हमें लोगों से मदद लेने वाला नहीं, बल्कि मदद देने वाला बनना चाहिए

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प्रचलित लोक कथा के अनुसार पुराने समय में एक किसान जंगल में लकड़ी लेने गया। उसने वहां एक लोमड़ी देखी, जिसके दो पैर नहीं थे, फिर भी वह स्वस्थ दिख रही थी। किसान ने सोचा कि आखिर ये दो पैर वाली लोमड़ी जिंदा कैसे है, इसे खाना कैसे मिलता है? कुछ देर बाद वहां एक शेर आया, शेर अपने मुंह के शिकार दबाकर आ रहा था, वह लोमड़ी के पास रुका और शिकार में से थोड़ा सा हिस्सा लोमड़ी के लिए छोड़ गया। किसान ये सब देख रहा था, उसने सोचा कि भगवान की लीला अद्भुत है। उसे सभी प्राणियों की चिंता है और सभी के भोजन की व्यवस्था वह जरूर करता है।

ये सोचकर किसान उसी जगह पर बैठ गया और इंतजार करने लगा कि कोई उसके लिए भोजन लेकर आएगा। वहां बैठे-बैठे काफी समय गुजर गया, लेकिन वहां कोई नहीं आया। अब भूख की वजह से उसके प्राणों का संकट खड़ा हो गया। कुछ समय बाद जंगल से एक संत गुजरे। उन्होंने कि सान को भोजन कराया और पूरी बात पूछी। कि सान ने लोमड़ी और कि सान वाला पूरा प्रसंग सुना दिया। उसने संत के कहा कि भगवान एक लोमड़ी पर तो दया दिखा रहा है, लेकिन मेरे लिए इतना निर्दयी हो गया है। संत ने किसान से कहा कि तुम नासमझ हो। तुमने भगवान का इशारा नहीं समझा। इसी वजह से तुम परेशान हो रहे हो। भगवान तुम्हें शेर की तरह मदद करने वाला बनाना चाहता है, लोमड़ी की तरह मदद लेने वाला नहीं। तुम्हें दूसरों की मदद करने वाला बनना चाहिए, न कि मदद लेना वाला।

कथा की सीख भगवान ने सभी को असीमित शक्तियां दी हैं, लेकिन कुछ ही लोग उन शक्तियों को समझ पाते हैं। इंसान बहुत कुछ कर सकता है, लेकिन वह सरल रास्ता खोजता है और दूसरों पर आश्रित हो जाता है। हमें दूसरे से मदद लेने की नहीं सोचना चाहिए। चुनाव हमें ही करना है कि हम शेर बनना चाहते हैं या लोमड़ी।

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