70 साल वाला जुमला भाजपा और प्रधानमंत्री गृह मंत्री, रक्षा मंत्री से लेकर केन्द्र सरकार के हर मंत्री सबसे पसंदीदा है। मतलब जो 70 साल में नहीं हुआ वह हमने तीन महीने, तीन साल या पांच साल में कर दिया। मजेदार बाह है कि भक्त नागरिक इन बेसिरपैर की बातों पर भरोसा भी करते हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें इस बात का पता नहीं है कि हर काम अपने समय पर ही होता है। 5जी की तकनीक अगर भाजपा की सरकार के रहते आए और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री कहें कि जो काम 70 साल में नहीं हुआ वह हमारे समय में हुआ तो यह मूर्खता होगी। लेकिन इस किस्म की सामूहिक मूर्खता को सहज भाव से स्वीकार किया जा रहा है। तभी भारत का मौजूदा वक्त तर्कहीनता के विराट उत्सव का समय है!
बहरहाल, पता नहीं ऐसे कितने काम हैं, जो 70 साल में नहीं हुए थे और तीन महीने या तीन साल या पांच साल में हो गए हैं। इनकी गिनती नहीं हो सकती है क्योंकि हर मंत्री अपने मंत्रालय के काम के बारे में ऐसा ही दावा कर रहा है। पर कुछ काम सचमुच ऐसे हो रहे हैं, जो 70 साल क्या सौ साल या दुनिया के लोकतंत्र के इतिहास में कभी नहीं हुए हैं। ये काम हैं बड़बोलेपन का या बिना सोचे समझे कुछ भी बोलने का। दायित्व बोध और जवाबदेही की कमी इससे पहले कभी ऐसी नहीं देखी गई। इस पर विचार ही नहीं हो रहा है कि प्रधानमंत्री या मंत्री जो बोल रहे हैं वह सचमुच हुआ है या सचमुच हो पाएगा या नहीं। उन्हें तो बस कहना है और लोगों को बस सुनना है।
तभी पहले कभी यह सुनने को नहीं मिला कि देश का रक्षा मंत्री कहे कि भारत परमाणु बम का पहले इस्तेमाल नहीं करने की अपनी नीति पर विचार कर सकता है। यानी भारत अपनी पहल पर परमाणु हमला भी कर सकता है! वह भी किसके खिलाफ- पाकिस्तान के! जिसे भारत पारंपरिक लड़ाई में चार बरा हरा चुका है और पारंपरिक युद्ध में वह भारत के सामने कहीं नहीं टिकता है, भारत उसे परमाणु हमले की धमकी या चेतावनी दे, उससे बुरा भी क्या कुछ हो सकता है? संभव है यह सिर्फ कहने की बात हो और सरकार की मंशा परमाणु हमले की नहीं रही हो पर किसी जिम्मेदार लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसी बात सोची भी कैसे जा सकती है? पर यूं ही कैजुअल अंदाज में यह बात कह दी गई, बिना सोचे की इसका आघात, सदमा कितना बड़ा और भयावह होगा।
यह भी 70 साल में पहली बार हुआ कि देश का गृह मंत्री घूम घूम कर कह रहा है कि चुन चुन कर घुसपैठियों को निकालेंगे। भाजपा जब विपक्ष में थी तब कहती थी कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर निकालेंगे खास कर पूर्वोत्तर के राज्यों से। भाजपा का कहना था कि कांग्रेस और लेफ्ट ने वोट बैंक की राजनीति के लिए उनको बसाया है। अब पूर्वोत्तर के साथ साथ पूरे देश से घुसपैठियों को निकालने की बात कही जा रही है और वह भी इन शब्दों में कि चुन चुन कर निकालेंगे और वह भी 2024 के चुनाव से पहले। सरकार ऐसा कैसे करेगी? उनकी पहचान कैसे होगी और उन्हें निकाल कर कहां भेजा जाएगा? ऐसे सवाल कोई नहीं पूछ रहा है।
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना पिछले हफ्ते चार दिन भारत में रह कर गईं। उनसे भारत सरकार ने कहा कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर बनाने का काम भारत का आंतरिक मामला है। यानी घुसपैठियों का मामला आंतरिक है। भारत ने उनको भरोसा दिलाया हुआ है कि यहां से कोई घुसपैठिया उनके यहां नहीं भेजा जाएगा। सवाल है कि जिनको चुन चुन कर निकाला जाएगा उनको कहां भेजा जाएगा? अकेले असम के एनआरसी में से 19 लाख नाम छूटे हैं यानी 19 लाख घुसपैठिए असम में हैं। पूरे देश में अगर यह संख्या 50 लाख भी होती है तो उन्हें सरकार कहां भेजेगी? बाहरी लोगों को पहचान कर निकालने का रिकार्ड देखें तो और चिंता होती है। म्यांमार से भाग कर भारत में घुसे रोहिंग्या घुसपैठियों की संख्या 40 हजार है। यह बिल्कुल गिनी हुई संख्या है और लोग पहचाने हुए हैं पर पिछले पांच साल में सरकार कुल 40 रोहिंग्या को बाहर नहीं कर सकी है। एक दिन सात रोहिंग्या वापस भेजे गए तो राष्ट्रीय खबर बनी थी। सोचें, अगले पांच साल में कम से कम 50 लाख लोगों को निकालने का दावा किया जा रहा है?
ऐसा 70 साल में पहली बार हुआ कि देश के गृह मंत्री पड़ोसी देश को लक्ष्य करके कह रहे हैं कि घर में घुस कर मारेंगे। यह भी पहली बार हुआ कि गृह मंत्री ने कहा कि मुस्लिम घुसपैठिए निकाले जाएंगे और हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख और यहां तक कि ईसाई घुसपैठियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी। यह भी पहली बार हुआ कि 70 साल में कोई नेता ‘भारत का पिता’ बन गया और उसके समर्थक कहने लगे कि जो उन्हें भारत पिता नहीं मानेगा वह भारतवासी नहीं है। यह भी पहली बार हुआ कि समूचे विपक्ष को देशद्रोही और पाकिस्तानी ठहरा दिया गया।
हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं