सूर्य को प्रत्यक्ष देव माना गया है और रोज उनके दर्शन करने का भी विधान है। हमेशा निरोग रहने और लंबी उम्र के लिए सूर्य देव की उपासना और व्रत किया जाता है। 12 सितंबर रविवार को भाद्रपद महीने के शुलपक्ष की ही षष्ठी तिथि है। पंचांग के मुताबिक इस दिन को सूर्य षष्ठी या ललिता षष्ठी भी कहा जाता है। सूर्य षष्ठी व्रत पर भगवान सूर्य की पूजा होती है। पुराणों में भी इस व्रत का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि जो इस दिन के व्रत से भगवान सूर्य को प्रसन्न करता है उसके तेज में कई गुना वृद्धि होती है और वो निरोग होता है। इस दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व है, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार घर पर स्नान करके भी आप गंगा जी का स्मरण कर भगवान सूर्य देव की आराधना कर सकते हैं। रविवार को षष्ठी तिथि का संयोग बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन भगवान सूर्य और उनकी बहन षष्ठी का व्रत करने वाले लोग सुख समृद्धि और संतान प्राप्ति का वरदान मांगते है तो साथ ही भगवान भास्कर के पुत्र यमराज से अकाल मृत्यु से बचाने की प्रार्थना भी करते है। ऐसा करने से सूर्य देवता का आशीर्वाद मिलता है। व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर सूर्य देव को शुद्धता के साथ जल अर्पित करें। इसके साथ ही आपका व्रत शुरू हो जाता है। भगवान सूर्य को अघ्र्य देने के अलावा धूप, दीप, कपूर, पुष्प आदि से उनका पूजन करना चाहिए। इस दिन स्नान के पश्चात सात प्रकार के फलों, चावल, तिल, दूर्वा, चंदन आदि को जल में मिलाकर उगते हुए भगवान सूर्य को जल देने का भी विधान पुराणों में उल्लेखित है। सूर्य को अघ्र्य देने के बाद सूर्य मंत्र का जाप 5 बार या 108 बार करना चाहिए। ग्रंथों में बताया गया है कि सूर्य देव को लाल रंग खासतौर से प्रिय है। इसलिए लाल चंदन और लाल फूल सूर्य को अर्पित करने और लाल कपड़े का दान करने से भगवान सूर्य प्रसन्न होते हैं। वहीं इस व्रत में डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है।