कोई सवाल न कर कोई जबाब न पूछ

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किसी शायर ने लिखा है-
दे रहे हैं इसलिए जंगल में धरना जानवर, एक चूहे को रिहाइश के लिए बिल चाहिए। पर यहां तो मामला उलटा है। एक चूहे की वजह से घर में दाना-पानी बंद होने की नौबत है। घर ज्यादा पुराना नहीं है। पहली बार बिना अनुमति के किसी जीव ने घर में घुसपैठ की है। अपनी बात करूं तो जीवों के साथ रहने पर बचपन से ही भरोसा है। छुटपन में पीली रोशनी वाले बल्बों के करीब पतंगों का शिकार करतीं छिपकलियों को देखने में क्या आनंद आता था। ठीक वैसे ही जैसे आजकल के बच्चों को डिस्कवरी चैनल पर सवाना के जंगलों में हिरणों का शिकार क रते शेरों को देखकर आता है। सुबह नाश्ते के वक्त एक नुचे पंखों वाला कौआ ठीक समय पर दीवार पर आकर बैठ जाता था। हम लोग नमक पारा उछालते और वह हवा में ही गपच लेता। एक नेवला भी था जो नाली के रास्ते आकर जूठे बर्तनों में बचे दाल-चावल की दावत उड़ाता अक्सर दिखता। वह बचपन था। अब यह संभव नहीं। घरवाली नहीं चाहती दुनियाभर के ईको-सिस्टम को बनाए रखने का ठेका गोमतीनगर में नए बसे इस मकान का मालिक अपने कधे पर ले। चूहा तीन दिन पहले ही घर में दाखिल हुआ है।

जैसे ही उस पर श्रीमती जी की नजर पड़ी, तब से घर में तूफान आया हुआ है। चूहे की मजबूरी हो गई है कि वह कहीं कोने में दुबक कर रहे। जैसे ही वह निगाह में आता है। एक बार फिर सबको बचपन का एक खेल याद आ जाता है। चूहा भाग बिल्ली आई। बहरहाल चूहा अब तक कामयाब है। चूहेदानी में मक्खन लगी ब्रेड कब से अटकी हुई है। यह सोचकर कि चूहा भी शायद आजकल के बच्चों की तरह पिज्जा ब्रेड पसंद करता होगा। फिर यह सोचकर पूड़ी के कुछ टुकड़़े भी डाल दिए गए कि शायद वह पुराने जमाने का ही हो। इसके बावजूद चूहे ने अब तक चूहेदानी की ओर झांका तक नहीं। शायद वह छिपकर टॉम ऐंड जेरी देखता रहा है। गूगल सर्च के जरिए चूहे पकडऩे के कुछ नए तरीके खोजकर प्रयोग में लाए जा रहे हैं। मिसाल के तौर पर कुत्ते की भौंक और बिल्ली की म्याउं वाली आवाजों की रेकॉर्डिंग बजाई जा रही हैं। इससे एक -दो बार तो चूहा चुनौती देने वाले भाव में निकला। फिर कुत्ता या बिल्ली न देखकर समझ गया कि उसे चूहा नहीं उल्लू समझा जा रहा है। मुझे बेचारा वह सामने के पेड़ पर रहने वाला बिजखोपड़ा परिवार याद आ रहा है। गृह प्रवेश के दूसरे ही दिन एक रिश्तेदार को बिजखोपड़ा दिख गया।

उसने आसमान सिर पर उठा लिया। आनन-फानन में पता चला कि सामने के पेड़ पर उसका ठिकाना है। फिर क्या था, पेड़ का तना छोड़ सारा हरा-भरा हिस्सा छांट डाला गया। उसका घर उजड़ गया। अब भी वह कभी-कभी रात के वक्त पास के खाली प्लॉट पर दिख जाता है। चूहा मानो उस बिजखोपड़े का घर उजडऩे की भी बदला लेने के मूड में है। वह अपनी मर्जी से निकलता है। चूहेदानी की ओर भटकता भी नहीं। घरवाली को शांत करने के लिए मैंने जेन गुडेन का कि स्सा बताया। दो दिन पहले ही उनका शुमार विश्व की सौ सबसे प्रभावशाली महिलाओं में हुआ है। जेन गुडेन पर्यावरणविद हैं। पैंतालिस बरसों से वह अफ्रीका के जंगलों में चिंपाजियों के साथ रह रही हैं। पत्नी को उनसे जरा भी प्रेरणा नहीं मिली। वह फिलहाल यह तय करने में लगी हैं कि घर में वहसबसे ज्यादा शक्ति शाली हैं या चूहा। घर से बाहर गांवों में निकलिए तो वहां भी एक संघर्ष है। बूढ़े हो चुके या छुट्टा गोवंशीय जानवर खेत तबाह कर रहे हैं। किसान उन्हें एक खेत से दूसरे खेत दौड़ा रहे हैं। ठीक वैसे जैसे श्रीमती जी चूहे को दौड़ा रही हैं। अपनी तो चाह यही है कि गाय, कुत्ता, बिजखोपड़ा या चूहा, सबके साथ इंसान का सह अस्तित्व हो। पर हालत उस गोरक्षक जैसी है जो चाहता है कि गायों की सेवा हो पर कैसे, खेत व किसानों का क्या करें, यह समझ नहीं पा रहा। मुझे भी चूहे से हमदर्दी है पर क्या करूं। खैर इस सवाल के साथ खुशवीर सिंह शाद के इस शेर से बात खत्म।

कोई सवाल न कर और कोई जवाब न पूछ
तू मुझ से अहद-ए-गुज़शता का अब हिसाब न पूछ।

सुधीर मिश्र

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