सिर्फ धारणा के स्तर पर सुधार!

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केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आनन फानन में प्रेस कांफ्रेंस करके कुछ आर्थिक सुधारों की घोषणा की है। उससे पहले एक के बाद एक सरकार की आर्थिक नीतियों से जुड़े लोगों के बयान आए, जिसमें उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था मंदी का शिकार हो गई है। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास, नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य रथिन रॉय ने अलग अलग पहलुओं से आर्थिकी के संकट का जिक्र किया।

इनमें से राजीव कुमार का बयान उत्प्रेरक बना। उनके बयान के तुरंत बाद निर्मला सीतारमण ने प्रेस कांफ्रेंस की और कुल 32 बदलावों का ऐलान किया। सवाल है कि क्या उन्होंने जिन बदलाओं का ऐलान किया उससे अर्थव्यवस्था की सुस्त पड़ रही रफ्तार में तेजी आ जाएगी? क्या उन्होंने आर्थिक मंदी की आहट को गौर से सुना है, उसे स्वीकार किया है और उसे रोकने के गंभीर उपाय किए हैं?

इनका जवाब नकारात्मक होगा। अपनी पूरी प्रेस कांफ्रेंस में वित्त मंत्री ने माना ही नहीं कि देश में आर्थिक मंदी है। वे बार बार कहती रहीं कि दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले भारत में अब भी आर्थिक विकास की रफ्तार ज्यादा है। वे सुधार के उपाय भी बता रही थीं और यह भी जता रही थीं कि ऐसा किसी आर्थिक मंदी की वजह से नहीं किया जा रहा है। उन्होंने जोर देकर बताया कि अलग अलग उद्योग व कारोबार समूहों के लोगों ने इनकी मांग की थी इसलिए सरकार बदलाव कर रही है। यानी उन्होंने आधे अधूरे मन से और आधी अधूरी तैयारी के साथ सुधारों की घोषणा की।

तभी उनकी हर घोषणा को लेकर यह कहा गया कि इससे धारणा के स्तर पर सुधार होगा। जैसे वित्त मंत्री ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों और घरेलू निवेशकों के कर पर लगाए गए अधिभार को वापस लेने की घोषणा की तो कहा गया कि इससे शेयर बाजार में धारणा सुधरेगी। ध्यान रहे सरकार को शेयर बाजार की चिंता करने की जरूरत है क्योंकि पिछले तीन-चार महीने में शेयर बाजार में आठ फीसदी से ज्यादा की गिरावट हो चुकी है। निवेशकों के लाखों करोड़ रुपए डूब चुके हैं।

विदेशी निवेशकों के शेयर बाजार से 23 हजार करोड़ रुपए निकालने की खबर थी। सो, वित्त मंत्री की घोषणा से धारणा में सुधार होगा तो शेयर बाजार में तेजी लौटेगी। उम्मीद की जा रही है कि वित्त मंत्री की घोषणा के बाद पहले कामकाजी दिन यानी सोमवार को शेयर बाजार में तेजी रहेगी।

वित्त मंत्री ने सरकारी बैंकों में 70 हजार करोड़ रुपए डालने की घोषणा की। इससे बैंकिंग के शेयरों के बारे में धारणा सुधरेगी और उनके शेयरों में भी सोमवार को तेजी देखने को मिल सकती है। वित्त मंत्री स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित करने के लिए दिए जाने वाले फंड पर लगने वाले एंजल टैक्स के प्रावधान को भी वापस लेने का ऐलान किया। इसके अलावा उन्होंने कारपोरेट को भरोसा दिलाने वाला एक बड़ा ऐलान यह किया कि अब कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी यानी सीएसआर के उल्लंघन को अपराध नहीं माना जाएगा। इसी तरह उन्होंने आम कर दाताओं को बड़ी राहत देते हुए कहा कि एक अक्टूबर से उनके रिटर्न की जांच फेसलेश होगी यानी बेचेहरा होगी। मशीन से जांच होंगी और मशीन से ही नोटिस जारी किया जाएगा। ध्यान रहे कुछ दिन पहले देश के एक मशहूर कारोबारी और कैफे कॉफी डे के संस्थापक बीजी सिद्धार्थ ने खुदकुशी कर ली थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि एक बड़े कर अधिकारी ने उन्हें बहुत परेशान किया, जिसके बाद उनके पास और कोई रास्ता नहीं बचा था। उसके बाद से ही कर अधिकारियों के रवैए को लेकर सवाल उठ रहे थे। वित्त मंत्री ने रिटर्न की जांच और नोटिस जारी करने को बेचेहरा बनाने की घोषणा करके आम करदाताओं को बड़ी राहत देने का ऐलान किया है। इस तरह के और भी कई छोटे छोटे ऐलान किए गए हैं।

इन्हें अगर ध्यान से देखा जाए तो पता चलता है कि ये सारे उपाय सेंटिमेंट या धारणा के स्तर पर माहौल बदलने वाले हैं। देश की आर्थिक मंदी या अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती से निपटने का कोई ठोस उपाय इसमें नहीं है। सरकार की आर्थिक नीतियों से जुड़े नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने नकदी की तरलता का अभूतपूर्व संकट बताया तो वित्त मंत्री ने सरकारी बैंकों को 70 हजार करोड़ रुपए देने की घोषणा कर दी। पर इससे न तो तरलता का संकट दूर होने वाला है और बाजार में मांग लौटने वाली है। जब तक बाजार में मांग नहीं बढ़ेगी, तब तक विकास दर में तेजी नहीं लौटेगी। जिस दिन वित्त मंत्री ने सुधार के उपायों की घोषणा की उसी दिन एक अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी ने चालू वित्त वर्ष की विकास दर का अनुमान घटा कर 6.2 कर दिया। अगर यहीं हालात रहे तो छह फीसदी की विकास दर हासिल करना भी मुश्किल हो जाएगा।

असल में सरकार अभी तक यहीं तय नहीं कर पाई है कि मंदी है या नहीं और अगर है तो संरचनात्मक है या चक्रीय। अगर सरकार मंदी को स्वीकार करे और यह माने की इसे रोकने के लिए संरचनात्मक सुधारों की जरूरत है तभी वह इसे रोक पाएगी और इससे निकलने के उपाय कर पाएगी। सरकार की आर्थिक नीतियों से जुड़े कई जानकारों ने संरचनात्मक सुधारों की जरूरत बताई है। यह सही है कि मंदी की मार झेल रहे वाहन या दूसरे उद्योगों को सरकारी मदद देना कोई उपाय नहीं है पर उन्हें मंदी के दुष्चक्र से निकालना सरकार की भी जिम्मेदारी है। उन्हें उनके हाल पर नहीं छोड़ा जा सकता है। किसी भी सेक्टर को उसके हाल पर छोड़ना अर्थव्यवस्था के लिए घातक हो सकता है। सो, सरकार को तत्काल राजनीतिक नफा नुकसान की चिंता छोड़ कर संरचनात्मक सुधारों की दिशा में विचार करना चाहिए।

सुशांत कुमार
लेखक टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं…

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