सियासत नहीं, सहयोग का समय

0
237

एक आम समझ है कि संकट के समय सारे मतभेद किनारे रख दिये जाते हैं। दुनिया के तमाम मुल्क ऐसी ही नजीरें पेश कर रहे हैं। पर महामारी के समय में भी यहां कुछ नेता सियासी वजहों से चर्चा में रहते हैं। एक ऐसे ही वरिष्ठ नेता एवं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सर्वेसर्वो शरद पवार चर्चा में हैं। उन्होंने सवाल उठाया है कि आखिर दिल्ली में निजामुद्दीन मरकज में हुए तलीगी जमात के कार्यक्रम को अनुमति किसने दी? यह कार्यक्रम देश में कोरोना वायरस के बड़े केंद्र के रूप में उभरा है। यह बात उन्होंने फेसबुक पर लोगों के साथ लाइव संवाद में की। महाराष्ट्र सरकार ने तलीगी जमात के कार्यक्रम को अनुमति नहीं दी थी, यह सच है। तथ्य यह भी है कि दिल्ली में तलीगी जलसे के आयोजन को अनुमति दी गई। इस पर दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के अधीन पुलिस विभाग अपनी साझा जिमेदारी से बचते हुए गेंद एककृदूसरे के पाले में डालते दिखे हैं। सच यह भी है कि पूरे देश में तलीगी जलसे से लोगों के इधर- उधर लौटने के बाद ही देश के कई राज्यों में कोरोना पाजिटिव मरीजों की तादाद में भारी इजाफा देखने को मिला।

केरल, तमिलनाडू, आंध्र, तेलंगाना, महाराष्ट्र, अण्डमान निकोबार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और गुजरात ने कोरोना के कहर को साफ-साफ महसूस किया। अब तक चार हजार से ऊपर पाजिटिव मरीजों की तादाद पहुंच चुकी है। मरने वालों की संख्या सौ के पार जा चुकी है। यह जमात अगर गैर जिमेदार के रूप में उभरा है तो यह सच ही है। इसे झुठलाया नहीं जा सकता। यह नहीं कहा जाना चाहिए कि मौजूदा स्थिति के लिए तलीगी जमात के बहाने पूरी कौम को निशाना बनाया जा रहा है। यह बात मंझे नेता शरद पवार कहें तो यह कोरी सियासत नहीं तो क्या है? यह संवेदनशील समय है। अर्थव्यवस्था, वायरस के चलते सन्निपात की स्थिति में है। सरकार के लिए इस आपात मोर्चे पर लड़ाई भी कठिन है। ऐसे में विपक्ष को सहयोग के बजाय समस्या में इजाफा करने से बचना चाहिए। एक तो ऐसे ही तलीगी जमात में कोरोना मरीज डॉक्टरों-नर्सों के साथ सहयोग नहीं कर रहे, उलटा उनके साथ दुव्र्यवहार कर रहे हैं।

पता नहीं किस तरह की तालीम ऐसे लोगों को मिली है, अपने संगठन की तरफ से सार्वजनिक तौर पर दी गई हिदायत के बावजूद ऊल-जुलूस हरकत पर आमादा हैं। यूपी समेत कई राज्यों से इस तरह की शिकायतें आम हैं। इस मन: स्थिति में सियासी वजहों से स्थिति और बिगड़ सकती है। स्थिति इतनी संवेदनशील हो गई है कि इस वाकये पर चर्चा तल्ख हो जाये तो किसी शख्स की बेवजह जान भी जा सकती है। इस आलोक में सभी दलों के नेताओं से, चाहे वे सत्ता पक्ष से जुड़े हों या फिर विपक्ष से, उन्हें संयम दिखाने की जरूरत है। यह समय शिकायतों का भी नहीं है, सुझावों का जरूर है, इसीलिए संवाद के क्रम में 8 अप्रैल को प्रधानमंत्री विपक्ष के नेताओं से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए जुड़ेंगे। यही होना भी चाहिए। यह लड़ाई किसी सरकार या पार्टी व समाज की नहीं बल्कि सबकी है। मिल-जुलकर ही महामारी पर काबू पाया जा सकता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here