बात उन दिनों कि है जब भूदान आंदोलन के जनक बिनोवा भावे जगह-जगह जा कर जमींदारों से जमीन मांग रहे थे। एक गांव का जमींदार लगातार बिनोवा भावे जी से मिलना टालता रहा। किसी ने एक दिन उनसे पूछा आप भावे जी से क्यों नहीं मिलना चाहते तो इस पर जमींदार कहने लगा उनसे मिलूंगा तो वे जमीन मांगेंगे और मुझे देनी पड़ेगी।
जमींदार से उस व्यक्ति ने कहा अगर आप जमीन नहीं देना चाहते तो मत दिजिये। कह दिजियेगा नहीं दे सकते। इसमें कोई जोर-जबरदस्ती थोड़ी है। बिनोवा भावे जी केवल प्रेम से ही तो जमीन मांगते हैं। इस पर जमींदार ने कहा अरे वही तो उनकी सबसे बड़ी ताकत है? वह प्रेम से मांगते हैं और उनकी बात सही है इसलिये उनको टाला नहीं जा सकेगा।
यह बात जब बिनोवा भावे जी के कानों तक पहुंची तो उन्होंने कहा उनका जमीन मुझे मिल गयी। हमारा उद्देश्य भूदान के माध्यम से सामन्तवादी विचारों को ही तो समाप्त करना है।