गहलोत का भीलवाड़ा मॉडल

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भारत के हर सत्यवादी नागरिक को अशोक गहलोत और पिनरायी विजयन को सलाम करना चाहिए। इसलिए कि कोविड-19 के खतरे की गंभीरता को प्रारंभिक चरण में इन दो मुख्यमंत्रियों ने ही बूझा। दोनों ने प्रदेश में वायरस पहुंचने की पहली खबर आते ही मेडिकल व्यवस्था की कमान संभाल वायरस से लड़ाई शुरू कराई। केरल में भारत का सबसे पहला केस 30 जनवरी को चीन के वुहान से पहुंची मेडिकल छात्रा से आया था। तब से अब तक केरल में सिर्फ दो मौत और संक्रमण का मोटे तौर पर थमा रहना केरल का वह कमाल है, जिस पर वाशिंगटन पोस्ट से ले कर तमाम जानकार प्रदेश के स्वास्थ्य ढांचे की वाह कर रहे हैं। ऐसे ही भारत में केरल के पहले तीन केस के बाद राजस्थान में दो मार्च को जयपुर में कोरोना पीडित इतालवी पर्यटक के होने की खबर आई तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा, स्वास्थ्य मंत्रालय के अफसरों के साथ बैठक कर कोरोना संकट प्रबंधन टीम बनाई। मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव रोहित सिंह को प्रभारी बना कर जयपुर के सरकारी अस्पताल एसएमएस में टेस्टिंग, विशेष वार्ड, इलाज प्रयोग आदि की व्यवस्था बनवा कर, नियमित मीटिंगों से मॉनिटरिंग शुरू की।

तभी जब 18 मार्च को प्रदेश में भीलवाड़ा के प्राइवेट बांगड़ अस्पताल में डाटर-नर्सिंग स्टाफ में वायरस संक्रमित होने का धमाका हुआ तो गहलोत सरकार गंभीरता समझे हुए थी। जो भीलवाड़ा एपिसेंटर बनने की आंशका लिए हुए था वह बीस दिन के भीतर पूरे देश के लिए क्षेत्रवार महाकर्फ्यू, लॉकडाउन का अनुकरणीय मॉडल हो गया। हां, आज पूरा देश, देश के तमाम मुख्यमंत्री और प्रशासन अपने-अपने गंभीर प्रभावित हॉटस्पॉट चिन्हित कर वहां भीलवाड़ा मॉडल के लॉकडाउन में वायरस पर काबू पाने की कोशिश में हैं। ध्यान रहे भारत की असलियत जो जानता है उन्हें पता है कि प्रदेशों में काम तभी होता है जब मुख्यमंत्री गंभीर हो, फैसले ले कर आदेश दे। मुख्यमंत्री सोचे नहीं, कहे नहीं तो अफसरशाही व प्रदेश के मंत्री कुछ नहीं कर सकते हैं। तभी कोविड-19 के खिलाफ भारत की लड़ाई में सारा दारोमदार मुख्मंत्रियों पर हैं। इस बात को प्रधानमंत्री मोदी ने भी अब समझा है तभी पहला लॉकडाउन उन्होंने बिना मुख्यमंत्रियों से बात किए, जमीनी हकीकत पर बिना सोच विचार के किया लेकिन अब वे मुख्यमंत्रियों से बात कर उन्हें फैसले में साझेदार बनाने का मैसेज देते हुए फैसला कर रहे हैं। कलेटर राजेंद्र भट्ट की जितनी तारीफ की जाए वह कम इसलिए है कि उन्होंने लोगों में भरोसा बनाने में बेइंतहा भागदौड़ की।

भीलवाड़ा से अपने जगदीश जोशी ने बार-बार मुझे लगातार फीडबैक दी है कि पूरा प्रशासन मोबलाइज रहा। एसपी डॉ हरेंद्र, सीएमएचओ डॉ. मुश्ताक अहमद, सीएएओ अरूण गौड़, मेडिकल कॉलेज के राजन नंदा से लेकर तहसील स्तर पर हर तहसीलदार एटिव था तो कांग्रेसभाजपा के नेता भी सक्रिय। प्रशासन ने प्राइवेट अस्पतालहोटल आदि जरूरतों को नियंत्रण में लिया तो घर-घर सर्वे का रिकार्ड बनवाया। टेस्ट हुए। यहीं नहीं दो अप्रैल को महाकर्फ्यू के रूप में लॉकडाउन को और सख्त बना लोगों को पूरी तरह घरों में बंद रखा गया। तब घर-मोहल्लों में प्रशासन ने खुद राशन-दूध पहुंचवाया। यों संक्रमण फैला नहीं या कथित एपिसेंटर फुस्स हुआ? मैं पहला निर्णायक कारण यह मानता हूं कि टेस्टिंग और ट्रेसिंग का काम भीलवाड़ा में तुरंत इसलिए शुरू हो सका योंकि जिस बांगड़ अस्पताल का स्टॉफ पॉजिटिव लक्षण लिए हुए था उस अस्पताल में मरीजों की लिस्ट का रजिस्टर था। मतलब डॉटर और स्टॉफ के संपर्क में कौन आया, यह जानकारी थी, इसलिए प्रशासन ने उसे खोज निकाला और हजारों लोगों को वारंटाइन याकी अलग-थलग रखा जा सका।

बडा पेंच भारत में हो रहे कोरोना टेस्ट हैं। मैं अभी भी भीलवाड़ा को सुरक्षित नहीं मानता हूं। 23 दिन के बाद भी भीलवाड़ा को महीने-दो महीने लगातार लॉकडाउन में रखना होगा योंकि 36 सौ सेंपल में से जयपुर की लैब ने जो टेस्ट नतीजे निकाले उसमें सौ फीसदी सत्यता की गांरटी कोई नहीं ले सकता। अमेरिका, न्यूयार्क के नामी अस्पतालों की नामी लैब के डॉटरों की जुबानी यह सत्य है 30 प्रतिशत टेस्ट ‘मिस’ हो सकते हैं। भारत सरकार ने, उसकी आईसीएमआर संस्था ने सरकारी टेस्ट की लैबों में आपाधापी याकि बिना सघन ट्रेनिंग के टेस्टिंग शुरू कराई। भारत अब संक्रमण की उस अवस्था में पहुंच चुका है जहां जयपुर का रामगंज इलाका हो या मुंबई का धारावी या इंदौर का खजराना और दिल्ली-एनसीआर के हॉटस्पॉट के पॉजिटिव मामलों पर ट्रेसिंग और टेस्टिंग वाली एप्रोच से काम नहीं चलना है। अब तो मास टेस्टिंग याकि दक्षिण कोरिया की तरह ह़ॉटस्पॉट इलाके के घरों में प्रति लाख लोगों के पीछे कम से कम हजार टेस्ट का सैंपल और क्वरैंटाइन व अस्पताल दाखिले का ही रास्ता बचता है।

हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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