कोरोना : भारत में पासंग भर भी नहीं फैला

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स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्द्धन दावा कर रहे हैं कि कोरोना के बड़े खतरे को हम पार कर चुके हैं। इसमें शक नहीं कि केंद्र और राज्य सरकारें कोरोना से लड़ने का अथक प्रयत्न कर रही हैं लेकिन कोरोना हताहतों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। यही अमेरिका और रुस में भी हुआ था। उनके नेता भी हमारे नेताओं की तरह सिर्फ लापरवाह ही नहीं थे, उनमें एक अजीब-सी अकड़ भी थी लेकिन अब उनकी हवा निकली पड़ी है। क्या भारत में भी यही होना है ? क्या भारत में भी लाखों लोग रोगग्रस्त पाए जाएंगे और क्या यहां भी हजारों लोगों की बलि चढ़ेगी ? मुझे नहीं लगता कि ऐसा होगा।

इसके कई कारण हैं। पहले तो यही कि हम हताहतों के आंकड़ों को सही ढंग से समझने की कोशिश करें। यदि हम अमेरिका और यूरोप के देशों से तुलना करें तो हमारे यहां कोरोना पासंग भर भी नहीं फैला। यूरोप के जो देश हमारे छोटे-मोटे प्रांतों के बराबर हैं, जैसे इटली, बेल्जियम, हालैंड वगैरह, वहां हजारों लोग मर चुके हैं और लाखों लोग कोरोनाग्रस्त हो गए। अगर भारत की जनसंख्या के हिसाब से उन देशों की तुलना करें तो वहां कोरोना का प्रकोप भारत से सैकड़ों गुना ज्यादा फैला है। कुछ देशों में तो वह भारत से हजार गुना ज्यादा है।

जहां तक भारत का अपना सवाल है, यहां विभिन्न रोगों से रोज़ मरनेवालों की संख्या 20 से 25 हजार होती है और कोरोना से रोज मरनेवालों की संख्या 20 व्यक्ति भी नहीं हैं। जनवरी से अप्रैल तक के चार माह के 120 दिनों में अभी यह 2 हजार से भी नीचे ही है। यदि जमाते-तबलीगी और नांदेड़ के गुरुद्वारे की घटनाएं नहीं होती तो यह संख्या और भी कम हो जाती। यों भी भारत में 400 से 500 लोग सड़क दुर्घटना में रोज मरते हैं। अगर हमारी सरकार जनवरी-फरवरी में ही हवाई अड्डों पर जांच लाजिम कर देती तो कोरोना भारत में आया या नहीं आया, इसका पता ही नहीं चलता। प्रवासी मजदूरों, छात्रों और यात्रियों के लिए रेलें और बसें खोलने का सुझाव मैंने 25 मार्च को ही दिया था। यदि सरकार उसे मान लेती तो अब तक ये लाखों-करोड़ों लोग अपने घरों से ऊबकर शहरों में वापस लौट आते। हमारे कारखाने चल पड़ते। दूसरे शब्दों में हमारी समस्याएं कोरोना ने नहीं, हमने अपने लिए खुद खड़ी की हैं। हमने देश में मौत का डर इतना फैला दिया है कि तालाबंदी में ढील के बावजूद लोग अपने घरों में दुबके हुए हैं और जो गांवों में चले गए हैं, पता नहीं, उनमें से कितने लोग लौटना चाहेंगे ? इसीलिए सबसे ज्यादा जरुरी यह है कि लोगों के दिल से डर निकालें और लोगों को चाहिए कि वे शारीरिक दूरी, मुखपट्टी, भेषज-होम और काढ़ा-सेवन का पूरा ध्यान रखें। यूरोप और अमेरिका के लोगों के मुकाबले भारतीयों में उनके भोजन और जीवन-पद्धति के कारण प्रतिरोध-शक्ति कहीं ज्यादा है।

वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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