संविधान और संशोधन

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आज कमरे में ही थे। हालांकि, बरामदा अपना ही है, फिर भी बरामदे में जाने के लिए परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं जैसे सरकार के पास बहुमत है लेकिन परिस्थितियां एनआरसी, सीएए, सीएबी और भी पता नहीं क्या-क्या उलट-पुलट एबीसीडी करने के अनुकूल नहीं हैं। कुछ तो अपने ड्राफ्ट बनानेवालों ने पता नहीं कैसा ड्राफ्ट बना दिया कि लिखा गांधी और पढ़ा गोडसे जा रहा है या लिखा गोडसे और पढ़ा गांधी जा रहा है। देश में चार ढंग से ड्राफ्ट बनानेवाले तक नहीं मिलते, अब क्या पतंग के मांझे और हथियारों की तरह ड्राफ्ट भी चीन और फ्रांस से मंगवाएं? हर ऐरा-गैरा कहता है मंत्री बना दो और अक्‍ल नहीं है धेले भर की। जब देखो श्री-मुख से गालियां झरती रहती हैं। हां, आज परिस्थतियां बरामदे में जाने के लिए अनुकूल नहीं हैं मतलब कोहरा। सोचा था सूर्य उत्तरायण होगा तो धूप खिलेगी, दिन लंबे होंगे लेकिन यहां तो सुबह सामान्य से भी गई गुजरी। न दूध आया और न ही अखबार। सो न चाय, न अखबार और न ही निंदा करने के लिए तोताराम। हालत बीजेपी जैसी हो रही है।

करें तो करें क्या? धारा 370, राम मंदिर और तीन तलाक के बाद कुछ कहने-करने को बचा नहीं जैसे आडवाणीजी के लिए राष्ट्रपति, भारत रत्न और प्रधानमंत्री एक्सप्रेस निकल जाने के बाद कुछ नहीं बचा। तभी तोताराम हाजिर। थिंक ऑफ डेविल ऐंड डेविल इज देयर।बोला- क्या हाल है? हमने कहा- खराब। बोला- क्यों? हमने कहा- कोई काम नहीं है। बोला- जिनकी नीयत खराब होती है, उन्हें कोई काम करना ही नहीं और वे ही ऐसा कहते हैं। काम क्यों नहीं? जा पीछे चूल्हा जलाकर पानी गरम कर ले। घर के आगे भारत स्वच्छ हो रहा है, थोड़ा-बहु कूड़ा-कचरा ही समेट दे। लोग तो गंगास्नान कर रहे हैं तो तू और कुछ नहीं, ढंग से नहाकर मैल ही उतार ले। पुण्य का महीना चल रहा है, दो नाम राम के ही ले ले। हमने कहा- तोताराम, जिनका यह लोक सुधरा हुआ है, उनका ही अगला लोक सुधरता है। लगता है हमें तो ऊपर भी मास्टरी ही मिलेगी और वह भी प्राइवेट स्कूल की जिसमें काम दोगुना और तन्‍ख्वाह आधी और पेंशन के नाम पर ‘देशभक्ति’ क्योंकि तब तक मोदीजी वहां भी निजीकरण कर चुके होंगे।

बोला- तो फिर अंताक्षरी खेल लें? हमने कहा- हर अंताक्षरी भारतीय राजनीति की तरह ‘नमो’ से चलकर ‘मोन’ पर समाप्त होती है। एक को उलट दो तो दूसरा बन जाता है। एक बोले नहीं, दूसरा चुप ना हो। बोला- तो फिर सबसे बढ़िया काम है कि संविधान में संशोधन कर लेते हैं। हमने कहा- यह कैसे संभव है? हम तो दो ही हैं। बोला- दो क्या, काबिल हो तो एक ही बहुत है। पुतिन अकेले ही बदल नहीं रहे सोवियत रूस का संविधान? कभी बीजेपीवाले भी तो 2 ही थे। 2 से सीधे 282 ही होते हैं। सही मायने में तो आज भी दो ही हैं। दो सहमत हुए तो बाकी को तो ‘ठीक है दयानिधान’ करना ही है। हमने कहा- तो बोल आज क्या संशोधन करें? बोला- आज इंडिया का नाम भारत कर देते हैं। हमने पूछा- कल क्या करेंगे? बोला- कल फिर पलटकर इंडिया कर देंगे। हमने कहा- ऐसा कब तक चलेगा? बोला- दो आरजू में कट गए तो इंतजार में और क्या, बस।

                                                              रमेश जोशी
( लेखक देश के वरिष्ठ व्यंग्यकार और ‘ विश्वा ‘ ( अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, अमरीका ) के संपादक है। ये उनके निजी विचार हैं। मोबाइल – 09460155700 Ð blog-jhoothasach.blogspot.com
(joshikavirai@gmail.com)

 

 

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