नागरिकों की निगरानी आया दौर मशहूर लेखक जॉर्ज ऑरवेल ने ‘1984’ में जिस राज्य की कल्पना की थी क्या भारत उस तरह का राज्य बनने की ओर बढ़ रहा है? यह बहुत डरावना सवाल है, जिसका सकारात्मक जवाब देश के 130 करोड़ नागरिकों के जीवन पर बड़ा असर डाल सकता है। भारत में पिछले कुछ समय से इस बात की चर्चा चल रही है कि सरकार नागरिकों की निजता का हनन करने के काम कर रही है। जिस समय से आधार की परिकल्पना हुई उसी समय से निजता खत्म होने और भारत के निगरानी स्टेट में बदल जाने की आशंका भी जताई जाने लगी। पर बाद में जब हर चीज को आधार से जोड़ा जाने लगा तब यह खतरा बढ़ गई। इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने आधार को लेकर एक अहम फैसला दिया और निजता के अधिकार पर भी फैसला दिया। पर केंद्र सरकार जिस तरह का डाटाबेस, वेबसाइट और निगरानी का तंत्र बनाने पर काम कर रही है उससे सारे फैसले बेमानी हो जाएंगे।
सबसे पहले तात्कालिक मामले का जिक्र जरूर है। भारत में दूरसंचार की सेवा करने वाली निजी कंपनियों ने कहा है कि सरकार ने नागरिकों का कॉल डाटा रिकार्ड यानी सीडीआर मांगा है। तीन खास तारीखों- दो, तीन और चार फरवरी का डाटा कंपनियों से मांगा गया है। इसे लेकर सवाल उठा और विवाद छिड़ा तो सरकार ने संसद में कह दिया कि कॉप ड्रॉप की शिकायतों को दूर करने के लिए सीडीआर मांगा जा रहा है। हालांकि यह समझना जरा मुश्किल है कि सीडीआर से कॉल ड्रॉप की समस्या का कैसे समाधान होगा, जबकि सारे तकनीकी जानकार यह जानते हैं कि कॉल ड्रॉप क्यों हो रहे हैं। कंपनियों के पास बुनियादी ढांचा नहीं है और उन्होंने जरूरत से ज्यादा लोगों को कनेक्शन दिया हुआ है। इसी वजह से कॉल ड्रॉप हो रहे हैं। तभी ऐसा लग रहा है कि सरकार किसी प्रयोग में लगी है, जिसके लिए नागरिकों के सीडीआर मांगे जा रहे हैं। ध्यान रहे भारत में नागरिकों के कॉल रिकार्ड करने सीडीआर मांगने के लिए कुछ एजेंसियां अधिकृत हैं और उनके अलावा किसी और को इसका अधिकार नहीं है।
बहरहाल, यह एक छोटे से प्रयोग की झलक है। बड़ा प्रयोग अलग हो रहा है, जिसमें केंद्र सरकार की अनेक एजेंसियां शामिल हैं। यूनिक आइडेंटिटी ऑथोरिटी से लेकर नीति आयोग और इसरो तक की इसमें भूमिका बताई जा रही है। एक अमेरिकी वेबसाइट ने सरकार के कुछ दस्तावेजों के आधार पर इसका आकलन किया है और उसका मानना है कि अगर सरकार का प्रयोग सफल रहा तो देश के हर नागरिक की हर गतिविधि पर नजर रखी जा सकेगी। यहां तक कि व्यक्ति और उसके परिवार के हर समारोह, कार्यक्रम, जीवन-मरण, आने-जाने तक का ब्योरा रखा जाएगा। उसकी 24 घंटे तक निगरानी संभव हो पाएगी। इसके लिए आधार के डाटा का इस्तेमाल किया जा सकता है। असल में सरकार एक ऐसा डाटाबेस बनाना चाह रही है, जो अपने आप अपडेट हो और जिसमें से जब जो चीज चाहें उसे सर्च किया जा सके। केंद्र सरकार पांच साल से नेशनल सोशल रजिस्टर बनाने की योजना पर काम कर रही है। इसमें आधार के डाटा का इस्तेमाल किए जाने की खबर है और साथ ही सामाजिक-आर्थिक जनगणना के आंकड़े भी शामिल किए जा सकते हैं। इस साल की जनगणना जितने बड़े पैमाने पर डिजिटल तौर पर की जा रही है उससे भी इस परियोजना में काफी मदद मिल सकती है। यह भी कहा जा रहा है कि अदालत ने भले आधार की हर काम के लिए अनिवार्यता खत्म कर दी है पर अब भी ढेर सारी सेवाएं इससे जुड़ी हैं। तमाम लोगों के पैन कार्ड को आधार से जोड़ दिया गया है और केंद्रीय चुनाव आयोग मतदाता पहचान पत्र को भी आधार से जोड़ने की योजना पर काम कर रहा है। सामाजिक कल्याण की ज्यादातर योजनाएं इससे जुड़ी हुई हैं। लोगों के फोन नंबर आधार से लिंक्ड हैं और बैंक खाते भी इससे जुड़े हुए हैं। अब अगर कोई ऐसा डाटाबेस बना दिया गया, जहां ये सारी सूचनाएं एक साथ हों और एक क्लिक पर सर्च की जा सकें तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि नागरिकों की निगरानी कितनी आसान हो जाएगी।
(लेखक अजीत कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं )