कुशलकर्मी की आवश्यकता कहां नहीं है? चाहे वह घरेलू कामकाज के लिए हो या फिर दफ्तर के काम के लिए, कल-कारखानों के लिए हो या खेत-खलिहान के लिए। कारखानों को जिस तरह कच्चा माल और बिजलीपानी जैसी आधारभूत संरचना की जरूरत होती है, उसी तरह उसे कुशलकर्मी भी चाहिए होते हैं। हर सरकार मानव संसाधन का विकास कर देश को प्रगति एवं विकास के पथ पर बढ़ाने की मंशा रखती है। भारत का सौभाग्य है कि उसकी अधिसंख्य आबादी अभी युवा है। आंकड़े बताते हैं कि देश की 62 फीसदी से अधिक आबादी 15 से 59 आयु वर्ग की है। यही वह उम्र है ,जब व्यक्ति में काम करने की ऊर्जा होती है और वह रोजगार में लगा होता है। विश्व स्तर पर देखें तो यूरोपीय देशों से लेकर अमेरिका तक की अधिसंय आबादी उम्रदराज हो चुकी है। चीन का भी यही हाल है। ऐसे में दुनिया को यदि श्रमशील आबादी की जरूरत होगी तो उन्हें भारत की तरफ ही देखना पड़ेगा। दिक्कत यह है कि युवा शक्ति से परिपूर्ण होने के बावजूद भारत का अधिसंख्य श्रमबल कुशल नहीं है। जहां अमेरिका की लगभग आधी आबादी और जर्मनी की दो-तिहाई आबादी कुशलकर्मी है, वहीं भारत के कुल श्रमबल का 5 फीसदी भी कुशलकर्मी नहीं कहा जा सकता। चीन में कुशलकर्मियों का प्रतिशत अन्य देशों के मुकाबले कम होते हुए भी हमसे बहुत ऊपर 24 फीसदी पर है।
वर्तमान भारत की औसत आयु 29 वर्ष है। 86.9 करोड़ के श्रमबल के साथ पूरी दुनिया के श्रमबल का 28 फीसदी हिस्सा आज हमारे पास है। इसी को लक्ष्य कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को विश्व की कौशल राजधानी बनाने की बात कही थी। कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय का गठन कर उन्होंने अपने इस निश्चय पर मुहर भी लगा दी। यही नहीं, देश के एक करोड़ युवाओं को प्रशिक्षित करने के लक्ष्य के साथ उन्हें रोजगार योग्य बनाने के लिए अत्यंत महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना भी चलाई गई है। इस योजना के तहत देश भर में लगभग नौ हजार प्रशिक्षण केंद्र सक्रिय रहे, जिनमें सवा सात सौ के करीब प्रधानमंत्री कौशल केंद्र भी शामिल हैं। प्रधानमंत्री कौशल केंद्रों की स्थापना देश के हरेक जिले में अत्याधुनिक प्रशिक्षण केंद्र के तौर पर की गई है, जो उस जिले के दूसरे प्रशिक्षण केंद्रों के लिए मानक का काम कर सकें। देश भर में कौशल विकास केंद्रों का जाल बिछाने में लगभग 2500 प्रशिक्षण साझेदारों की भूमिका अहम रही है। यहां यह बता देना भी जरूरी होगा कि प्रशिक्षण केंद्रों की इस संख्या में वे प्रशिक्षण केंद्र शामिल नहीं हैं, जो सीधेसीधे प्रांतों के कौशल विकास मिशन से जुड़े हैं। यानी लगभग नौ हजार की यह संया उन्हीं केंद्रों की है जो केंद्र सरकार द्वारा संचालित कौशल विकास योजनाओं में योगदान कर रहे हैं।
