भारत जीतेगा ! हरा देगा सत्य व विज्ञान को !

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हां, सत्य मतलब दुनिया के महाविकसित देशों में कोविड-19 के लाखों मरीज। सत्य है इन पंक्तियों के लिखने तक दुनिया में एक लाख तीस हजार मौतें और 21 लाख मरीज। और विज्ञान क्या है? वह है टेस्ट, अस्पताल, वेंटिलेटर, डॉक्टर, रिसर्च, प्रोजेक्शन मॉडल याकि वैज्ञानिकता की तासीर में कोविड-19 से लड़ना! सो, सत्य और विज्ञान में दुनिया के तमाम देश कोविड-19 की शुरू कराई जीवन-मरण वाली मैराथन दौड़ में भागे हुए हैं। वायरस आगे है और दुनिया पीछे है।
लेकिन जय हो! जय-जय हो। भारत की जय हो, जो भारत आगे है और वायरस पीछे है! बकौल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी- हमने समस्या (वायरस) का इंतजार नहीं किया, बल्कि जैसे ही दिखी (वायरस आता दिखा) उसी समय उसे रोकने का प्रयास किया। तभी भारत की तुलना में दुनिया के सामर्थ्यवान देशों में कोरोना के केस 25 से 30 गुना बढ़े हैं। भारत जिस मार्ग पर चला है, उसकी चर्चा दुनिया भर में हो रही है। जाहिर है भारत के आगे कोरोना का सत्य और विज्ञान दोनों पानी भर रहे है! भारत में कोरोना हेडलाइन में नहीं है, बल्कि विजेता नरेंद्र मोदी हेडलाइन में हैं। भारत में कोरोना के सत्य से विज्ञान नहीं लड़ रहा है, उसे टेस्ट और इलाज की जरूरत नहीं है। भारत में तो बेचारा कोरोना झूठ व हेडलाइन मैनेजमेंट की गर्मी से अकाल मृत्यु को प्राप्त हो रहा है!

तभी चमत्कार। वाह! भारत, वाह! 21 दिन में भारत के लॉकडाउन ने चीन के भेजे वायरस को भूखा मार डाला। वायरस में यदि कुछ सांस बची भी होगी तो तीन मई तक मां भारती का काढ़ा उसकी कपाल क्रिया कर देगा। 21 अप्रैल से भारत की छुकछुक आर्थिकी फिर पटरियों पर छुक-छुक दौड़ने लगेगी। दुनिया जहां वायरस के विषाणुओं के सत्य में विज्ञान के बूते विश्वयुद्ध लड रही है वहीं भारत ने, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जादू-मंतर करके ही जीत की ओर बढ़ने का ऐलान कर दिया है। ‘लोगों ने कष्ट सह कर देश को बचाया’, ‘हमारे इस भारतवर्ष को बचाया’, ‘तपस्या, त्याग की वजह से भारत कोरोना से होने वाले नुकसान को काफी हद तक टालने में सफल रहा है।’ सोचें, दुनिया के 195 देशों में किस देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या चांसलर ने ऐसा विजय संदेश दिया है?

जाहिर है किसी ने नहीं। कौन सा देश आर्थिकी को छुकछुक ही सही (चीन पर न सोचें क्योंकि वह तो वायरस निर्यातक है) पटरी पर चलाने की तारीख, रोडमैप का ऐलान कर प्रोग्राम बना चुका है? कोई नहीं! तभी भारत आज की वैश्विक मैराथन में बिना दौड़े ही विश्व विजेता है। वायरस भारत में फेल हो गया है। स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता ने 31 मार्च को ही दुनिया को बता दिया था कि भारत में संक्रमण का कर्व चपटा हो रहा है। (Govt data reveal lockdown may have flattened the curve)। तभी हमें न टेस्ट की जरूरत है, न अस्पताल, पीपीई, डॉक्टरों की जरूरत है। वायरस है कहां जो मौत या संक्रमण का आंकड़ा बने। कहां है अस्पतालों की और दौड़ते अधमरे वायरस रोगी? दुनिया भले मैराथन में दौड़ रही है, टेस्ट कर-करके मरीजों को खुद अस्पताल पहुंचा रही है, मरीजों की, मौतों की सच्ची गिनती करके लाशों का ढेर बना रही है, वायरस उन्हें दौड़ा रहा है, मार रहा है लेकिन भारत में वायरस फ्लैट हो गया है, वह हांफते हुए भारत से भाग रहा है और भारत मैराथन में बिना भागे ही विजय पथ के मुकाम का फीता पकड़े हुए है। दरअसल दुनिया मूर्ख है जो सत्य और विज्ञान से चिपकी हुई है। भारत की तरह बाकी देशों को भी टेस्ट कराने आदि की चिंता छोड़ देनी चाहिए थी। विश्व गुरू नरेंद्र मोदी से यह गुरू ज्ञान ले लेना था कि तमाम संकटों का रामबाण नुस्खा है भाषण और हेडलाइन मैनेजमेंट। दुनिया टेस्ट कराने, विज्ञान के हथियारों, डॉक्टरों के उपयोग में वक्त जाया कर रही है उसकी जगह यदि हेडलाइन मैनेजमेंट होता, सोशल मीडिया के लंगूरों को मसला सुपुर्द होता तो अमेरिका-यूरोप भी कहते मिलते कि भला लोग कहां मर रहे हैं? इतने तो हर साल फ्लू से मरते हैं। कोरोना वायरस है ही नहीं, यह तो फ्लू है।

इसलिए एक लाख टेस्ट करा कर 15-20 हजार मरीज निकालना अब बंद। टेस्ट तभी जब लोग खास तरह से तड़पते हुए अस्पताल के बाहर पहुंचे। घर में मर रहे हैं तो रात के अंधेरे में कब्रिस्तान में दफन होने दो। लोगों की भीड़ बनवा कर उन्हें बाड़ों, झुग्गियों में तालाबंद कर दो ताकि बाड़े में भेड़-बकरियां मरें भी तो उनका मरना हेडलाइन न बने और वायरस का सारा बोझ श्मशान, कब्रिस्तानों को सुपुर्द हो जाए!

सचमुच भारत से इतर दुनिया के 194 देश सत्य और विज्ञान से व्यर्थ चिपके हैं। क्यों नहीं ये अपनी जनता को ताली-थाली-दीये की प्रोग्रामिंग में फिट कर उसे इडियट बना डालते! क्यों नहीं ये देश भारत से झूठ का, अंधविश्वास का अमृत कलश ले लेते? हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन गोलियों के अलावा अदरक, नींबू, तुलसी, हल्दी, दालचीनी, काली मिर्ची, गिलोय, नीम, जीरा शहद आदि का काढ़ा बना कर भी पीना शुरू करें ताकि कोरोना हो या उसका बाप सब भाग खड़े होंगे। वैसे ही जैसे स्वस्थ भारत को, भारत के प्रतिरोधी-शक्ति वाले निरोगी भारतीयों के शरीर को सूंघ कर कोविड-19 भारत से भाग रहा है। दिक्कत यह है कि भारत जैसा दूसरा कोई हो नहीं सकता। 195 देशों के इस इहलोक में भारत जैसा दूसरा देश है ही नहीं। बाकी देश तो भोगी हैं, जबकि भारत के हम लोग योगी हैं! तभी भारत में वायरस को क्या मिलेगा? वह तो वहां फैला है जहां मोटे-खाते-पीते-अमीर लोग हैं। वायरस को भी वहीं मजा आएगा, जहां सत्य और विज्ञान की कर्मभूमि है। चीन को भी जब यूरोप-अमेरिका की मलाई पसंद है और वह कंगले, कड़के, भूत-प्रेत-अंधविश्वास, मसाला खाते, गर्मी में झुलसते भारतीयों के प्रति हिकारत रखता है तो उसका वायरस भी वहीं पसंद करेगा जो उसके मालिक को पसंद है।

मैं भटक रहा हूं, व्यंग्य का पुट बढ़ रहा है। संक्षेप में भारत माता के हिंदू भक्तों को विधर्मियों व वायरस रूपी दैत्य दोनों के नाश का सन् 2019 में कल्कि अवतार प्राप्त हुआ है। तभी दुनिया का हर वैज्ञानिक जहा बता रहा है कि कोविड-19 सदी का सबसे विकट संकट है वही हमारे मोदीजी ने उस पर 21 दिन की चुटकी में, ताली-थाली व दीये से काबू कर लिया और विजय पथ पर छुक-छुक आर्थिकी चलाने का प्रोग्राम बना डाला।

सो, उतारो आरती! सफेद घोड़े पर सवार, कलियुग में अवतरित होने वाले भगवान कल्कि के प्राकट्य रूप में गमछा लपेटे मोदीजी ने कोविड-19को चारों खाने चित कर दिया है। साथ ही विधर्मियों को भी दौड़ा दिया है! लंगूर जन छह वर्षों से स्वप्न, जागृत और वाणी अनुभवों में भक्तों को पहले से ही संदेश दे दे रहे थे कि भक्तों की रक्षा के लिए महाशक्तियां मां भारती पर ऊर्जा का विकिरण बनवा दे रही हैं और दैत्य संकट आएगा तो प्राकट्य होगा कि मोदीजी सचमुच अवतार हैं! पर मोदीजी को ही अकेले क्यों श्रेय दिया जाए? श्रेय के सच्चे हकदार हम हिंदू हैं। हमारी आस्था, हमारा विश्वास, हमारे डीएनए की रचना है। हमने इतिहास को पहले कब सत्य और विज्ञान से जीया जो अब कोरोना के वक्त टेस्ट व अस्पताल की सोचें। हम हैं ही योगी! मतलब तमाम तकलीफों-विपदाओं को हराने वाली प्रतिरोधी काया लिए हुए। गरीबी, भूख-बीमारियों, झुग्गी-झोपड़ियों के संक्रमणों में जीने से लेकर 40-45 डिग्री की गर्मी में पकने और विश्व की सर्वाधिक प्रदूषित प्राण वायु में ढली-बनी है हमारे शरीर की प्रतिरोधी लौह काया!

