स्किल डवलपमेंट की क्लास लगानी पड़ेगी

0
410
स्किल डवलपमेंट और जीएसटी
स्किल डवलपमेंट और जीएसटी

आज तोता राम ने आते ही हमारे सामने विश्वसनीय अखबार का ताजा अंक पटकते हुए कहा- क्या मास्टर, इस देश में हर चीज का स्तर गिरता जा रहा है। हमने कहा-बन्धु, सत्ता के लालच में व्यक्ति को उचित-अनुचित का ध्यान नहीं रहता। वह अपना पद, गरिमा सभी को भूलकर गली के उचक्के और थर्ड क्लास गुंडे की तरह गाली-गलौज, घटिया मजाक और फिकरों पर उतर आता है। वह इसी में अपनी विजय देखता है। यह नहीं देखता कि देश और समाज का कितना वैचारिक नुकसान हो रहा है। उसे आर्दश मानने वाले युवा जल्दी ही इस घटिया स्तर और भाषा को अपना लेते हैं। शक्ति और पद मिलने पर व्यक्ति को और विन्रम होना चाहिए, लेकिन लोग हैं कि जितने बड़े पद पर पहुंचते हैं, अपनी औकात का उतना ही भोंडा प्रदर्शन करते हैं।

तोता राम ने हमारे पैर पकड़ते हुए कहा- प्रभु यह क्या नेता जी की तरह जैसे ही मंच और माइक देखा नहीं कि शुरू हो गए- भाइयों, बहनों। मैं विधानसभा चुनावों की बात नहीं कर रहा हूं। जहां भारतीयता का तो कोई प्रश्न ही नहीं बल्कि समान्य शिष्टाचार तक ध्यान नहीं रखा जा रहा है। चुनाव में जीत समाज की समरसता और सौहार्द्र से बड़ी नहीं होती। जब समाज में प्रेम-भाव ही नहीं रहेगा तो क्या चाटोगे कुर्सी को? हर 5 साल में तो आ ही जाते हैं। यदि लूट के माल के बंटवारे में समहति नहीं बनती तो चुनाव पहले भी हो सकते हैं, लेकिन लोगों में एक दूसरे के प्रति घृणा और शक पैदा हो गए तो सदियों लगती है घाव भरने में।

मैं नेताओं की स्तर की नहीं बल्कि समाज में अपराध के गिरते स्तर के बारे में कह रहा था। समाचार देख, चुरू जिले के बीदासर कस्बे के एक पेट्रोल पम्प के कर्मचारी पिता पुत्र दो दिन का कलेक्शन 20 लाख रूपये बैंक में जमा कराने जा रहे थे। रास्ते में मोटर साइकिल सवारों ने उनके आखों में मिर्ची झोंककर रुपये लूट लिए। हमने कहा – तुम्हारे शब्दों से लगता है कि तुम्हें लूट से अधिक दुःख लूट के तरीके के कारण है। लूट तो लूट है। किसी भी तरीके से की जाए। इस तरीके में भी क्या बुराई है? पहले तो लोग आंखों में धुल झोककर लूट लेते थे। धूल तो मुफ्त में आती है। मथानिया की असली मिर्ची 100 रुपये किलो से भी महंगी आती हैं। इस हिसाब से तो स्तर गिरा कहां? बोला मेरे कहेन का मतलब यह नहीं था। आपराधियों में कुछ संवेदनशील तो होनी चाहिए। मुझे ता है मिर्च से आंखें खराब हो सकती हैं। कितना दर्द होता? आखिर पीड़ितों के भी तो कोई मानवाधिकार होते हैं कि नहीं? क्या आंखों में झोंकने के लिए कोई शीतल और कम जलन वाला पर्दाथ काम में नहीं लया जा सकता था। उद्देश्य लूटना है या किसी की आंखें फोड़ना? हमने कहा – तुम्हारे अनुसार क्या होना चाहिए? इर पुण्य-कार्य को किस प्रकार किया जाए? बोला – एक क्या अनेक तरीके हैं। प्राचीन काल पर नजर दौड़ा। इंद्र अपना सिंहासन बचाने के लिए कभी किसी ऋषि-मुनि पर हथियारों का प्रयोग नहीं करता था। एक सुन्दर सी अप्सरा भेद दी। वह आती थी, नाचती थी, तपस्वी को रिझाती थी। किसी को कोई कष्ट नहीं होता था और मजे में इंद्र का काम हो जात था। जब तक मुनि को होश आता तब तो जमानत जब्त हो चुकी होती थी। कितना सौम्य और शालीन तरीका था। हमने कहा- आज की बात कर। बोला- आज भी तरीकों की कौन सी कमी है? जीएसटी लागू करके लूटा जा सकता था, काले धन के बहाने करके लूटा जा सकता था, 15 लाख खातों में भेजने के नाम पर लूटा सा सकता था, जुमलों से लूटा जा सकता था, धर्म के नाम पर दंगे करवाकर लूटा जा सकता था, गौ-रक्षा या गौ-मांस के नाम पर लूटा जा सकता था। यह क्या कि बेचारे पिता-पुत्र की आंखों में मिर्चि ही झोंक दी! नासमझ युवक। इनकी स्किल डिवेलपमेंट की क्लास लगानी पड़ेगी।

लेखक
रमेश जोशी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here