इस योजना से देश भर के 40 लाख से अधिक युवा लाभान्वित हुए हैं, जिनमें से अठारह लाख से अधिक को कौशल प्रशिक्षण लेने के बाद रोजगार पाने में सफलता मिली है। प्रांतीय मिशनों तथा कौशल विकास की अन्य विभागीय योजनाओं में निश्चय ही और भी युवा लाभान्वित रहे होंगे। सवाल उठाया जा सकता है कि इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत इतने कम लोग प्रशिक्षित क्यों हुए या इतने कम लोगों को रोजगार क्यों मिल सका। इसका जवाब के लिए हमें खुद अपने को और अपने समाज को टटोलने की जरूरत है। सच यह है कि हम चौथी श्रेणी की सरकारी सेवा में भी दाखिल होना अपना सौभाग्य मानते हैं, जबकि कौशल पर आधारित मेहनत के काम से जी चुराते हैं। सामाजिक प्रतिष्ठा भी जितनी सरकारी सेवा को प्राप्त है, उतनी कौशल आधारित रोजगार को नहीं। इस मन: स्थिति को बदले बिना कौशल प्रशिक्षण और कौशल आधारित रोजगार को युवाओं की महत्वाकांक्षा से जोड़ पाना कठिन है। हालांकि इसका दूसरा पहलू भी है। यदि युवाओं को मेहनत के इस काम में समुचित पारिश्रमिक मिले तो शायद उनका आकर्षण इस ओर बढ़ेगा। अपने देश में रोजगार को शिक्षा के प्रमाण-पत्र से जोड़ कर देखा जाता रहा है। कॉलेज की डिग्री के लिए आपाधापी इसी वजह से है कि इसके आधार पर रोजगार सुलभ हो जाता है। यदि कौशल प्रशिक्षण के बाद रोजगार के अवसर मिलने की आशा होगी तो युवाओं का रुझान अपने आप कौशल प्रशिक्षण की ओर बढ़ेगा।
संभवत: पहली बार सरकार ने इस स्थिति को बदलने की कोशिश की है और कौशल प्रशिक्षण को वही महत्व दिया, जो शिक्षा को दिया जाता है। कौशल क्षेत्र की विडंबना रही है कि इसमें अब से पहले मानकीकरण की कोशिश नहीं हुई। पहली बार कौशल प्रशिक्षण में मानक स्थापित किए गए हैं और अब उनका प्रमाण-पत्र देखकर कोई भी यह समझ सकता है यह व्यक्ति कितना कुशल है। चाहे कोई व्यक्ति कश्मीर का हो या केरल का, असम का हो या गुजरात का, सभी को समान पाठ्यक्रम और एक जैसी परीक्षा से गुजरना पड़ता है। कुछ वैसे ही जैसे सीबीएससी से जुड़े स्कूलों में होता है। अब तक 2461 कार्य भूमिकाओं के लिए 13 हजार से अधिक मानक पाठ्यक्रम तैयार किए जा चुके हैं। सही मायने में यह उपलब्धि 6.5 लाख युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने से ज्यादा महत्वपूर्ण है। उससे भी बड़ी बात यह है कि ये सभी पाठ्यक्रम उद्योग-व्यवसाय जगत की जरूरतों को देखते हुए उनके साथ मिलकर तैयार किए गए हैं। इससे प्रशिक्षण को उद्योगसम्मत तथा प्रशिक्षार्थियों को नियोजनयोग्य बनाने में मदद मिली है और इसका लाभ आगामी वर्षो में स्पष्ट दिखाई देगा। हम कह सकते हैं कि कौशल विकास के लिए जिस संरचना की जरूरत है, उसका विकास हो चुका है। ऊर्जावान युवाओं की बड़ी संख्या भी मौजूद है। बस कौशल क्षेत्र को सामाजिक प्रतिष्ठा दिलाने की चुनौती है। जिस दिन इस मोर्चे पर हमने उपयुक्त तैयारी कर ली, भारत को विश्व की कौशल राजधानी बनने से कोई रोक नहीं सकेगा।
रंजन कुमार सिंह
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)