वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने दूसरे बजट भाषण में घोषणा की है कि सरकार एलआईसी को स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध करेगी और इनीशियल पब्लिक ऑफर (आईपीओ) के जरिए इसमें अपने स्टेक का एक हिस्सा बेचेगी। इस प्रस्ताव को सही ठहराने के लिए उन्होंने तर्क दिया है कि ‘किसी कंपनी को स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध करने से उसमें अनुशासन आता है। इससे विाीय बाजार को कंपनी में दखल देने का अवसर मिलता है और इसका मूल्य उन्मुक्त होता है। इस क्रम में खुदरा निवेशक भी कंपनी में भागीदारी कर सकते हैं।’ इस घोषणा से मीडिया में एलआईसी को लेकर एक बहस छिड़ गई है। कुछ वित्तीय विश्लेषक यह दावा कर रहे हैं कि सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) में सूचीबद्ध होने से पॉलिसीधारकों को बड़ा फायदा होगा। इससे लोग एलआईसी की कार्यप्रणाली पर नजर रख पाएंगे और उसकी कॉरपोरेट गवर्नेंस सुदृढ़ होगी। आइए देखें कि एलआईसी की वर्तमान आर्थिक स्थिति क्या है और कॉरपोरेट मीडिया उसे बदनाम करके किन स्वार्थी तत्वों का हित साध रहा है/ जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में 1956 में एलआईसी ने मात्र 5 करोड़ रुपये की धनराशि से अपना काम शुरू किया था। आज एलआईसी की विराट परिसंपत्ति का मूल्य 31 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है।
पिछले दो दशकों से कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने जीवन बीमा के क्षेत्र में प्रवेश किया और एलआईसी को टक्कर देने की कोशिश की। इस जर्बदस्त प्रतियोगिता के बाद भी बाजार में एलआईसी का हिस्सा 73 प्रतिशत से अधिक है। यही कारण है कि 2018-19 के लिए भारत सरकार को उसकी मात्र 100 करोड़ की हिस्सापूंजी के बदले एलआईसी ने 2611 करोड़ रुपये का लाभांश दिया है। अगर स्थापना वर्ष से गिना जाए तो एलआईसी ने कुल 26,005 करोड़ रुपये का बड़ा लाभांश अदा किया है। एलआईसी भारतीय बाजार में बहुत बड़ा निवेश करती है। कई अवसरों पर सरकार के निर्देश पर उसे स्टॉक मार्केट को गिरने से बचाने के लिए और जबतब किसी सरकारी कंपनी, जैसे भारतीय रेलवे में निवेश करना पड़ता है। डूबते हुए बैंक आईडीबीआई को बचाने के लिए जुलाई 2018 में एलआईसी को उसके 51 प्रतिशत शेयर खरीदने के लिए कहा गया। यह 13,000 करोड़ रुपये का निवेश वैसे तो एलआईसी जैसी कंपनी के लिए कोई बड़ी बात नहीं था, लेकिन यह फैसला एलआईसी के प्रबंधन या पॉलिसी धारकों का न होकर केवल सरकार में बैठे मंत्रियों का था। आईडीबीआई के खराब प्रदर्शन के चलते एलआईसी को कई वर्षों तक अपने इस निवेश से कुछ हासिल नहीं होगा। इसी तरह के निवेश एलआईसी ने 29 सार्वजनिक और निजी बैंकों में कर रखे हैं।
