सावधान ! देश खतरे में है

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साफ हो चुका है कि नागरिक संशोधन विधेयक का विरोध उसके प्रावधानों के कारण नहीं, बल्कि लम्बे समय से मन में बन रही नकारात्मक ग्रंथि का परिणाम है। सरकार शाहीनबागियों को कितना भी समझाने का प्रयास करे, वे समझने को तैयार नहीं होंगे, क्योंकि उन्होंने अपनी मनोदशा ही ऐसी बना ली है कि वे राष्ट्रीयता के उच्च मानकों का विरोध करेंगे ही। जब तक वे स्वयं ही अपने व्यवहार को नहीं बदलेंगे, तब तक उनसे यह आशा नहीं की जा सकती, कि वे देश में शांति और सद्भावना के वाहक हो सकते हैं। वे यह जानते हैं कि देश का राष्ट्रीय समाज समवेत स्वर में उनके कृत्यों का विरोध करने की स्थिति में नहीं है। वे बहु़संख्यक समाज के जातीय विभाजन तथा राजनीतिक दायित्व भावना के अभाव का सही प्रकार समझ चुके हैं। जो विरोध करेगा भी, उसको आरएसएस वाला कहकर मौन करने का प्रयास करेंगे। विपक्ष राष्ट्रहितों की तिलांजलि देते हुए इस मानसिकता को प्रोत्साहित कर रहा है। कांग्रेस स्पष्ट कर चुकी है कि वह नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध करने वालों के साथ रहेगी।

इसी प्रकार वामपंथी दल भी उनका साथ दे रहे हैं। शाहीनबागी जिस प्रकार के नारे लगा रहे हैं, या तो वे वामपंथी तर्ज पर हैं, या फिर पाकिस्तान में लगने वाले नारों ने अनुप्रेरित हैं। यह भी इस बात का संकेत है कि प्रेरक बल कहीं और भी है। दिल्ली के शाहीन बाग में जिस पांच वृद्ध महिलाओं को प्रतिनिधि बना रखा है, उनको यह तक नहीं पता कि वे किसका और क्यों विरोध कर रही हैं। जब एक वृद्धा से एक टीवी पत्रकार ने प्रश्न किया कि यदि आप गृहमंत्री से मिली तो उनसे या कहोगी। इस पर उस वृद्धा का उत्तर था कि मैं कहूगी कि संविधान को हटाया जाए। इस उत्तर से ही पता चलता है कि इस विरोध के पीछे की मानसिकता क्या है। पता ही नहीं कि हम क्यों विरोध कर रहे हैं। जब देश में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाए कि राष्ट्रीय समाज का एक विशाल वर्ग केवल हंगामा करने के लिए संगठित होने लगे और राष्ट्रीय अस्मिता को अकारण चुनौती देने लगे तो देश की सुरक्षा भी संदिग्ध हो जाती है। कुछ समय के लिए यह माना जा सकता है कि नागरिकता संशोधन विधेयक के प्रावधान के प्रति भ्रम पैदा हो सकता है। इस समय वह नेट पर उपलब्ध है, उसको पढ़ा जा सकता है।

यदि स्वयं पढऩा नहीं चाहते तो सरकार की बात पर विश्वास करें। इससे यह निश्चित होता है कि नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर किसी प्रकार का कोई भ्रम नहीं है, सबको पता है कि इसमें किसी भी भारतीय नागरिक को किसी प्रकार की हानि नहीं होगी। लेकिन देश में एक ऐसे दबाव समूह को विकसित किए जाने की साजिश की जा रही है, जो व्यवस्था को इस प्रकार से प्रभावित कर सके कि विधि निर्माण की संसदीय तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया उन पर आश्रित हो जाए। नागरिकता संशोधन विधेयक तीन देशों के उत्पीडि़त अल्पसंख्यकों को मानवीय संरक्षण देने के लिए है, सर्व विदित है, यह मानवता का आग्रह भी है। क्या पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों में हो रहे अत्याचारों से समुदाय विशेष की भावनाएं आहत नहीं होती। हम कैसे संवदेनहीन युग में जी रहे हैं कि अत्याचारों के शिकार समुदाय को संरक्षित करने की पहल पर भी क्रूरता की हद तक विरोध करते हैं। जबकि विश्व के अनेक देश तथा मानवाधिकार संगठन यह कह चुके हैं कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर घोर अत्याचार होते हैं, इसका प्रमाण नित्य होने वाली घटनाएं हैं।

