हमारी हालत खस्ता – इन्हें नतीजों की पड़ी है

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जब प्रधानमंत्री इमारान खान समेत हर मंत्री की आखिरी उम्मीग पिछले चार महीने से उस कुएं से बंधी हुई हो, जिसे कराची से ढाई सौ परे खुले समुद्र की तह में तेल निकलने की उम्मीद में ड्रिल किया जा रहा हो और रोज कौम को न्यौता दिया जा रहा हो कि बस चंद दिन और इंतजार कर लें, जैसे ही तेल का फव्वारा छुटा उसके पांच हफ्ते बाद से ही पाकिस्तान की किस्मत बदलना शुरु हो जाएगी।

जब 100 पाकिस्तानी रुपये के बदले 59 अमरीकी सेंट, 58 बांग्लादेशी टके, 53 अफगानी और 48 भारतीय रुपये मिलने लगें। तो मन आस-पास से वैसे ही संन्यास ले लेता है। जब प्रधानमंत्री इमरान खान समेत हर मंत्री की आखिरी उम्मीद पिछले चार महीने से उस कुएं से बंधी हुई हो, जिसे कराची से ढाई सौ परे खुले समुद्र की तह में तेल निकलने की उम्मीद में ड्रिल किया जा रहा हो और रोज़ कौम को न्यौता दिया जा रहा हो कि बस चंद दिन और इंतज़ार कर लें, जैसे ही तेल का फ व्वारा छुटा उसके पांच हफ्ते बाद से ही पाकिस्तान की किस्मत बदलना शुरू हो जाएगी। इतनी नौकरियां होंगी कि कोई लेने वाला ना होगा, सारी दुनिया के फालतू केमरे पाकिस्तान की ओर दौड़ पड़ेंगे, अंतरराष्ट्रीय पूंजीवाद लाइन बनाकर खड़ा होगा कि सरकार हुक्म कीजिए कहां पैसा लगाएं? और फिर दो दिन पहले प्रधानमंत्री के प्रेट्रोलियम सलाहकार नदीम बाबर ने ये क हकर खुशहाली के गवाब पर बम मार दिया कि समुद्र में साढ़े पांच हज़ार मीटर की खुदाई के बाद भी कुछ नहीं निकला, अब कभी और किस्तम आजमाई जाएगी।

दूसरा अत्याचार ये हुआ कि पिछले ही हफ्ते आईएमएफ ने पाकिस्तान आर्थिक स्थिति को संभलने के लिए छह अगर डॉलर का कर्ज देना मंजूर किया और तब से अबतक डॉलर छलांग मारक र 142 पए से डेढ़ सौ के पायदान पर जा बैठा है। अब 15 जून को बजट घोषित होने वाला है और बहुत से आर्थिक पंडित डरा रहे हैं कि बच्चू ये तो कुछ भी नहीं, अभी तो डॉलर 160 या 170 पर ही रुक जाए तो समझो ऊपर वाले की मेहरबानी हो गई। परंतु एक ऐसे समय जब मुझे जैसे सभी चकरा रहे हैं कि आने वाले दिनों में महंगाई का जिन्न क्या-क्या फाड़ खाएगा, अगर कोई हमसे पूछे की भारतीय चुनाव का क्या नतीजा आने वाला है तो बुरा ना मनाइएगा अगर मुंह से निकल जाए कि कौन-सा भारत, किसके चुनाव। अच्छा, अरे भाई पाकिस्तान के हिसाब से कौन अच्छा रहेगा? मोदी जी, राहुल या गठबंधन सरकार? मोदी? ये नाम तो सुना-सुना लग रहा है। अच्छा तो चुनाव हो रहे हैं भारत में। हो गए क्या? कब? क्या वहां भी गैस के बिल में ढाई सौ प्रतिशत इजाफा हो गया है, जो चुनाव हो रहे हैं?

क्या नींबू वहां भी पांच सौ रुपये किलो बिक रहा है? लगता है आपकी तबियत ठीक नहीं है। अच्छा यही बता दें कि खाड़ी में ईरान के खिलाफ अमरीकी-सऊदी गठजोड़ से पाकिस्तान को चिंतित होना चाहिए या नहीं? क्या आपको लगता है, ईरान और अमरीका में युद्ध छिड़ जाएगा और शायद पाकिस्तान भी उसके चपेटे में आ जाए? ऐसा है? तो क्या युद्ध की वजह से पेट्रोल और महंगा हो जाएगा? पेट्रोल महंगा हो गया तो टमाटर भी ढाई सौ से पांच सौ पए किलो पहुंच जाएगा, है ना? हमारा दुख कोई नहीं समझ रहा कि तेल के जिस कुएं से स्मृद्धि की शुरू आत होनी थी, उसमें से हवा भी नहीं निकली। सबको भारतीय चुनाव के नतीजों की पड़ी है। खाड़ी में युद्ध उनके लिए सबसे बड़ा विषय है। ऐसी-तैसी इन सबकी। नज़ीर अकबराबादी कह गए हैं, जब आदमी के हाल पे आती है मुफ्लिसी, किस किस तरह से उस को सताती है मुफ्लिसी।

वसुअतुल्लाह खान
(लेखक पाकिस्तानी पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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