तात्पर्य यह कि अगर सरकार दखलंदाजी न करे तो एलआईसी की परफॉरमेंस कहीं बेहतर होगी। फाइनेंस के वैश्वीकरण के युग में भी एलआईसी जैसा कॉरपोरेशन पूरी दुनिया में नहीं है। इसके कुल लाभ का मात्र 5 प्रतिशत सरकार को मिलता है जबकि 95 प्रतिशत पॉलिसीधारकों को जाता है। इसीलिए एलआईसी को प्राय: युचुअल बेनेफिट लाइफ इंश्योरेंस कंपनी भी कहा जाता है। चालू विाीय वर्ष (अप्रैल 2019 से जनवरी 2020) में एलआईसी के प्रथम वर्षीय प्रीमियम में 43 प्रतिशत वृद्धि हुई जबकि निजी इंश्योरेंस कंपनियों में मात्र 20 प्रतिशत। मजेदार बात यह कि इन्हीं पॉलिसीधारकों की दुहाई देकर एलआईसी के निजीकरण की तैयारी की जा रही है। एक ऐसी संस्था जो न केवल अपने पॉलिसीधारकों बल्कि देश के विकास के लिए संसाधन जुटाने में सबसे आगे है, उसमें सरकारी इक्विटी का हिस्सा बेचने का अर्थ होगा सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को जिबह करना।एलआईसी की मुख्य शक्ति उसका डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क है। आज इसके पास 12 लाख एजेंट और 5000 डिवेलपमेंट अफसर हैं, जो मार्केटिंग के बेहतर तौर-तरीके अपनाते हैं। उनकी कोशिशों से एलआईसी के पास आज 42 करोड़ पॉलिसी धारक हैं, जिनमें से 30 करोड़ ने व्यक्तिगत पॉलिसियां ले रखी हैं और बाकी ने ग्रुप इंश्योरेंस ली है।
जाहिर है, इन पॉलिसी होल्डरों के मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या सरकार पॉलिसी अवधि के बीच में कॉन्ट्रैक्ट की शर्तें बदल सकती है! वित्त मंत्रालय के अफसरों ने फिलहाल यह कह कर जवाब टाल दिया है कि आईपीओ अगले वित्त वर्ष के उत्तरार्ध में ही लाया जाएगा। वैसे यह एक अनैतिक कदम होगा कि मात्र 5 प्रतिशत कानूनी हिस्सेदारी से सरकार एक कॉरपोरेशन को बेच डाले। यह कॉरपोरेशन प्रति माह अपनी गतिविधियों की रिपोर्ट अपने रेगुलेटर आईआरडीए (इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथारिटी) को देता है, जो बाद में संसद में पेश की जाती है। जहां तक सामाजिक तथा बुनियादी ढांचे के विकास के लिए फंड उपलब्ध कराने की बात है तो यह पूछा जाना चाहिए कि कौन सी निजी कंपनी 3.5 लाख करोड़ से लेकर 4.5 लाख करोड़ रुपया प्रतिवर्ष सरप्लस पैदा करेगी, जितना एलआईसी करती है। बिना सुदृढ़ प्रबंधन के यह संभव नहीं।
गवर्नेंस के मामले में भी एलआईसी बेहतर ढंग से संचालित है। इसके ऑपरेटिंग खर्चों की तुलना अगर निजी बीमा कंपनियों से की जाए तो पता चलता है कि एलआईसी की गवर्नेंस कहीं बेहतर है। फिर क्या कारण है कि सुचालित, सुप्रबंधित और जन-जन में लोकप्रिय एलआईसी को भविष्य में बेचने की तैयारी की जा रही है। दरअसल जीएसटी के कठिन क्रियान्वयन के चलते अप्रत्यक्ष कर की मात्रा में भारी कमी देखी जा रही है। सरकार का मानना है कि एलआईसी के आंशिक विनिवेश से उसे 70,000 करोड़ रुपये मिल जाएंगे। सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य उपक्रमों के विनिवेश से भी 2.10 लाख करोड़ रुपये उगाहने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य केंद्रीय बजट में रखा गया है। अगर कोई व्यक्ति अपने बुरे दिनों में अपनी खानदानी संपत्तियों को बेच डाले तो वह दिन दूर नहीं जब उसके पास अपने जीवनयापन के लिए भी कुछ नहीं बचेगा।
अजेय कुमार
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)