संध के बारे में जानने से कैसा परहेज

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पिछले दिनों नागपुर विश्वविद्यालय में बीए, इतिहास (द्वीतीय वर्ष) के पाठ्यक्रम के तीसरे खंड में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) परिचयात्मक इतिहास और राष्ट्र निर्माण में उसकी भूमिका को शामिल किया। यह भारत का इतिहास (1885-1947) इकाई में एक अध्याय के रूप में जोड़ा गया है। इसमें बताया गया है कि आरएसएस की स्थापना कब हुई, उसकी विचारधारा और नीतियां क्या हैं, इसके शीर्ष पदाधिकारी कौन रहे हैं। इस कोर्स में इतना ही है। ग्रैजुएशन के कोर्स में पहले से ही राजा राममोहन राय पर, साम्यवादियों पर और विविध विचारधाराओं के बारे में अध्याय हैं। पहले भाग में कांग्रेस की स्थापना और जवाहरलाल नेहरू के उदय से संबंधित जानकारी है। दूसरा भाग सविनय अवज्ञा आंदोलन जैसे मुद्दों पर आधारित है और तीसरा भाग आरएसएस पर। चूंकि विविध विचारधाराओं में एक बड़ी विचारधारा यह भी है, इस दृष्टि से इसे शामिल किया गया है।

कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई ने इसे पाठ्यक्रम से बाहर करने की मांग की है। महाराष्ट्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक चव्हाण ने सवाल उठाया कि भारत की आजादी की लड़ाई में आरएसएस ने क्या किया है? उनका कहना है कि संघ भारत के संविधान के खिलाफ रहा है, इसी कारण तीन बार संघ को प्रतिबंधित कि या गया। कांग्रेस के मुताबिक यह संघ की विचारधारा को शिक्षा में शामिल क राने की साजिश है। ये सारे आरोप वही हैं जो कांग्रेस और वाम संगठन आजादी के समय से ही संघ परिवार पर लगाते रहते हैं। हालांकि इन आरोपों का जवाब बीजेपी के पास है। उसका कहना है कि कांग्रेस ने सत्ता का दुरुपयोग कर संघ पर प्रतिबंध लगाया था क्योंकि वह एक परिवार के सिवाय राष्ट्र निर्माण में किसी और के योगदान को स्वीकार नहीं कर सकती। हर चीज का श्रेय वह नेहरू – गांधी परिवार को ही देना चाहती है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का इतिहास 2003 से ही नागपुर विश्वविद्यालय में पोस्ट ग्रैजुएशन पाठ्यक्रम का हिस्सा है। इसमें एक चैप्टर आरएसएस के संस्थापक के बी हेडगेवार पर भी है। तब प्रदेश में बीजेपी की सरकार नहीं थी। बीए में इसे सिर्फ इंट्रोडक्ट्री यानी सामान्य जानकारी के तौर पर शामिल किया गया है ताकि छात्र पहले ही इससे वाकिफ हो सकें। विश्वविद्यालय के वीसी सिद्धार्थ काणे कहते हैं कि यह 1885-1947 की अवधि के इतिहास का हिस्सा है, 1947 के बाद के आरएसएस के बारे में नहीं है। वीसी का तर्क है कि बीए में कांग्रेस के इतिहास पर अध्याय है। कल कोई इसे भी हटाने की मांग कर सकता है तो क्या हम उसे हटा देंगे? इसमें दो बिंदु महत्वपूर्ण हैं। एक यह कि अगर एमए के पाठ्यक्रम में संघ है तो फिर बीए में शामिल करना गलत कैसे? वह भी अगर 16 सालों से शामिल है तो अब विरोध का आधार क्या है? उत्तर होगा- पूर्वाग्रह, दल, विचारधारा से बनी धारणाएं।

इसके अलावा विरोध का कोई कारण नहीं दिखता। आजादी की लड़ाई सिर्फ नेहरू -गांधी परिवार या कांग्रेस ने नहीं लड़ी थी। इस लड़ाई में हर व्यक्ति अपने तरीके से विदेशी शासन का विरोध कर रहा था। सभी विचारधाराओं के लोग ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे। स्वयं आरएसएस के संस्थापक हेडगेवार जी ने स्कूल में अंग्रेज निरीक्षक के सामने वंदेमातरम का जयघोष किया था जिसके बाद उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था। वे कोलकाता में पढ़ाई के समय क्रांतिकारी संगठन ‘अनुशीलन समिति’ से जुड़े। बाद में कांग्रेस के पदाधिकारी भी रहे। 1921 में सत्याग्रह आंदोलन में गिरफ्तारी भी दी। साल भर बाद जब रिहाई हुई तो उनकी स्वागत सभा को संबोधित करनेवालों में पंडित नेहरू और हकीम अजमल खां जैसे लोग शामिल थे। कांग्रेस के बंगाल अधिवेशन में तत्कालीन अध्यक्ष मोहम्मद अली ने वंदे मातरम गाए जाने का विरोध किया था और मंच छोडक़र चले गए थे। उसी समय से हेडगेवार जी का मन कांग्रेस से टूटने लगा था।

बाद में श्री अरविंद ने उन्हें देश के नौजवानों को जागृत करने के लिए काम करने को कहा। काफी सोच-विचार के बाद 1925 में विजयादशमी के दिन उन्होंने संघ की शुरू आत की। 1925 से 1940 तक स्वतंत्रता आंदोलन का सहयोग करते हुए डॉ. हेडगेवार ने स्वयंसेवक बनाने पर ध्यान दिया। 1940 तक आरएसएस का सांगठनिक आधार देश भर में काफी व्यापक हो चुका था, जिसे उनके बाद गुरुजी गोलवलकर ने वैचारिक सुदृढ़ता प्रदान की। संघ का विस्तार आजादी के पहले से ही कांग्रेस के कई नेताओं को खटक ने लगा था। आज कांग्रेस अगर संघ को पाठ्यक्र म में शामिल करने का विरोध कर रही है तो उसके पीछे कोई तर्क नहीं, बल्कि शुरू से चली आ रही विरोध की मानसिकता है। यह भी सही है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद जैसे तत्कालीन नेताओं के समर्थक भी कांग्रेस और नेहरू गांधी परिवार पर उनके योगदान को कम करके दिखाने का आरोप लगाते हैं।

कांग्रेस को असहमति का आदर करना चाहिए। उसे समझना चाहिए कि अगर वह किसी को अस्वीकार कर रही है तो इसका मतलब यह नहीं कि पूरा देश भी उसे नकार देगा। कांग्रेस ने संघ को लगातार अस्वीकार किया, जिसका नतीजा यह हुआ कि संघ की स्वीकार्यता बढ़ती गई। नरेंद्र मोदी के प्रति भी कांग्रेस लगातार अस्वीकार भाव प्रदर्शित करती रही लेक न उनकी स्वीकार्यता इतनी बढ़ी कि वह लगातार दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बन गए। इसी तरह उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को कांग्रेस और क्षेत्रीय दल एक जुट होकर अस्वीकार करने में लगे हैं। नतीजा वही है- उनकी भी स्वीकार्यता प्रदेश भर में बढ़ती जा रही है। संघ अगर राष्ट्र विरोधी, संविधान विरोधी होता देश के लोग कब का उसे खारिज कर चुके होते। अच्छा होगा कि अस्वीकार करने, खारिज करने के बजाय कांग्रेस संघ और उसके योगदान को समझे और एक सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाए।

मृत्युंजय कुमार
(लेखक यूपी के मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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