नागरिकता संशोधन : देश की चाबी अदालत के हाथ

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नागरिकता संशोधन विधेयक के बारे में सर्वोच्च न्यायालय ने जो राय अभी दी है, उससे देश के गैर-भाजपाई राज्य नाखुश होंगे और वे सब लोग भी, जो इस कानून के विरुद्ध सारे देश में प्रदर्शन आदि कर रहे हैं। कई राज्यों ने तो नागरिकता रजिस्टर और उक्त कानून को लागू करने से मना कर दिया है। कई विधानसभाएं इस कानून के खिलाफ प्रस्ताव भी पारित कर रही हैं।

ऐसी स्थिति में सब सोचते थे कि सर्वोच्च न्यायालय इस मामले पर तुरंत फैसला देगा और देश में फैला तनाव खत्म हो जाएगा लेकिन अदालत भी क्या करती ? उसके पास इस कानून के विरुद्ध 144 याचिकाएं आ गई हैं। उसके लिए यह जरुरी था कि वह सरकार के तर्क भी सुनती। बिना सरकारी जवाब को सुने वह फैसला करती तो वह भी ठीक नहीं होता।

उसने अब सरकार को एक माह का समय दे दिया है। हो सकता है कि एक माह के बाद भी इस मामले पर लंबी बहस चले। इतने वक्त में हजारों शरणार्थियों को सरकार शरण दे देगी। उन्हें शरण देने से भाजपा सरकार को यह फायदा है कि वे भाजपा के आजीवन भक्त बन जाएंगे। लेकिन अदालत ने यह भी कहा है कि जरुरत पड़ने पर सरकार द्वारा दी गई नागरिकता को अवैध भी घोषित किया जा सकता है।

इसी प्रकार अदालत ने त्रिपुरा और असम के अवैध नागरिकों की सुनवाई भी अलग से करने का निर्णय किया है। नागरिकता संबंधी सभी मामलों की सुनवाई के लिए उसने 5 जजों की एक संवैधानिक पीठ बनाने की भी घोषणा की है। आशा करनी चाहिए कि एक-डेढ़ माह में अदालत इस मामले में अपना अंतिम फैसला दे देगी। यदि उसका फैसला इस कानून के विरुद्ध आ गया तो सरकार की इज्जत भी बच जाएगी और आंदोलनकारी भी चुप हो जाएंगे।

यदि अदालत ने इस कानून को सही ठहरा दिया तो सरकार का पक्ष भारी जरुर हो जाएगा। लेकिन देश में कोहराम भी मच सकता है। देश की युवा-शक्ति बगावत की मुद्रा धारण कर सकती है। वह ऐसे कई नए मुद्दे इजाद कर सकती है, जो सरकार का चलना भी मुश्किल कर सकते हैं। अहिंसक आंदोलन हिंसक रुप भी धारण कर सकता है। अब अदालत के हाथ में है, यह देखना कि देश में शांति और व्यवस्था भंग न हो ताकि आसन्न आर्थिक संकट का यह सरकार मुकाबला कर सके।

डा. वेदप्रताप वैदिक
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं )

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