भारत के विदेश मंत्री ने कहा कि कोई भी देश सभी को एक तरह से नागरिकता प्रदान नहीं करता। हर जगह उसके अपने हित होते हैं, जिसके आधार पर किसी अन्य देश के बाशिन्दे को उसकी अर्जी पर नागरिकता दिए जाने का विचार किया जाता है। यूनाइटेड नेशन्स ह्यूमन राइट कमीशन यानि एनएचआरसी री परिधि में भारत के संसद से पारित नागरिकता संशोधन कानून नहीं आता। इसमें किसी के मानवाधिकार का हनन का कोई प्रावधान नहीं है। एक सेमिनार में उन्होंने बड़ी स्पष्टता से यह रेखांकित किया कि सीएए के मसले पर यूनएनएचआरसी का सुप्रीम कोर्ट में न्याय मित्र के तौर पर सुने जाने संबंधी याचिका दिया जाना औचित्यहीन है, इसकी कोई बुनियाद ही नहीं है। क्योंकि इस नये संशोधित नागरिकता कानून में भारत के तीन पड़ोसी देशों के प्रताडि़त अल्पसंयकों को राहत के साथ सम्मान देने की पहल की गई है।
इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट में दो सौ के आसपास याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं, और अभी आगे भी इस तरह की अर्जियां शामिल हो सकती हैं। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बड़ी दृढ़ता के साथ देश का पक्ष रखा है, प्रकारान्तर में इसकी तह तलाशे तो यह यथार्थ भी स्पष्ट जो जाएगा कि कई दिग्गज देश, जिन पर वाकई धार्मिक आधार पर मानवाधिकार हनन के मामले चलाये जा सकते हैं, शामिल हैं लेकिन यूएनएचआरसी इस बारे में सोच भी नहीं सकता। उसे पता है कि यूएनओ की फंडिंग में अमेरिका और चीन जैसे ताकतवर देशों की बड़ी हिस्सेदारी है। पर यहां विचारणीय प्रश्न यह है कि वो कौन-सी स्थितियां पैदा हो गई हैं कि यूएनएचआरसी को भी भारत के अन्दुरूनी मामले में टांग अड़ाने का अवसर मिल गया है। जाहिर है, यह इस समय की सबसे बड़ी विडंबना है कि अन्तर्विरोधों से घिरा और खुद में ही अलग-थलग विपक्ष मौजूदा सरकार की छवि बिगाडऩे की गरज से बीते कई मौकों पर ऐसे बयान देता रहा है, जिससे बाहरी दखलंदाजी का संबल प्राप्त होता है।
सोचने वाली बात यह है कि आखिरकार नुकसान तो देश का ही होता है। वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है, इस दौड़ में विपक्ष और सिविल सोसाइटी के कुछ चेहरे भी शामिल हो गए हैं। दिल्ली दंगे के आरोपी निलंबित पार्षद ताहिर हुसैन को लेकर आम आदमी पार्टी के नेता विधायक अमानतउल्ला खां ने ट्वीट किया है कि देश में हालात इतने बुरे हो गए हैं कि मुसलमान होना गुनाह हो गया है। सपा के अबू आजमी ने भी आप विधायक के सुर में सुर मिलाया है। विसंगति यह है कि इस तरह के बयान देने में सत्तापक्ष से जुड़े लोग भी पीछे नहीं है। कपित मिश्रा, अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा जैसे बयानवीर शामिल हैं। इसीलिए प्रधानमंत्री ने कई बार संयमित बयान दिए जाने पर जोर दिया है।
हालांकि कई बार उन्होंने इस बारे में ताकीद की है लेकिन उसका आनुपातिक सकारात्मक असर नहीं पड़ा है। दिल्ली दंगे में ही भाजपा अपने विरोधी दलों पर हमलावर नहीं हो पाई तो सिर्फ इसलिए कि उसके नेता ही भड़काऊ बयान देने में पीछे नहीं रहे। बस तसल्ली यही है कि अभी तक दिल्ली दंगे के तार किसी भाजपा नेता से नहीं जुड़ पाए हैं। लेकिन इसकी वजह से चल रही जांच को सियासी रंग देने की कोशिश की जा रही है। फिलहाल उम्मीद की जानी चाहिए कि देश एक बार फिर पटरी पर लौट आएगा। होली के अवसर पर यही उम्मीद और दुआ की जा सकती है।