गीता, जीवन सत्य और कोरोना

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जब से मैंने पढ़ना-लिखना सीखा, तब से गीता के बारे में बहुत कुछ पढ़ा है। अनेक बार चौथे या उठाले सरीखे आयोजनो में गीता की प्रति भेंट में भी मिली। मगर खुद भी उसे पढ़कर नहीं देखा। हालांकि लोग दावा करते हैं कि इसमें जीवन का सत्य छिपा हुआ है। सच्चाई तो यह है कि मैंने खुद भी कोई भी पुस्तक पूरी नहीं पढ़ी। इनमें पाठ्य पुस्तको से लेकर मेरी निजी लाइब्रेरी की पुस्तके भी शामिल हैं। सबके कुछ पन्ने पलटने के बाद बंद करके रख दिया।मगर जब से लॉनडाउन शुरू हुआ है सोशल मीडिया पर ऐसे-ऐसे संदेश व जानकारी आ रही है कि उन्हें पढ़ने के बाद गीता पढ़ना जरूरी नहीं लगता है। यह लोगों के सत्य से साक्षात्कार सरीखे हैं। वैसे भी भगवान श्रीकृष्ण की भूमिका वाली गीता समेत तमाम चीजो को बहुत विश्वनीयता से नहीं देख पाता हूं। सच कहूं कि जब सुबह पूजा करता हूं व भगवान कृष्ण की मूर्ति पर फूल चढ़ाता हूं तो मुझे उनमें लालू व मुलायम सिंह यादव नजर आते हैं।

इसकी एक बड़ी वजह पिछले दिनो रद्दी वाले से खरीदी एक किताब है। जिसमें भगवान श्रीकृष्ण से लेकर गीता व महाभारत में लिखी बातों की जमकर चीरफाड की गई है। इस किताब को दशको पहले बिहार के एक विद्वान प्रोफेसर हरि मोहन झा उर्फ खट्टर काका ने लिखा था। वे लिखते हैं कि पहले अर्जुन में मनुष्यता थी। वे कहते थे कि ये भाई है, चाचा है, बाबा है, इस पर हाथ कैसे उठाएं? परंतु गीता का आसव पीकर वह इस तरह से बोले कि वृद्ध पितामह तक की छाती छलनी हो गई। मैंने तो यह दावा तब माना कि गीता अहिंसा, वैराग्य की शिक्षा देती है खासकर तब जब अर्जुन गीता का उपदेश सुनने के बाद गेरूआ रूप धारण करते कवच उतार कर कमंडल धारण कर लेते है। इसलिए मैं कहता हूं कि गर्म खून वालो को गीता नहीं पढ़नी चाहिए।

कृष्ण स्वयं गीताकार भी थे तथा सारथी भी थे। तब उन्होंने अर्जुन को युद्ध के लिए उकसाने की जगह अपना रथ मोड़ क्यों नहीं लिया? वे कहते हैं कि ओ अर्जुन मैंने तुम्हें इतना ज्ञान दिया है कि शरीर नश्वर हैं संसार क्षणभंगुर है। हस्तिनापुर की क्या हस्ती? एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा। इस कारण ही तुम रक्त की धारा क्यों बढ़ाओंगे। सांसरिक सुख तुच्छ है। तुम राज्य की कामना छोड़ दो। क्या गद्दी के खातिर वृद्ध पितामह एवं पूज्य द्रोणाचार्य पर तीर छोड़ना तुम्हें शोभा देगा। यही न होगा कि लोग कहेंगे कि क्षत्रिय होकर मैदान छोड़ दिया। परंतु जो यथार्थ ज्ञानी होते हैं वे निंदा या प्रशंसा से विचलित नहीं होते हैं। छोड़ो इस झमेले को और मेरे साथ हिमालय चलो।

मगर उन्होंने ये बातें नहीं कहीं व अर्जुन को लड़ने के लिए भड़का दिया। मगर बड़े-बड़े लोग मानते है कि वे गीता के द्वारा विश्व शांति स्थापित करना चाहते थे। मगर आम इंसान को उसमें युद्ध का संदेश मिलता है कभी तो मरना है इसलिए अभी मर जाओ का तर्क मुझे नहीं जमता है। भगवान कहते हैं कि जीवन का कभी नाश नहीं होता है। परंतु जब अभिमन्यु का वध होता है तो वह ज्ञान कहां विलीन हो जाता है। फिर जयद्रथ का वध करने के लिए इतना प्रपंच क्यों रचा गया? समस्त उपनिषदों मंथन कर कृष्ण भगवान ने गीता रूपी अमृत निकाल कर अर्जुन रूपी शिष्य को उसका पात्र बनाया। अर्जुन को श्रीकृष्ण ने पुचकार कर लड़ाई में जोख दिया था। एक तरह से देखा जाए तो अर्जुन को फुसलाने के लिए ही गीता की रचना हुई है।

श्रीकृष्ण को लड़ाने की इच्छा थी। अर्जुन की पीठ ढोक दी और स्वयं महाभारत का तमाशा देखते रहे। अर्जुन पर श्याम रंग इतना चढ़ गया कि उन्होंने संपूर्ण वंश का मटियामेट कर दिया। श्रीकृष्ण कहते गए। शरीर नाशवान है इसलिए युद्ध करो, आत्मा अमर है इसलिए युद्ध करो, क्षत्रिय हो इसलिए युद्ध करो, नहीं लड़ने से निंदा होगी इसलिए युद्ध करो। हार-जीत दोनों को बराबर समझकर लड़ो। शत्रु को जीतकर राज भोगो।खट्टर काका के मुताबिक गीता का निष्कर्ष है निष्काम कर्म। पर इच्छा कृत कर्म कभी निष्काम नहीं होता है। हर काम किसी-न-किसी कामना से प्रेरित होकर किया जाता है। सारी कामनाओं का त्याग करना भी एक कामना ही हुई। गीता तो कवि की कल्पना है वरना घमासान युद्ध में गीता के अध्ययन कहने या सुनने की फुरसत किसके पास थी। यह सब पढ़कर लगता है कि हम लोग व्यवहारिकता की दृष्टि से तैयार किए गए इन संदेशों को आधुनिक गीता कह सकते हैं जोकि हमें जीवन का कोई-न-कोई संदेश देते थे।

किसी ने कहा कि जरूरी नहीं कि हमेशा बुरे कर्मो की वजह से दर्द सहने को मिलता है। कई बार तो हद से ज्यादा अच्छे होने की कीमत चुकानी पड़ती है। मित्र वीरेंद्र लिखते हैं कि पंकज उदास कि दो भविष्यवाणियां सही साबित हुई हें- हुई महंगी बहुत ही शराब के थोड़ी-थोड़ी पिया करे व निकला न बेनकाब जमाना खराब है। ऐसे ही कोई लिखता है कि आत्मविश्वास से भरा सेल्समैन डीलर को उत्साहित करने के लिए फोन पर कहता है- आप मॉल बेचिए भाई साहब भारत में कोरोना कुछ भी नहीं उखाड़ सकता है। अगर रोज एक लाख लोग भी मरे तो भी सबको साफ होने में 37 साल लग जाएंगे।किसी ने एक बात सही कही। जहां हमारे नेता आपादामें अवसर की बात कर रहे हैं वहीं यह भूल जाते है कि चंद्रमा पर इंसान भेजने की कोशिश में लगे इस देश में सेनेटाइजर और पीपीई किट तक तैयार करने में महीनो लग गए। वायरस का टीका तो ढूढ़ पाना बहुत दूर की बात है। किसी ने यह संदेश ठीक ही भेजा है कि हमें कोरोना से डरना नहीं लड़ना व बीवी से लड़ना नहीं डरना है। यही है जीवन का सत्य जोकि गीता के किसी उपदेश में देखने को नहीं मिलेगा। एक सज्जन कहते हैं कि मोदी को श्रेय इस बात के लिए जाता है कि उन्होंने नवविवाहितो को ऐसा भाग्यशाली पति बना दिया जिन्होने शादी के पहले ही बीवी का मुंह बंद कर दिया।

विवेक सक्सेना
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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