होलिका दहन : 17 मार्च, गुरुवार को

0
420

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त : रात्रि 12 बजकर 57 मिनट, भद्रा के पश्चात्
होलिका भभूत धारण करने से आरोग्य के साथ सुख-समृद्धि भी
धुरड्डी : 19 मार्च, शनिवार को

होली का पावन पर्व फाल्गुन शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन हर्ष, उमंग व उल्लास के साथ मनाने की परम्परा है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन ने बताया कि इस बार पूर्णिमा तिथि 17 मार्च, गुरुवार को दिन में 1 बजकर 02 मिनट पर लगेगी, जो कि 18 मार्च, शुक्रवार को 12 बजकर 52 मिनट तक रहेगी। 17 मार्च, गुरुवार को भद्रा रात्रि 12 बजकर 57 मिनट तर भद्रा होने से होलिकादहन नहीं किया जायेगा। भद्रारहित पूर्णिमा तिथि रहने पर रात्रि में होलिका दहन करना शुभ माना गया है। इस बार भद्रारहित पूर्णिमा तिथि 17 मार्च, गुरुवार को रात्रि 12 बजकर 57 मिनट के बाद मिलेगी। जिसके फलस्वरूप होलिकादहन भद्रा के समाप्ति के पश्चात् ही किया जाएगा। संयोगवश 17 मार्च, गुरुवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 3 बजकर 26 मिनट से 18 मार्च, शुक्रवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 4 बजकर 27 मिनट तक शुभ योग रहेगा।

फाल्गुन शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि का व्रत 17 मार्च, गुरुवार को, जबकि स्नान-दानादि की पूर्णिमा 18 मार्च, शुक्रवार को रहेगी। फाल्गुन शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि को ही श्री चैतन्य महाप्रभु की जयन्ती भी मनाई जाती है।होलाष्टक : फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि से फाल्गुन शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि तक होलाष्टक रहता है। होली से पूर्व 8 दिनों का समय होलाष्टक के नाम से जाना जाता है। अष्टमी तिथि को चन्द्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को वृहस्पति, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा तिथि के दिन राहुग्रह उग्र स्वरूप में माने गए हैं। जिसके फलस्वरूप इन 8 दिनों में कोई भी मांगलिक कृत्य नहीं किये जाते। 10 मार्च. गरुवार से प्रारम्भ होलाष्टक आज 18 मार्च, शक्रवार को समाप्त हो जाएगा। इस दिन रंगोत्सव का रंगारंग पर्व एवं धुरड्डी विधि-विधानपूर्वक मनाया जाएगा।

इसी दिन एक-दूसरे को लोग अबीर-गुलाल भी लगाएंगे। काशी में चौसट्टी घाट पर विराजमान भगवती चौसट्टी देवी का दर्शन करने की विशेष महिमा है। चैत्र कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि 18 मार्च, शुक्रवार को अर्द्धरात्रि 12 बजकर 43 मिनट से प्रारम्भ हो जाएगी जो कि 19 मार्च, शनिवार को दिन में 12 बजकर 13 मिनट तक रहेगी।होलिका पूजन का विधान-प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन ने बताया कि पूर्व स्थापित की गई होलिका की विधिविधानपूर्वक पूजन की जाती है। होलिका पूजन के पूर्व व पश्चात् ताम्रपात्र से गंगाजल या शुद्ध जल अर्पित करने का विधान है। इस दिन भगवान् नृसिंह की भी पूजा-अर्चना का विधान है।

होलिकापूजन के पूर्व में श्रीगणेश जी की पूजा पूर्व या उत्तराभिमुख होकर की जाती है। होलिका पूजन में रोली, अक्षत, पुष्प, साबूत हल्दी गांठ, नारियल, बतासा, कच्चा सूत, गोबर के उपले एवं पूजन की अन्य सामग्री रहती है। होलिका दहन के समय होलिका की परिक्रमा करने का विधान है। होलिका के चारों ओर तीन या सात बार परिक्रमा करते हुए कच्चे सूत को लपेटना चाहिए। होलिका की भस्म (भभूत) अत्यन्त ही चमत्कारिक मानी गई है। ऐसी मान्यता है कि होलिकादहन के पश्चात् होलिका की भस्म मस्तक पर लगाने से आरोग्य लाभ के साथ सुख-समृद्धि व खुशहाली मिलती है। होलिका का भभूत सम्पूर्ण शरीर में लगाकर स्नान करने पर आरोग्य सुख मिलता है।

ज्योतिर्विद् श्री विमल जैन

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here