सोम प्रदोष व्रत

0
331
देवाधिदेव भगवान शिवजी
देवाधिदेव भगवान शिवजी

भगवान शीवजी की आराधना से मिलेगी सुख-समृद्धि, खुशहाली
सुख-शान्ति के साथ होती है सौभाग्य में अभिवृद्धि

भारतीय संस्कृति के सानातन धर्म में भगवान शीवजी की विशेष महिमा है। तैंतीस कोटि देवी-देवताओं में भगवान शिवजी को ही देवाधिदेव महादेव माना गया है। विशजी की आराधना से जीवन में सुख-समृद्धि, खुशहाली सदैव बनी रहती है, साथ ही चमत्कारिक ढंग से संकटों का निवारण भी होता रहता है। भगवान शिवजी की विशेष कृपा प्राप्ति के लिए शिवपुराण में विविध व्रतों का उल्लेख मिलता है, जिसमें प्रदोष व्रत व मास शिवरात्रि व्रत प्रमुख है। कलियुग में प्रदोष व्रत को ही अत्यन्त प्रभावशाली माना गया है। श्री विमल जैन जी ने बताया कि इस बार सोमवार 23 दिसम्बर को प्रदोष व्रत रखा जाएगा। पौष कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि सोमवार, 23 दिसम्बर को गिन में 01 बजकर 42 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन मंगलवार, 24 दिसम्बर को दिन में 12 बजकर 19 मिनट तक रहेगी। सोमवार, 23 दिसम्बर को त्रयोदशी तिथि होने के फलस्वरूप प्रदोष व्रत इसी दिन रखा जाएगा। प्रदोषकाल का समय सूर्यास्त से प्रारम्भ होकर 2 घड़ी का माना गया है। एक घड़ी का समय 24 मिनट का रहता है। इसी समय भगवान शिवजी की पूजा प्रारम्भ करनी चाहिए। सूर्य अस्त होने के पूर्व स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

कैसे करें प्रदोष व्रत – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रातःकाल सूर्योदय के पूर्व ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों में निवृत्त होकर स्नान-ध्यान व पूजा-अर्चना के पश्चात अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। दिनभर निराहार रहते हुए सायंकाल पुनः स्नान करके प्रदोष काल में भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडपशोचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए। भगवान शिवजी का अभिषेक करके उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुफलस मिष्ठान्न, नवैद्य आदि अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। शिवभक्त अपने मस्तक पर भस्म व तिलक लगाकर शिवजी की पूजा करें तो पूजा शीघ्र फलित होती है। शिवजी की विशेष अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए प्रदोष स्तोत्र का पाठ एवं स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोष व्रत कथा का पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए। व्रत से सम्बन्धित कथाएं भी सुननी चाहिए। यह व्रत महिला एवं पुरुष दोनों के लिए समानरूप से फलदायी है। सोम प्रदोष व्रत से जीवन के समस्त दोषों का शमन होता है साथ ही सुख-समृद्धि व सफलता का सुयोग बनता है।

हर दिन के प्रदोष व्रत मिलता है अगल-अलग फल – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत के अलग-अलग प्रभाव है। जैसे – रवि प्रदोष – आयु, आरोग्य, सुख समृद्धि, सोम प्रदोश –शान्ति, रक्षा तथा आरोग्य व सौभाग्य में वृद्धि, भौम प्रदोष – कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष – मनोकामना की पूर्ति, गुरु प्रदोष – विजय व लक्ष्य की प्राप्ति, शुक्र प्रदोष-आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना की पूर्ति, शनि प्रदोष – पुत्र सुख की प्राप्ति।

कितना प्रदोष व्रत रखें ? अभीष्ट की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्य त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथना मनोकामना पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने का विधान है।

व्रत के दिन स्वयं नियमित संयमित रहते हुए शुचिता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। व्यर्थ वार्तालाप व परनिन्दा आदि नहीं करना चाहिए। व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए। व्रत के दिन यथाशक्ति ब्राह्मणों को दान तथा बेसहारा एवं असहायों की सेवा करनी चाहिए जिससे भगवान शिवजी की कृपा सदैव बनी रहे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here