कोरोना के संकट से गांवों को बचाने के लिए कारगर कदम उठाने होंगे। श्रमिकों का पलायन तो लॉकडाउन शुरू होने के बाद से ही शुरू हो गया था। परंतु अब भारी तादाद में श्रमिकों का अपने गांवों में आवागमन हो रहा है। ये जो श्रमिक अहमदाबाद, मुंबई व दिल्ली से आ रहे हैं, इनके आवश्यक जांच करना जरूरी है क्योंकि इन नगरों में कोरोना का संकट काफी है। ऐसे में पलायन कर रहे श्रमिकों में संक्रमण की आशंका अधिक है। जो श्रमिक रेलगाडिय़ों से आ रहे हैं, वहां तो सामाजिक दूरी व अन्य नियमों का पालन हो रहा है, परन्तु काफी संख्या में श्रमिक ट्रकों व अन्य यातायात वाहनों से अपने घर लौट रहे हैं। कुछ तो अभी भी साइकिल, रिशा या पैदल ही अपने गांवों की तरफ झुण्ड में निकल पड़े हैं। ट्रकों के जरिये अपने घर लौटने वाले श्रमिकों को ट्रकों में ठूंसकर बैठाया जाता है। ऐसे में दुर्भाग्यवश यदि कोई संक्रमित हुआ तो संक्रमण फैलने की काफी संभावना हो जाती है। श्रमिकों के संग महिलाएं व बच्चे हैं। बाहर से आने वाले श्रमिकों में से कई लोग कोरोना संक्रमित मिल रहे हैं। गांवों में अभी तक कोरोना का संकट काफी कम था परन्तु प्रवासियों के कारण इस आपदा ने गांवों में भी दस्तक दे दी है। यूपी के ग्रामीण इलाके से संक्रमण की सूचना प्रतिदिन आ रही है।
गोण्डा में मुंबई से आये चार प्रवासियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। ये चारों कोरोना पाजिटिव थे और ट्रक में छिपकर अपने गांव आ गये थे। महाराष्ट्र से सूचना मिलने पर जिला प्रशासन ने इनको खोज निकाला। इनके साथ 35 लोग और ट्रक से आये थे जिनकी तलाश जिला प्रशासन कर रहा है। संक्रमण रोकने की जिम्मेदारी केवल सरकार की ही नहीं है। हम सबकी है। सबको अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। प्रवासियों को चाहिए कि अपने संबंध में सभी जानकारी स्थानीय प्रशासन को दें तथा सभी नियमों का पालन करें। ऐसा नहीं करने पर संक्रमण बढ़ सकता है। प्रशासन को भी चाहिए कि नियमों के उल्लंघन को लेकर सचेत रहे और पालन कड़ाई से कराये। परंतु ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि नियम पालन के नाम पर असम्मानजनक व्यवहार हो। प्रतापगढ़ में एक मजिस्ट्रेट ने प्रवासी श्रमिकों को साथ में बैठाने को लेकर लात मार दिया। इस प्रकार की घटनाओं को लेकर सत कदम उठाने चाहिए। गांवों में जागरूकता का अभाव है और स्वास्थ्य सेवायें उतनी अच्छी नहीं हैं जितनी की शहरों में। अगर गांवों में किसी कारण से संक्रमण फैला तो कम्युनिटी प्रसार के अवसर बढ़ जाएंगे। काफी गांव सुदूर में हैं जहां प्रशासनिक पहुंच थोड़ा मुश्किल है।
इन गांवों को चिन्हित करके वहां भी स्थानीय प्रशासन द्वारा निरीक्षण की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों का निरीक्षण संबंधित विभाग के उच्चाधिकारियों द्वारा निरंतर करना होगा, क्योंकि गांवों में बीमार होने पर सर्वप्रथम व्यक्ति प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर ही जाता है। अगर यहां उचित सतर्कता रहे तो संक्रमित को उचित इलाज व जांच की सुविधा उपलब्ध हो जाएगी। झोलाछाप चिकित्सकों पर भी वर्तमान परिस्थिति में लगामा लगाना जरूरी है क्योंकि इनसे संक्रमण फैलने की आशंका बढ़ जाती है। सरकारी सतर्कता के साथ-साथ ग्रामीणों को भी अपने सामाजिक दायित्व को निभाना होगा। संदिग्ध संक्रमितों के प्रति भावनात्मक रुख अपनाते हुए उनकी सूचना स्थानीय प्रशासन को देनी होगी। साथ में प्रवासी श्रमिकों को भी समाज के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए अपने बारे में सभी सूचना स्थानीय प्रशासन को देनी चाहिए। सूचना देने से बचना आपदा को बढ़ावा देने के समान है। इस परिस्थिति में कोरेन्टाइन सहित सभी नियमों का पालन करते हुए हम सभी को कोरोना से लडऩा है तथा इस आपदा को परास्त करना है। इसके लिए आवश्यक है कि समाज के सभी घटक अपनी जिम्मेदारी का पालन ईमानदारी से करें।