सीमा पार से कड़वी बात-जंग के हालात

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हां, भारत-पाक रिश्ते युद्ध की और बढ़ते लगते हैं। पाकिस्तान से बादलों की गरज सुनाई दे रही है तो मोदी सरकार भी चौकन्नी है। भारत ने मुंबई जैसे आंतकी हमले की आंशका में बंदरगाहों पर हाई अलर्ट के साथ पाकिस्तानी नेताओं के जंगी बयानों को जैसे ग़ैर-ज़िम्मेदाराना, भड़काऊ व जिहादी बताया है वह आर-पार आंशका वाला है। पाकिस्तान के रेल मंत्री शेख रशीद अहमद का बुधवार का यह बयान भारत में ज्यादा छपा नहीं है कि अक्टूबर-नवंबर तक दोनों देशों के बीच पूर्ण जंग होती लगती है। मंत्री का बयान इमरान खान की सरकार में अंदर की सोच को बताता है। वहां सेना-सरकार-राजनीति और जनता चारों में भारत से लड़ाई का मन बना दिख रहा है। इमरान खान ने बतौर प्रधानमंत्री भारत सरकार, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जिन शब्दों में जैसी आलोचना की है वह 72 सालों की जुबानी जंग में पराकाष्ठा है। उस नाते बुधवार को पाकिस्तानी रेल मंत्री का यह कहना बहुत गंभीर है कि कश्मीर की मुक्ति की आखिरी लड़ाई का वक्त आ गया है और लड़ाई अब आखिरी व पूर्ण होगी। मंत्री ने आगे कहा कि यह सब ‘हिटलर’ मोदी के चलते है। कश्मीर का फैसला संयुक्त राष्ट्र से नहीं होगा, बल्कि कश्मीरियों से होगा। हमारा सौभाग्य है कि जम्मू-कश्मीर के मामले में चीन हमारे साथ खड़ा हुआ है। जंग आखिरी होगी और वह भारत व पाकिस्तान के बीच नहीं, बल्कि पूरे उपमहाद्वीप को लिए हुए होगी। जिन्ना ने बहुत पहले भारत का दिमाग एंटी-मुस्लिम बता दिया था। जो अब भी सोचते हैं कि भारत से डायलॉग हो सकता है वे मूर्ख हैं। 27 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र में इमरान खान का भाषण अहम होगा।

मंत्री का यह बयान अपने आप में सरकार, इमरान खान, विपक्ष के बिलावल भुट्टो, वहां के राजनीतिक दलों और इस्लामाबाद की सेना- नौकरशाही-मुल्लाओं व मीडिया के नैरेटिव का लब्बोलुआब है। इमरान खान ने नरेंद्र मोदी, सरकार, भाजपा, संघ को ले कर जिन शब्दों में जो आलोचना की है उसका एक-एक शब्द भड़काने वाला है। तभी डोनाल्ड ट्रंप से बातचीत में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि इमरान खान कैसी भाषा इस्तेमाल कर रहे हैं।

सवाल है पाकिस्तान का क्या यह थोथा चना बाजे घना नहीं है? ऐसा सोचना मुगालते में रहना होगा। अपना मनाना है कि मोदी सरकार मुगालते में नहीं होगी। इसका एक प्रमाण रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का वह बयान भी है, जिसमें उन्होंने चेताया था कि यह जरूरी नहीं कि भारत पहले एटमी अस्त्र का उपयोग नहीं करने के सिद्धांत पर अटका रहे। सब कुछ परिस्थितियों पर निर्भर होगा।

जाहिर है पाकिस्तान परंपरागत जंग शुरू करने का दुस्साहस करे उससे पहले भारत ने उसे डराया है। पर डराने का काम इमरान खान ने भी किया है। उऩ्होंने भी कहा हुआ है कि यदि लड़ाई हुई तो एटमी हथियार वाली तबाही भी संभव है। इस्लामाबाद में पहले यह आंशका थी कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को लेने के लिए भारत सैनिक कार्रवाई कर सकता है। इस तरह की आंशका में वहां दो-चार दिन बिगुल बजे। लेकिन अब लग रहा है कि उस तरह की हवाबाजी के बीच पाकिस्तानी सेना ने भारत-पाक सीमा और नियंत्रण रेखा पर सेना का जमावड़ा बनवाना शुरू कर दिया है। मंगलवार को खबर थी कि पाकिस्तान नियंत्रण रेखा पर एसएसजी कमांडो तैनात कर रहा है। सर क्रिक एरिया में भी तैनाती की खबर थी। मतलब पूरी सीमा पर पाकिस्तानी सेना का जमाव बन रहा है। वायु सेना और नौ सेना की हलचल के साथ गुरूवार को एटमी हथियार ले जाने वाली मिसाइल के परीक्षण से भी पाकिस्तान ने दुनिया का ध्यान दिलाया है कि हालात की गंभीरता समझे।

इसे दुनिया को चिंतित करने का पाकिस्तानी पैंतरा भी कह सकते हैं। पर इस तरह सोचना ठीक नहीं होगा। पाकिस्तान आज जानता है कि दबाव से कुछ बनना नहीं है। भारत कोई जम्मू-कश्मीर का फैसला बदलने से रहा। इसलिए यदि वहां यह हल्ला सुनाई दे रहा है कि अंतिम-पूर्ण लड़ाई का वक्त आ गया है तो उसे गंभीरता से लेना चाहिए। इमरान खान या उनकी सरकार के हाथ में कुछ नहीं है। इमरान खान को सेना, न्यायपालिका ने पैदा किया हुआ है। इसलिए बुनियादी तौर पर पाकिस्तान में पूरा नैरेटिव सेना के जनरलों के खिलाफ है। सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट एयर स्ट्राइक से ले कर जम्मू-कश्मीर में 370 खत्म होने की घटनाओं ने पाकिस्तानी अवाम में हवा बन गई है कि सेना और उनके जनरल किस लायक हैं? ऐसे में सेना के जनरल पंगेबाजी में लड़ाई के हालात बना सकते हैं।

इसलिए यदि पाकिस्तान का मंत्री अक्टूबर- नवंबर का महीना लड़ाई का बता रहा है तो जाहिर है तो इसके पीछे तैयारियों-अंतरराष्ट्रीय हालातों, स्थितियों का हिसाब-किताब होगा। 27 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में इमरान खान कश्मीरियों को समर्थन देने के लिए निर्णायक लड़ाई जैसी बात भी कह सकते हैं। जम्मू-कश्मीर में पाबंदियों के दो महीने बाद अक्टूबर में ढिलाई हो तब की स्थिति या खुद ब खुद नियंत्रण रेखा पर सीमा उल्लंघन की वारदातों या सर्दियों से पहले आतंकियों की घुसपैठ के मौके, किसी बड़े आंतकी हमले आदि से पाकिस्तानी सेना ऐसा रोडमैप बना सकती है, जिससे सेनाएं आपस में परंपरागत जंग में भिड़ जाएं। हिसाब से अपने लिए, अपनी सेना के लिए यह चिंता की बात नहीं होनी चाहिए। भारत की तरफ से भी सीमा पर तैयारियां हो रही होगीं। चिंता का मुद्दा यदि कोई है तो वह चीन है। क्या चीन उसके साथ जंग में हिस्सेदार, मददगार बनेगा? और वह मदद किस प्रकृति की होगी?

हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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