भारत के करोड़ों लोगों ने तालाबंदी पर जैसा अमल किया है, वह अभूतपूर्व तो है ही, सारी दुनिया के लिए भी प्रेरणादायक है। दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र ने यह सिद्ध किया है कि वह अनुशासन और संयम के मामले में भी किसी से पीछे नहीं है। व्यापक अशिक्षा और गरीबी के बावजूद कोरोना से लड़ने में भारत के लोगों ने बड़ी जागरुकता का परिचय दिया है।अभी तक कोरोना का प्रकोप काबू में ही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशीवासियों को संबोधित करने के नाम पर देश के टीवी चैनलों का लगभग एक घंटा बेकार कर दिया। उनका जनता-कर्फ्यू का पहला संबोधन अदभुत था लेकिन इसी तरह बार-बार टीवी चैनलों पर आकर वे उबाऊ एकालाप और निरर्थक संवाद करते रहे तो जो विलक्षण अभियान उन्होंने शुरु किया है, वह फीका पड़ जाएगा।
उनकी तुलना में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने कहीं अधिक सार्थक पहल की है, हालांकि योगी द्वारा रामलला की उत्सवर्पूक मूर्ति-प्रतिष्ठा की आलोचना हो रही है। इन दोनों मुख्यमंत्रियों ने अपने प्रदेशों की जनता के सामने आनेवाली रोजमर्रा की कठिनाइयों का समाधान करने की तरकीबें निकाली हैं।लाखों गरीबों को राशन देने, वंचितों के खातों में पांच-पांच हजार रु. डलवाने, कोरोना के डाक्टरों और नर्सों को आवास-सुरक्षा देने, आवश्यक वस्तुओं की दुकानें खुली रखने और उन वस्तुओं को जरुरतमंद लोगों के घरों तक पहुंचाने की व्यवस्था करने आदि के कदम ऐसे हैं, जो प्रत्येक मुख्यमंत्री के लिए भी करणीय हैं। इस मामले में प्रधानमंत्री की उदासीनता आश्चर्यजनक है।
स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन ने काफी सराहनीय सावधानियां लागू की हैं लेकिन इन सावधानियों और तालाबंदी से पैदा होनेवाले संकट का मुकाबला करने की रणनीति प्रधानमंत्री के पास तैयार होनी चाहिए। कहीं इस तालाबंदी का हाल भी नोटबंदी जैसा न हो जाए ! प्रचारमंत्री के तौर पर नौकरशाहों के मार्गदर्शन में घोषणाएं करना तो ठीक है लेकिन प्रधानमंत्री के रुप में उन्हें सफल करना भी जरुरी है।तालाबंदी के लिए ‘लाकडाउन’ शब्द का प्रयोग उक्त संदेह को पुष्ट करता है। विषाणु-संक्रमण के निरोध के लिए भारत में चली आ रही हजारों वर्षों की परखी हुई परंपरा की उपेक्षा इसका दूसरा प्रमाण है। भारत की जनता तो कोरोना-युद्ध के लिए कमर कसे हुए है, जैसे कि वह नोटबंदी के लिए कसे हुए थी लेकिन इस तालाबंदी की पूर्णाहुति यदि नोटबंदी की तरह हुई तो इसके बड़े दुष्परिणाम होंगे।
डॉ वेद प्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं )