कल मैंने कुछ राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों से बात की और उनसे निवेदन किया कि जो लाखों दिहाड़ी मजदूर, कर्मचारी और खेरची विक्रेता अपने गांवों की तरफ भाग रहे हैं, उन्हें वे यात्रा की सुविधा दें। उन्होंने इसकी तुरंत व्यवस्था की। उन्हें किन शब्दों में धन्यवाद दिया जाए? उन्होंने तालाबंदी को भंग नहीं किया बल्कि उसकी बर्दाश्त को बढ़ाया है। मुझे कई मित्रों ने फोन करके बताया कि उनकी वेबसाइटों और फेसबुक पर 30-30 लाख, 15-15 लाख लोगों ने मेरे कल के लेख को पढ़ा और उसके सुझावों का समर्थन किया।
आज मैं अपने सभी मुख्यमंत्रियों से निवेदन करता हूं कि वे ये तो कहते रहें कि लोग शहर छोड़कर गांवों की तरफ कूच न करें लेकिन फिर भी वे लोगों को अपने ठिकानों पर पहुंचाने की पूरी तैयारी करें। सबको अपनी जान प्यारी है। जो भी आवश्यक सावधानी है, उसका वे ध्यान अपने आप रखेंगे। उन्हें डंडे के जोर से डराया न जाए।
अब मैं देश के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों से निवेदन कर रहा हूं कि वे देश की सभी पंचायतों, नगरपालिकाओं, नगर निगमों और विधानसभाओं के सदस्यों से कहें कि वे अपने-अपने निर्वाचन-क्षेत्रों में जाएं और हर घर को मुफ्त राशन बटवाएं। वे हर घर पर जैसे वोट लेने जाते हैं, वैसे ही अब अन्न देने जाएं। दिल्ली में मुख्यमंत्री केजरीवाल हर घर को 7.50 किलो राशन बंटवा रहे हैं। जिस घर को नहीं लेना है, वह राशन न ले। लेकिन गांवों में, कस्बों में और शहरों में किसी भी नागरिक को भूखे नहीं मरने देना है।
सब घरों में अगले दो हफ्ते का राशन जरुर पहुंच जाएं। मुझे पूरा विश्वास है कि हमारे हजारों वर्षों से चले आ रहे घरेलू नुस्खों के दम पर हम इस महामारी पर जल्दी ही काबू पा लेंगे। ये नुस्खे चाहे कोरोना का सीधा इलाज न करें लेकिन वे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को काफी बढ़ा देते हैं। पिछले एक सप्ताह से मैं लगभग रोज इस मुद्दे पर जोर दे रहा हूं। मुझे खुशी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्यों की आज बैठक बुलाई थी। हमारे नुस्खों का फायदा सारे विश्व को मिलना चाहिए।
यह भारत दानवीरों का देश है। यह बात इस संकट के समय सिद्ध हो रही है। देश के सेठों ने अपनी तिजोरियां खोल दी हैं। छोटे-मोटे शहरों में वे सैकड़ों-हजारों लोगों के मुफ्त भोजन की व्यवस्था कर रहे हैं। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के 11 करोड़ सदस्यों का विशेष दायित्व है कि वे कोरोना-युद्ध में भारत को विजयी बनाएं।
डॉ वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)