तभी नया इंडिया को भी सलाम! हां, नया इंडिया के जरिए देश-विदेश को दिन-प्रतिदिन संदेश देने वाले अपने परम आदरणीय डॉ। वेदप्रताप वैदिक ने 14 मार्च को ही कह दिया था- भारत से वायरस भागा रहेगा। नया इंडिया में, हमारे वैदिकजी के लिखे उस दिन से अब तक के संदेश वाक्य ये थे- भारत में वायरस का प्रकोप ज्यादा नहीं होगा क्योंकि भारत मूल रूप से शाकाहारी देश है। भारत में तो मौसम भी अब गर्म होता जा रहा है। इसलिए शायद हम बचे हुए हैं।….जनता-कर्फ्यू की सफलता अभूतपूर्व और ऐतिहासिक रही है। ….मुझे खुशी है कि हमारे सभी प्रमुख टीवी चैनल कोरोना-युद्ध लड़ने के लिए हमारे परम प्रिय बाबा रामदेवजी को योद्धा बनाए हुए हैं।…. आसन और प्राणायाम के साथ-साथ वायुशोधक औषधियों से हवन करने की प्रेरणा मोदी और रामदेव जनता को क्यों नहीं दे रहे हैं? – वास्तव में इस मौके पर भारत सारी दुनिया के लिए काफी बड़ा मददगार सिद्ध हो सकता है।….भारत में कोरोना उस तरह नहीं फैल सकता, जैसा कि वह इटली, फ्रांस, अमेरिका और स्पेन में फैला है। इन देशों के खाने में हमारे मसालों का उपयोग नहीं के बराबर होता है। हमारे मसाले ही हमारी औषधि हैं। ….भारतीय संस्कृति के इन सहज उपायों का लाभ सारे संसार को मिले, ऐसी हमारी कोशिश क्यों नहीं है….अगले दो हफ्तों में भारत कोरोना को मात देकर ही रहेगा।….अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रुस और चीन जैसी महाशक्तियां आज त्राहि-माम, त्राहि-माम कर रही हैं। ऐसे विकट समय में भारत विश्व की आशा बन कर उभर रहा है। ….भारत ने कोरोना के सांड के सींग जम कर पकड़ रखे हैं। वह उसे इधर-उधर भागने नहीं दे रहा है। ….भारत की स्वस्थता पर सारी दुनिया दांतों तले अपनी उंगली दबा रही है।

वैदिकजी के मुंह में घी-शक्कर! कोविड-19 के वक्त में डॉ. वैदिक और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमें, भारत के हम लोगों को, मुझे-आपको जिस अंदाज में विश्व विजेता बनाया है, उससे मेरे में तो कम से कम यह विश्वास बनवा दिया है कि हम हिंदुओं का डीएनए अद्भुत, निराला, बेजोड़ है। हम मानव सभ्यता में, इतिहास की वह रचना हैं, जिसको सदा-सनातनी अपने विश्वास-आस्था के भक्तियुग में ही जीते रहना है। हमें अपने ही ख्यालों, अपने ही कुएं की हेडलाइन में, टर्र-टर्र में जीना है। हम दुनिया में होते हुए भी दुनिया के कुंए में हैं। हमें सत्य, विज्ञान-ज्ञान-बुद्धि पर पट्टी बांधे ही रहना है। आंख-कान-नाक बंद करके ही जीना है। सो, टेस्ट, टेस्टिंग का मतलब ही नहीं है। हमारे लिए सुविधाजनक, आसान होगा जो कोविड-19 लोगों को मारेगा भी तो उन्हे डायबिटीज-ब्लड प्रेशर या भगवानजी की इच्छा के नाम लिख देंगे। भला क्यों पैनिक बने? कबीरदासजी के कहे पर उलटे अंदाज में जरा विचार करें कि- मेरा तो ज्ञान, मेरा तो मानना है कि सांचा शब्द शरीर का जो मरे न मारा जाए! हम मरे तो हम मरे और हमरी मरे बलाये। मतलब हम तो हमारे सच (झूठ) में जीएंगे फिर भले दुनिया सत्य और विज्ञान की हकीकत में लड़ मर रही हो। हम तो हमारा मरना भी प्रभु इच्छा के सुपुर्द कर देते हैं। तभी तो कोविड-19 तौबा कर भारत से भागा हुआ भारतीयो को दिख रहा है!

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