कई राष्ट्र प्रमुखों ने संकट के दौर में सत्ता संभाली है। अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन के सामने चार संकट हैं। कोरोना वायरस महामारी का कहर जारी है। दूसरी ओर वैक्सीनेशन का अभियान व्यवस्थित तरीके से नहीं चल रहा है। वायरस ने आर्थिक तबाही मचाई है। एक करोड़ से अधिक अमेरिकी बेरोजगार हो चुके हैं। दो तिहाई बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। आठ में से एक व्यक्ति को भोजन नसीब नहीं होता है। रंगभेद के आधार पर समाज बुरी तरह विभाजित है। राजनीतिक दुश्मनी ने लोकतंत्र में अमेरिकियों की आस्था पर जहरीला असर डाला है। ट्रम्प के 80% से अधिक समर्थक मानते हैं कि चुनाव में धांधली हुई है। बाइडेन ने 20 जनवरी को सत्ता संभालते समय अपने पहले भाषण में इन समस्याओं को स्वीकार किया है। उन्होंने देश के घावों पर मरहम रखने के संकेत दिए हैं।
चुनाव अभियान के दौरान बाइडेन ने अमेरिका की आत्मा को बहाल करने की शपथ ली थी। यह बहुत कठिन काम है। फिर भी, अगले कुछ महीनों में नाटकीय सुधार की उम्मीद कायम है। अमेरिका को सबसे पहले वायरस पर नियंत्रण करना होगा। वैक्सीनेशन का कार्यक्रम यदि पोलियो वैक्सीन अभियान से थोड़ा कमतर भी चलेगा तो जल्द ही बेहतर नतीजे आएंगे।
वायरस पर काबू पाने की स्थिति में अमेरिका की आर्थिक स्थिति सुधरने में मदद मिलेगी। 2008 के वित्तीय संकट से आज की स्थिति अलग है। सरकार के भारी आर्थिक पैकेज देने की वजह से 2020 में लोगों के पास खर्च करने के लिए पर्याप्त पैसा आया। बैंकिंग सिस्टम अच्छी हालत में है। आर्थिक तंगी व्यापक नहीं है लेकिन कई कारोबारों और सेवाओं से जुड़े कामगारों में ज्यादा है। सामान्य स्थिति की वापसी से ऐसी सेवाएं और कारोबार फिर दौड़ने लगेंगे। बाइडेन द्वारा वैक्सीनेशन, बेरोजगारी भत्ते के लिए अधिक पैसा देने और बच्चों के लिए कर छूट के विस्तार का अच्छा असर पड़ेगा।
राजनीतिक संकट जल्द दुरुस्त नहीं होने वाला हैं। रिपब्लिकन पार्टी का एक व्यक्ति (डोनाल्ड ट्रम्प) के प्रति वफादार होना, नस्लवादी गुटों की एकजुटता और झूठ का उदय होने में वर्षों लगे हैं। फिर भी,एफबीआई जैसी जांच एजेंसियां घरेलू आतंकवाद के खतरे की अनदेखी करती रहीं। बाइडेन ने अपने भाषण में कानून के शासन और समानता पर जोर दिया है। इससे अमेरिकी राजनीति में गर्मी कम होगी और अन्य संभावनाओं के दरवाजे खुलेंगे।
बीते चार सालों ने अमेरिका के लिए विदेशों में समस्याएं खड़ी की हैं। विदेशी नेताओं के दिमाग में है कि जिन ताकतों ने ट्रम्प को सत्तारूढ़ किया है, वे भविष्य में किसी अन्य राष्ट्रपति के साथ वापसी कर सकती हैं। इसलिए अमेरिका द्वारा किए जाने वाले समझौतों को अस्थायी समझा जाएगा। बाइडेन को विदेश नीति के मोर्चे पर कई असंभव काम करना होंगे। बाइडेन के सामने कदम-कदम पर कड़ी चुनौतियां हैं।
कई क्षेत्रों में भेदभाव बढ़ा अमेरिका के सामने ऐसी चुनौतियां हैं जिससे निपटने के लिए सरकार की मदद जरूरी है। अन्य अमीर देशों के मुकाबले अमेरिका में स्कूल तेजी से नहीं खुले हैं। स्कूलों मंे नए छात्रों की भर्ती में गिरावट आई है। इससे पता लगता है कि कई बच्चे शिक्षा से वंचित हो चुके हैं। अश्वेतों और हिस्पेनिक मूल के लोगों की अधिक मौतें बताती हैं कि स्वास्थ्य का सीधा संबंध रंग और नस्ल से है। ट्रम्प के शासन में सभी संस्थाएं खोखली हो गईं डोनाल्ड ट्रम्प के चार वर्षीय शासनकाल में संस्थाएं खोखली हो गई। गड़बड़ी और घोटालों पर रोक कमजोर पड़ी। ट्रम्प ने जाते-जाते जिन लोगों को माफ किया है,उनमें एक डॉक्टर शामिल है। उसने सैकड़ों बुजुर्गों की आंखों का गैरजरूरी इलाज किया। उन्होंने अपनी सरकार के एक आदेश को रद्द कर दिया जिसके तहत अधिकारियों के लॉबिंग करने पर रोक थी। लगभग 70% अमेरिकी सोचते हैं कि दूसरी पार्टी के सदस्य अमेरिका के लिए खतरा हैं। 50% सोचते हैं कि वे सिरे से शैतान हैं।
थॉमस एल. फ्रीडमैन
(लेखक वरिष्ठ अमेरिकी पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)