संतान की लंबी आयु के लए किया जाता है सकट चौथ का व्रत

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श्री गणेश
भगवान श्री गणेश

प्रत्येक चंद्र मास में दो चतुर्थी होती है। पूर्णिमा के बाद की चतुर्थी संकष्टी एवं अमानस्या के बाद आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। इस प्रकार 1 वर्ष में 12 संकष्टी चतुर्थी विशेष फलदाई है। इस वर्ष की यह विशेष चतुर्थी 24 जनवरी गुरुवार को है। चंद्र गेव का उदय रात्रि 9:10 पर होगा। चन्द्रोदय के पश्चात लाल या पीला वस्त्र धारण करके विघ्न विनाशक श्री गणेश जी का विधिपूर्वक पूजन करने और कम से कम 11 माला उक्त मंत्र का जप करने से मन वांछित फल की प्राप्त होती है।।

संकट चौथ 24 जनवरी को है। वक्रतुंडी चतुर्थी, माघी चौथ अथवा तिलकुटा चौथ भी इसी को कहते है। सूर्योदय से पूर्व स्नान के बाद उत्तर दिशा की ओर मुंह कर गणेश जी को नदी में 21 बार, तो घर में एक बार जल देना चाहिए। सकट चौथ संतान की लंबी आयु हेतु किया जाता है। यह व्रत स्त्रियां अपने संतान की दीर्घायु और सफलता के लिए करती है। इस व्रत के प्रभाव से संतान की दीर्घायु और सफलता के लिए करती है। इस व्रत के प्रभाव से संतान को रिद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है तथा उनके जीवन में आने वाली सभी विघ्न दुविधायें गणेजी दूर कर देते हैं।।

 श्री गणेश
भगवान श्री गणेश

इस दिन स्त्रियां पूरे दिन निर्जला व्रत रखती है और शाम को गणेश पूजन तथा चंद्रमा को अर्घ्य देने के पश्चात ही जल ग्रहण करती है। चतुर्थी के दिन मूली नहीं खानी चाहिए, धन-हानि की आशंका होती है। देर शाम चंद्रोदय के समय व्रती को तिल, गुड आदि का अर्घ्य… चंद्रमा, गणेश जी और चतुर्थी माता को अवश्य देना चाहिए। अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है। सूर्यास्त से पहले गणेश संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा-पूजा होती है। इस दिन तिल का प्रसाद खाना चाहिए। दूर्वा, शमी, बेलपत्र और गुड़ में बने तिल के लड्डू चढ़ाने चाहिए।

इस व्रत की कथा है-

सत्ययुग में महाराज हरिश्चंद्र के नरग में एक कुम्हार रहता था। एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया, पर आंवा पका ही नहीं। बार-बार बर्तन कच्चे रह गये। बार-बार नुकसान होते देख उसने एक तांत्रिक से पूछा, तो उसने कहा कि बलि से ही तुम्हारा काम बनेगा। तब उसने तपस्वी ऋषि शर्मा की मृत्यु से बेसहारा हुए उनके पुत्र की सकट चौथे के दिन बलि दे दी। उस लड़के की माता ने उस दिन गणेश पूजा की थी। बहुत तलाशने पर जब पुत्र नहीं मिला, तो मां ने भगवान गणेश से प्रार्थना की। सवेरे कुम्हार ने देखा कि वृद्धा का पुत्र तो जीवित था। डर कर कुम्हार ने राजा के समाने अपना पाप स्वीकार किया। राजा ने वृद्धा से इस चमत्कार का रहस्य पूछा तो उसने गणेश पूजा के विषय में बताया। तब राजा ने सकट चौथा की महिमा को मानते हुए पूरे नगर में गणेश पूजा करने का आदेश दिया। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकट हारणी माना जाता है।।

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