इसका अर्थ यह हुआ कि विरोध इस बात का है कि पीडि़तों की सहायता क्यों की जा रही है। क्या ना्रगरिकता संशोधन विधेयक के विरोधियों ने एक बार भी पाकिस्तान के अमानवीय व्यवहार का विरोध किया। पूरे देश में अव्यवस्था पैदा करने वाला समूह कभी पाकिस्तान दूतावास के सामने प्रदर्शन के लिए गया। क्या उसके धर्मगुरु ने सामूहिक रूप से यह प्रस्ताव पारित किया कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर जो अत्याचार हो रहे हैं, वे धर्म तथा मानवीय गरिमा के विपरीत हैं। ऐसा नहीं हुआ। बल्कि पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए जाने लगे, जिन्ना जैसी आजादी की कामना की जाने लगी। इससे यह संदेश देने का प्रयास किया जाने लगा कि पाकिस्तान वहां के अल्पसंख्यकों पर जो कुछ कर रहा है, वह सही है इसलिए ही जिन्ना वाली आजादी की कामना की जाती है, ताकि अमानवीय धर्मांधता को भारत में भी स्थापित किया जा सके। इस प्रकार की सोच और उससे उपजे नारे यह बता रहे हैं कि वर्तमान घटनाक्रम देश के अस्तित्व के लिए शुभ नहीं है। वारिस पठान जैसे नेता भी है जो खुलेआम गृह युद्ध करने जैसी धमकी देते हैं।

नागरिकता संशोधन विधेयक से कश्मीर का कोई संबंध नहीं। शाहीन बागों में कश्मीर की आजादी के नारे भी लग रहे हैं, अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का विरोध भी हो रहा है। कश्मीर की पूर्व स्थिति की मांग भी हो रही है। क्या शाहीनबागी यह चाहते हैं कि जिस प्रकार से पांच लाख हिंदुओं को घाटी से निकाल दिया गया था, उनके मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था, वह उचित था। जो पाकिस्तान से चार लाख शरणार्थी आए थे, 72 सालों तक उनको नागरिकता तक प्रदान नहीं की गई थी, वह ठीक था। अनुच्छेद 370 को हटाने से सर्वधर्म समभाव का वातावरण बना है, हिंसा नियंत्रित हुई है, विकास का एक नया दौर आरम्भ हुआ है। प्रश्न यह है कि क्या शाहीनबागी नहीं चाहते कि कश्मीर में हिंदुओं के साथ होने वाले अन्याय बंद हों, उनको भी उनका पैतृक घर मिल जाए। जिस प्रकार की भाषणाबाजी की जा रही है और नारे हो रहे हैं, वे तो यही ध्वनित करते हैं कि कश्मीर में सर्वधर्म समभाव के महान आदर्शों पर कुछ लोगों को विश्वास नहीं है। यही स्थिति पूरे देश में स्थापित करने का स्वप्न देने वाले भी कम नहीं है।

विरोध में हिंसात्मक नारे, वह भी देश की बहुसंख्यक अस्मिता के प्रति, खतरनाक संदेश देते हैं। हिंदुत्व की कब्र बनाने की बात करना, स्वास्तिक जैसे पवित्र आध्यात्मिक प्रतीक का अपमान करना, किस सोच का परिचायक है। देश में अनेक स्थानों पर शाहीनबाग बने हुए हैं। अब बच्चों से ही नारेबाजी कराई जा रही है, ऐसे नारे जो किसी भी सभ्य तथा लोकतांत्रिक राष्ट्र में उचित नहीं माने जा सकते। देश में अनेक भागों में ऐसा भी हुआ है, नागरिक संशोधन विधेयक के समर्थन में होने वाले प्रदर्शनों पर हमले भी किए गए। जब किसी को विरोध करने का अधिकार है तो समर्थन का क्यों नहीं। किसी भी राष्ट्र का भविष्य सामूहिक आस्था और विश्वास पर निर्भर करता है, साथ ही उस भाव को जीवित रखने के लिए किस प्रकार के राजनीतिक तथा सामाजिक प्रयास किए जाते हैं, यह भी महत्वपूर्ण है। स्वपंथ एकाधिकार के संघर्ष के रूप में किसी भी आंदोलन को नहीं होना चाहिए।

सबसे दुखद तथा खतरनाक पक्ष यह है कि नागरिकता संशोधन विधेयक सांविधानिक प्रक्रिया के तहत अस्तित्व में आया है, यदि इसमें कोई खामी है तो उसके लिए न्यायपालिका है। यह प्रकरण न्यायपालिका में भी विचाराधीन है, ऐसी स्थिति में राष्ट्रविरोधी वातावरण का निर्माण कौन सी चेतावनी देना चाहते हैं। क्या यह चिंता का विषय नहीं है कि नागरिक संशोधन विधेयक का विरोध करने के लिए धन की आपूर्ति करने वाले संगठन पीएफ आई के बैंक खातों की तार टेरर फंडिंग से जुड़े हुए थे। एटीएस तथा प्रवर्तन निदेशालय की जांच के निष्कर्ष चिंताजनक हैं। असल में, नागरिक संशोधन विधेयक का विरोध भारतीय संविधान तथा पंथनिरपेक्ष स्वरूप के प्रति अनास्था को भी प्रकट करता है। ऐसे में, विपक्ष को भी अपने व्यवहार का पुन: अवलोकन करना चाहिए, वह जो कर रहा है, देश की सुरक्षा के लिए सही नहीं है।

अशोक त्यागी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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