जब मैंने यस बैंक के कारनामों के बारे में सुना तो सबसे पहले मैंने उसे स्थापित करने वाले राणा कपूर के बारे में जानना चाहा कि उन्होंने क्या कभी संस्कृत पढ़ी? इसकी वजह यह थी कि लगता हैं कि उन्हें संस्कृत के श्लोकों से काफी लगाव था। संस्कृत का एक जाना-माना श्लोक है जिसका अर्थ है कि जब तक जियो सुख से जियो, कर्ज लेकर घी पियो। राणा कपूर ने इसमें कुछ बदलाव किया। उन्होंने यस बैंक स्थापित करने के बाद कर्ज लेने की बजाए लोगों को कर्ज देकर न केवल घी दिया बल्कि घी के गढ्ढे में डुबकियां भी लगाई। पता चला कि वे मुनाफा कमाने के लिए घाटे में चल रही कंपनियों को मनमानी शर्तों पर कर्ज देने में माहिर हो गए थे। यस बैंक के कभी कर्ताधर्ता रहे राणा कपूर का जन्म 1957 में दिल्ली में ही हुआ था। उन्होंने फ्रैंक एंथनी पब्लिक स्कूल व श्रीराम कॉलेज ऑफ कामर्स से पढ़ाई की व फिर एमबीए करने के बाद अमेरिका चले गए। उन्होंने 1980 में बैंक ऑफ अमेरिका में मैनेजमेंट ट्रेनी से अपनी नौकरी शुरू की व फिर एशियाई देशों में बैंकिंग का कामकाज देखने की जिम्मेदारी संभालाने लगे। जब फरवरी 1995 में राबो बैंक भारत में अपना धंधा शुरू करने की सोच रहा था तब राणा कपूर व उनके जीजा अशोक कपूर व किसी हरकीरत सिंह ने इस बैंक के अफसरों से मिलकर भारत में बैंक व एक फाइनेशियल कंपनी शुरू करने के बारे में बातचीत की।
हरेक ने तीनतीन करोड़ रुपए की लागत से यस बैंक की स्थापना की। राणा कपूर का इस बैंक में 26 फीसदी हिस्सा, अशोक कपूर का 11 फीसदी हिस्सा था। जबकि राबो बैंक का 20 फीसदी हिस्सा था। अशोक कपूर की 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले में मौत हो गई। राणा कपूर ने बैंक का सीईओ बनने के बाद मनमाने तरीके से नुकसान में चली कंपनियों को ऊंची दरो व अपनी शर्तों पर कर्ज देना शुरू कर दिया। उसका धंधा बहुत होशियारी भरा था। उसे अनिल अंबानी की कंपनी व दीवान हाऊसिंग फाईनेंस कारपोरेशन के लिए कंपनियों को लोन दिए । कहते है इसकी एवज में इन कंपनियों ने उसकी पत्नी बिंदु व तीनों बेटियों से संबंधी कंपनी, ट्रस्ट को 600 करोड़ रुपए का कर्जा दिया। उसने देश-विदेश में महंगे मकान खरीदे। उसने दिल्ली के सबसे महंगे इलाके अमृता शेरगिल मार्ग पर पहले उद्योगपति गौतम थापर के मकान को 600 करोड़ रुपए का कर्ज देकर गिरवी रखा व फिर कर्ज न चुका पाने के कारण इसे 380 करोड़ रुपए में खरीद लिया। इसके साथ उसकी पत्नी बिंदु ने ब्लिस अडोब प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी स्थापित की। माना जाता है कि यह संपत्ति खरीदने के लिए ही मार्च 2017 में इस कंपनी का गठन किया गया था। उसने मुंबई के उद्योगपति मुकेश अंबानी के बहुचर्चित एंटिला घर के साथ बने इंडियाबुल्स द्वारा बनाए गए ब्लैट खरीदे।
उसने इस पैसे से अमेरिका, ब्रिटेन व फ्रांस में भी संपत्तियां खरीदी। प्रवर्तन निदेशालय को पता चला कि कपूर अपनी सारी संपत्ति बेचकर देश के बाहर भाग जाना चाहता था। उसकी हैसियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश के जाने-माने गांधी परिवार की प्रियंका गांधी ने खुद उसे चिट्टी लिखकर अपने दिवंगत पिता राजीव गांधी की एमएफ हुसैन द्वारा बनाई गई उसकी पेंटिग बेचने की बात कही थी। यह पेंटिग एमएफ हुसैन ने राजीव गांधी को कांग्रेस की स्थापना की शताब्दी वर्ष 1985 में उन्हें भेंट की थी। इस संबंध में प्रियंका गांधी द्वारा उन्हें लिखा गया व उनसे निकटता दर्शाने वाला कांग्रसी नेता मिलिंद देवड़ा के पत्र इस समय सोशल मीडिया पर घूम रहे हैं। राणा कपूर ने यह पेंटिग दो करोड़ रुपए में खरीदी थी। यह बताता है कि हमारे देश की राजनीति में जाने-माने लोन भी कितनी कम राशि में धोखेबाज लोगों के साथ खरीद-फरोख्त का धंधा कर उनकी हैसियत बढ़ा देते हैं। अब भाजपा प्रियंका वाड्रा व उनके पति राबर्ट वाड़ा को बंटी-बबली करार दे रहे हैं। कहते है प्रवर्तन निदेशालय ने यह पत्र राणा कपूर के स्मार्टफोन से पकड़े थे। राणा कपूर पर बैंक से 4000 करोड़ रुपए अपने लिए जुटाने का आरोप है। उसकी तीनों बेटियों से पूछताछ की जा रही हैं। उनकी बेटी रोशनी कपूर को मुंबई हवाई अड्डे पर बाहर जाने स पहले ही रोक लिया गया।
उसकी पत्नी बिंदू कपूर व बेटियों राखी कपूर, राधा कपूर व रोशनी कपूर के खिलाफ लुक आऊट नोटिस जारी किया जा चुका है। इसके बावजूद वे नोटिस की अनदेखी कर बाहर भागने की कोशिश में थे। याद दिला दें कि 2017 में ही यस बैंक ने 6355 करोड़ की रकम को बैड लोन के खाते में डाल दिया था। अगले साल रिजर्व बैंक ने उस पर कर्ज देने व बैलेंसशीट में गड़बड़ी करने के आरोप लगाते हुए उसे जबरन चेयरमैन पद से हटा दिया था। किसी को चेयरमैन पद से हटाने का मामला बैकिंग इतिहास का पहला मामला है। उसे अब प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार कर लिया है। यह बात समझ में नहीं आती है कि भारतीय रिजर्व बैंक व सरकार के आम अफसरों को पैसा लूटे जाने का पता लगने में इतना समय यों लग जाता है? कांग्रेसी कह रही हैं कि मोदी के सत्ता में आने के बाद यस बैंक अपने कार्यक्रम को प्रायोजित करता था जिनमें मोदी मुख्य अतिथि के रूप में जाया करते। दरअसल साा व धन का संबंध बहुत पुराना है। देखा गया है कि आम जनता का पैसा कैसे वापस आ पाता है? जब सत्ता संभालने पर विदेशों में जमा काला धन वापस लाने का दावा करने वाली मोदी सरकार चवन्नी तक वापस नहीं ला पायी व दूसरी और उसी देश में ही धनपशुओं द्वारा बैंकों को चरने की खबरें आने लगी तो आम आदमी का पैसा कैसे बचेगा यह यक्ष प्रश्न बनकर सबके आगे मौजूद है?
विवेक सक्सेना
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)