यह सिर्फ एक दिन की खबर होती है और उसके बाद इसे भूला दिया जाता है। कोई भी पार्टी घोषणापत्र में किए गए वादों को निभाने की जरूरत नहीं समझती है। कई बार यह बात उठी कि पार्टियों को घोषणापत्र के वादों पर अमल के लिए कानूनी रुप से बाध्य किया जाए। हालांकि इस दिशा में कोई पहल नहीं हुई तभी पार्टियां जी खोल कर वादे करती हैं और चुनाव के बाद उन्हें भूल जाती है।
आमतौर पर भारत में राजनीतिक पार्टियों के घोषणापत्र का महत्व रद्दी कागज के अलावा कुछ नहीं होता है। यह सिर्फ एक दिन की खबर होती है और उसके बाद इसे भूला दिया जाता है। कोई भी पार्टी घोषणापत्र में किए गए वादों को निभाने की जरूरत नहीं समझती है। कई बार यह बात उठी कि पार्टियों को घोषणापत्र के वादों पर अमल के लिए कानूनी रूप से बाध्य किया जाए। हांलाकि इस दिशा में कोई पहल नहीं हुई। तभी पार्टियां जी खोल कर वादे करती हैं और चुनाव के बाद भूल जाती है।
पिछले साल के अंत में राज्यों में हुए चुनाव तक तो हालात यह थे कि पार्टियों ने चुनाव खत्म होने के थोड़े दिन पहले औपचारिकता पूरी करने के लिए घोषणापत्र जारी किया। अब चुनाव आयोग ने घोषणापत्र जारी करने के लिए एक समयसीमा तय की है। पार्टियां प्रचार बंध होने के 48 घंटे तक ही घोषणापत्र जारी कर सकती है। तभी इस बार कांग्रेस पार्टी ने अपना घोषणापत्र जल्दी जारी किया है। अब भी ज्यादारत पार्टियों ने घोषणापत्र जारी करने की औपचारिकता पूरी नहीं की है। बहरहाल, इस बार कांग्रेस का घोषणापत्र बहुत खास है। पार्टी ने इसे तामझाम के साथ जारी किया और इस बात पर जोर दिया कि वह इसमें किए गए वादों को पूरा करेगी। तभी कांग्रेस के इस घोषणापत्र को संभाल कर रखने की जरूरत है कि अगर वह जुनाव जीत कर सकार बनाती है तो इसमें से कितने वादे पूरे करते है।
असल में कांग्रेस ने अपने चुनाव प्रचार की थीम बनाई है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सिर्फ वादे करते है, जबकि कांग्रेस पार्टी वादे पूरे करती है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जोर देकर कहा कि उन्होंने अपना एक भी वादा तोड़ा नहीं है। इसलिए भी कांग्रेस का घोषणापत्र खास हो जाता है। कांग्रेस के नेता दावा कर रहे हैं कि अगर केन्द्र में उनकी सरकार बनी तो देश के सभी गरीब परिवारों को छह हजार रुपए महीना यानी 72 हजार रुपय हर साल गिए जाएंगे। कांग्रेस ने गरीबी पर वार, 72 हजार का नारा भी गढ़ा है। इसी तरह कांग्रेस ने शिक्षा पर जीडीपी का छह फीसदी खर्च करने का वादा किया है और कहा है कि यह महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देगी। कांग्रेस ने वादा किया है कि वह किसानों के लिए अलग बजट बनाएंगी।
पहले रेलवे का अलग बजट होता था पर नरेन्द्र मोदी सरकार ने उसे आम बजट में मिला दिया। कांग्रेस ने किसान वोट को ध्यान में रख कर किसानों के लिए अलग से बजट का वादा किया है। इसमें से हर एक वादा गेमचेंजर हो सकता है। पर सवाल है कि लोग इस पर कैसे भरोसा करेंगे? भाजपा ने कहा है कि कांग्रेस को पता है कि वह सरकार में नहीं आने वाली है इसलिए उसने बढ़-चढ़ कर वादे कर दिए है। पर इस बात की परीक्षा अभी नहीं हो सकती है। चुनाव नतीजों का अंदाजा अभी नहीं लगाया जा सकता है। पर कांग्रेस को कुछ ऐसा करना होगा कि लोग उसकी बात पर यकीन करें। जैसा उसने कहा है कि यह सरकार आने पर महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देगी। उससे पहले लोगों को खास कर महिलाओं को यकीन दिलाने के लिए अगर कांग्रेस लोकसभा में 33 फीसदी महिलाओं को टिकट दे तो भरोसा बन सकता है।
आखिर ममता बनर्जी ने 41 फीसदी और नवीन पटनायक ने 33 फीसदी टिकट महिलाओं को दी है। अगर कांग्रेस इस लोकसभा चुनाव में महिलाओं को 33 फीसदी टिकट दे देती है तो उसके सारे वादों पर भरोसा बन जाएगा। कायदे से कांग्रेस को अपने शासन वाले राज्यों में कुछ चीजों पर अमल करके दिखाना चाहिए था और उसके बाद वादा करना चाहिए था। कांग्रेस भरोसा दिलाने के लिए यह कह सकती है कि केन्द्र में उसकी सरकार नहीं बनती है तो वह अपने शासन वाले राज्यों में इन वादों को लागू करेगी। अगर वह ऐसा नहीं करती है तो लोगों को यकीन दिलाना मुश्किल होगा। कांग्रेस पार्टी ने जो अच्छे और लोक लुभावन वादे किए हैं उन पर लोगों को भरोसा दिलाना आसान नहीं है। पर इसके साथ ही उसके साथ ही उसने कुछ ऐसे वादे कर दिए हैं, जिन्हें भाजपा के नात भुनाने का प्रयास करने लगे हैं।
सुशांत कुमार
लेखक पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं