीर चुनौती है । ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा के सपने को सही रूप में साकार कर पाना दूर की कौड़ी नजर आती है ।
ऑनलाइन शिक्षा के कई नुकसान है तो वही इसके फायदों की बात की जाए तो यह शिक्षा पर होने वाले खर्चो को कई गुना कम कर सकता है। वही देश विदेश में उच्च संस्थानों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के सपनों को साकार करने का मार्ग भी सुगम कराता है । लेकिन ऑनलाइन शिक्षा के सुचारू संचालन भारत जैसे विशालकाय देश में एक ओर जहां फायदे का सौदा है तो वही तकनीकी रूप से इसमें होने वाली समस्याएं व चुनोतियाँ भी कम नही है । अभी लॉक डाउन की स्थिति में यह व्यवस्था भले भी बहुत आसान व फायदेमंद नजर आ रही हो । लेकिन इसके सभी पहलुओं को समझ कर ही आगामी समय मे इस पर विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि भारत जैसे देश मे गुरुकुल की परम्परा रही है । जहां छात्र ओर शिक्षक एक साथ उपस्थित होकर विद्या अध्ययन करते थे ।। जहां गुरु छात्र के चेहरे के भाव देखकर समझ जाते थे कि शिष्य को कहा समस्या आ रही है । गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था में जहां संस्कार ,संस्कृति , ओर शिष्टाचार की शिक्षा दी जाती थी। क्या ऑनलाइन शिक्षा में यह सब संभव हो सकेगा ? सवाल कई है लेकिन इन सवालों के जवाब मौजूदा वक़्त में संभव नही है । कोरोना काल के बाद आने वाला समय ही देश की शिक्षा व्यवस्था की दिशा और दशा को तय करेगा । तब तक देश के भविष्य से यही अपील है कि ऑनलाइन पढ़ते जाइए, क्योंकि समय अनमोल है, उसे व्यर्थ न जाने दें।
सोनम लववंशी
(लेखिका स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)