सरकार पैसा निकाले और बांटे

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अब जबकि भारत सरकार ने लॉकडाउन 19 दिन के लिए और बढ़ा दिया है और राष्ट्रीय स्तर पर किसी तरह की आर्थिक गतिविधियों की कम से कम अभी तुरंत मंजूरी नहीं दी है तो अब सरकार को निश्चित रूप से अपने लोगों की जान बचाते हुए उनके जहान की गंभीरता से चिंता करनी होगी। ध्यान रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग में इस जुमले का इस्तेमाल किया था कि सरकार को जान और जहान दोनों की चिंता करनी है। जान की चिंता तो ठीक है, उसके लिए सरकार गरीबों को राशन पहुंचाने और उनके खाते में कुछ पैसे डालने का काम कर रही है। धर्मादा में लगे लोग कमजोर व वंचित लोगों के लिए खाने का इंतजाम भी कर ही रहे हैं। सो, इस बात की संभावना कम है कि कोरोना वायरस की वजह से लोगों को खाना मिलना बंद हो जाए और लोग भूख से मरने लगें। अगर कहीं ऐसा होता है तो उसका कारण सिर्फ कोरोना नहीं होगा।

तभी अब सरकार को लोगों के जहान की चिंता करनी होगी। यानी इस बात की चिंता करनी होगी कि इस लॉकडाउन के बाद कैसे जीवन पटरी पर लौटेगा। यह सोचना होगा कि इस पीरियड में ऐसा या किया जाए, जिससे लोगों का इलाज हो, उनको खाना मिले और साथ ही आर्थिकी की गाड़ी भी पटरी पर रहे। इसका एक ही तरीका है कि सरकार कहीं से भी पैसा निकाले और उसे लोगों के बीच बांटे। लोगों के हाथ में पैसा पहुंचाना इस समय दो कारणों से जरूरी है। एक तो करोड़ों लोगों की नौकरियां गई हैं, कामकाज बंद हुए हैं, मजदूरी करने वाले बेकार बैठे हैं सो, उनके पास पैसा पहुंचेगा तो उनका जीवन बचाना आसान होगा। दूसरे, वे इस पैसे को वापस आर्थिकी में डालेंगे क्योंकि पैसा आएगा तो मांग बढ़ेगी और उससे आर्थिकी की गाड़ी को पटरी पर बनाए रखने या एक निश्चित समय के बाद पटरी पर लाने में आसानी होगी। सरकार को कोरोना महामारी की गंभीरता को समझने के साथ साथ इस बात को भी समझना और मानना होगा कि इसकी वजह से भारत की अर्थव्यवस्था के सामने बेहद गंभीर संकट खड़ा होना है।

कम से कम 15 फीसदी तक जीडीपी गिरने की हकीकत को ध्यान में रखते हुए सरकार को काम करना चाहिए। कई आर्थिक जानकार भारत की अर्थव्यवस्था को सात से नौ लाख करोड़ रुपए तक के नुकसान का आकलन कर रहे हैं। यह जीडीपी के अधिकतम छह फीसदी के बराबर होती है। पर यह उन जानकारों की सदिच्छा है। नुकसान असल में 20 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा या 15 फीसदी के बराबर हो सकता है। ध्यान रहे भारत में उपभोक्ता खर्च का आंकड़ा बुरी तरह से गिरा हुआ है। वाहन उद्योग, रिटेल सेटर, सर्विस सेटर, निर्माण सब कुछ में गिरावट है। भारत की जीडीपी में इन्हीं का सबसे बड़ा योगदान है। अकेले वाहन उद्योग की हिस्सेदारी साढ़े फीसदी के करीब है। अगर इस सेटर में मांग इसी तरह गिरी रही तो अभूतपूर्व संकट खड़ा होगा। ध्यान रहे अभी सरकार ने एक लाख 70 हजार करोड़ रुपए का पैकेज घोषित किया है और दूसरा पैकेज एक लाख करोड़ रुपए का होने की संभावना है। भारत को इसे दोगुना-तिगुना करना चाहिए।

क्योंकि इसमें से काफी पैसा तो ऐसा है, जो पहले से योजनाओं में आवंटित था। असल में सरकार को पैसा निकालने के लिए कुछ गंभीरता से अपने आसपास देखना होगा और साहस के साथ फैसला करना होगा तभी पैसा निकलेगा। जैसे भारत सरकार ने कई वस्तुओं पर सेस यानी उपकर आदि लगा कर पैसे इकट्ठा किए हैं वह सारा पैसा निकाल कर कोरोना प्रभावित देश के लोगों में बांटना चाहिए। भारत सरकार ने कुछ समय पहले ही भारतीय रिजर्व बैंक के आरक्षित कोष से एक लाख 76 हजार करोड़ रुपए लिए। ध्यान रहे आरबीआई का आरक्षित कोष देश की इमरजेंसी जरूरतों के लिए होता है। उसमें अब भी नौ लाख करोड़ रुपए से ज्यादा हैं और देश के सामने ऐसी इमरजेंसी फिर कब आएगी, जब इसका इस्तेमाल होगा। सरकार को उसमें से लाख-दो लाख करोड़ रुपए निकालने चाहिए। इसी तरह सरकार चाहे तो कुछ और साहसी फैसले कर सकती है।

तनमय कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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