सन् 1895 का 124 साल पुराना तिथि कैलेंडर 2019 का बिल्कुल एक जैसा है

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भारत में अंग्रेजी कैलेंडर

सन् 1895 का 124 साल पुराना तिथि कैलेंडर 2019 का बिल्कुल एक जैसा है

प्राकतिक घटनाओं से मनुष्य का आरंभ से ही गहरा रिश्ता रहा है। वो रात-दिन, चंद्रमा की घटती-बढ़ती कलाएं तथा ऋतुओं का गहरा रिश्ता है। इन तीन घटनाओं से काल की तीन प्राकृतिक कालावधियां दिन, माह और वर्ष सुनिश्चित होती है। इनमें दिन सबसे छोटी काल अवधि है। इसलिए इसे काल की बुनियादी इकाई माना जाता है। महीने तथा वर्ष की काल अवधि दिन की इकाई में ही व्यक्त की जाती है। प्राचीन काल से अब तक विभिन्न देशों में सैंकड़ों कैलेंडर प्रयुक्त हुए हैं।
हमारे देश में कृषि कार्यो के लिए ऋतुओं की जानकारी अति आवश्यक है। किसानों को वर्ष भर में होने वाले मौसम परिवर्तनों की जानकारी देने के लिए कैलेंडर की जरूरत पड़ती है। निश्चित तिथियों पर धार्मिक पर्व व उत्सव मनाने पड़ते हैं। ये कृषि कार्य से ही जुड़े होते हैं। परंतु इनके लिए और भी अधिक शुद्ध कैलेंडर पंचांग की आवश्यकता होती है। मगर एक व्यावहारिक कैलेंडर तैयार करना किसान के बस की बात नहीं है। क्योंकि इसके लिए लंबी अवधि तक लेखा-जोखा रखना आवश्यक होता है।

सिंधु लिपि अभी तक पढ़ी नहीं गई है। इसलिए सिंधु सभ्यता (2500-1800) ई.पू. के कैलेंडर के बारे में यकीन के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता। सिंधु सभ्यता मुख्यतः कृषि कार्य पर आधारित रही है। इसलिए बहुत संभव है कि वहाँ एक मिला जुला सौर-चंद्र कैलेंडर प्रचलित रहा हो।

दिनों को नक्षत्रों से व्यक्त किया जाता था, यानी रात्रि को चंद्र जिस नक्षत्र में दिखाई देता था उसी के नाम से वह दिन जाना जाता था। बाद में तिथियां भारतीय पंचांग की मूलाधार बन गई। वैदिक काल में वर्ष संभवतः 366 दिनों का माना गया था। चंद्र वर्ष 354 दिन, इसमें 12 दिन जोड़ कर 366 दिनों का सौर वर्ष बनाया गया होगा।

वराहमिहिर ने जिस सूर्य. सिद्धांत की जानकारी दी है वह आज उपलब्ध नहीं है। मगर उसका संशोधित संस्करण उपलब्ध है। वस्तुतः पिछले करीब एक हजार वर्षों में यही संशोधित सूर्य. सिद्धांत हमारे देश में सबसे अधिक मान्य रहा है और देश के अधिकांश पंचांग इसी के अनुसार बनते रहे हैं। चूंकि चंद्र सौर कैलेंडर में सौर वर्ष के मान का विशेष महत्व है, इसलिए जानना उपयोगी होगा कि सिद्धांत काल में वर्षमान क्या रहे हैं-

सन् 1895 का  कैलेंडर
सन् 1895 का कैलेंडर

वराहमिहिर का सूर्य सिद्धांत 365 दिन
वर्तमान संशोधित सूर्य सिद्धांत 365 दिन
वास्तविक सायन वर्ष 365 दिन

ऐतिहासिक घटनाओं के तिथि निर्धारण के लिए कैलेंडर में किसी एक संवत का आरंभ बिंदु निश्चित करना होता है। अतीत या वर्त्तमान के सभी कैलेंडरों की शुरुआत किसी न किसी घटना वास्तविक या काल्पनिक से ही मानी गई हैं। ऐसी अधिकांश घटनएं मिथक, इतिहास अथवा धर्मकथा से संबंधित होती है। हमारे देश में मौर्य और सातवाहन काल में शासन वषों का ही इस्तेमाल होता था। तिथि निर्धारण के लिए संवतों का प्रयोग कुषाण और शक शासकों के समय से होने लगा है। शक, मालव, गुप्त, हर्ष आदि कई संवतों का संबंध मूलतरू ऐतिहासिक घटनाओं से रहा है। कलियुग संवत, जिसका आरंभ 3102 ई.पू. से माना जाता है। हमारे ज्योतिषियों ने गणनाएं करके ईसा की आरंभिक सदियों में बनाया है भारत के अलग-अलग भागों में अलग-अलग सिद्धांतों के अनुसार बहुत से पंचांग बनते रहे हैं आज भी बनते हैं।

इन पंचांगों में कई तरह की त्रुटियाँ रही हैं। इसलिए डॉ. मेघनाद साहा 1893-1956 की अध्यक्षता में गठित विद्वानों की एक समिति ने एक संशोधित राष्ट्रीय पंचांग तैयार कर दिया, जो 22 मार्च 1957 से चैत्र 1879 शक से लागू हो गया। इस संशोधित राष्ट्रीय पंचांग के अनुसार एक वर्ष 365.2422 दिनों का होगा। इसलिए महीने ऋतुओं के अनुसार स्थिर रहेंगे।

राष्ट्रीय पंचांग का कुछ ही सरकारी क्षेत्रों में उपयोग होता है, रस्मी तौर पर। अब लौकिक जीवन में अधिकतर ग्रेगोरी कैलेंडर का ही इस्तेमाल होता है। इसाई अथवा ग्रेगोरी भले ही लगभग सार्वभौमिक बन गया हो, मगर व्यावहारिक तौर पर इसमें अनेक त्रुटियां हैं। महीने के दिन 28 से 31 तक बदलते हैं, चैथाई वर्ष में 9० से 92 दिन होते हैं और वर्ष के दो हिस्सों में 181 व 184 दिन होते हैं। महीनों में सप्ताह के दिन भी स्थिर नहीं रहते, महीने और वर्ष का आरंभ सप्ताह के किसी भी दिन से हो सकता है। इससे नागरिक और आर्थिक जीवन में बड़ी कठिनाइयां पैदा होती हैं। महीने में काम करने के दिनों की संख्या भी 24 से 27 तक बदलती रहती है। इससे सांख्यिकीय विश्लेषण और वित्तीय जमा खर्च तैयार करने में बड़ी दिक्कतें होती हैं। मौजूदा ग्रेगोरी कैलेंडर में सुधार अत्यावश्यक है।

वर्तमान में जो भारतीय अंग्रेजी तिथि कैलेंडर है 2019 का वह विगत सन् 1895 वही बिल्कुल है। ठीक 124 साल बाद फिर वही दिन, तिथि व समय वाला कैलेंडर पूरे विश्व में है जो एक अद्भुत वार्षिक कैलेंडर ही है।

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