संघ से राजा की सहानुभूति के मायने

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सवाल कांग्रेस के सरकार में आने के साथ संघ के प्रति उनकी सोच में बदलाव, सहानुभूति, कर्तव्य और जिम्मेदारी को लेकर खड़े हो रहे… तो विरोधी इसमें कांग्रेस की इंटरनल पॉलिटिक्स, प्लानिंग बनाने में पीछे नहीं रहे…फैसला कमलनाथ सरकार का तो सीधा हस्तक्षेप दिग्विजय सिंह का जो खुद भोपाल सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार है…

संघ कार्यालय की सुरक्षा हटाए जाने और चंद घंटों के बाद वापस मुहैया कराए जाने के फैसले ने चुनाव के इस माहौल में सियासी नफा-नुकसान के आंकलन की बहस भी तेज हो गई… सवाल कांग्रेस के सरकार में आने के साथ संघ के प्रति उनकी सोच में बदलाव, सहानुभूति कर्तव्य और जिम्मेदारी को लेकर खड़े हो रहे… तो विरोधी इसमें कांग्रेस की इंटरनल पॉलिटिक्स, प्लानिंग बनाने में पीछे नहीं रहे…फैसला कमलनाथ सरकार का तो सीधा हस्तक्षेप दिग्विजय सिंह का जो खुद भोपाल सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार है… समझा जा सकता है कि यदि फैसले में पुनर्विचार किया गया तो फिर चिंता इस बात कि कही यह चूक चुनाव में बड़ी चुनौती ना बन जाए…

शायद इसिलए समय रहते गलती सुधार के साथ स्थिति सामान्य रखने की कोशिश कर संदेश दिया गया कि सुरक्षा को लेकर भेदवाभ या वैमनस्य का कोई सवाल खड़ा नहीं होता…सियासी रणनीति कहें या फिर गफलत और साजिश ऐसे में सवाल राजा को संघ से सहानुभूति या हमदर्दी और सायासी मजबूरी आखिर क्या मायने रखती है…सवाल पहले ही राष्ट्रवाद से जुड़े वंदे मारतम हो या फिर मीसाबंदी के साथ भावांतर पर यू-टर्न से लकर विधानसभा में आरोप पत्र और वचन पत्र से जुड़े प्रश्नो पर मंत्रियों के जवाब से यदि पुरानी कड़ियों को जोड़ा जाए तो क्या नौकरशाही कांग्रेस के एजेंड़े को नजरअंदाज तक अपने फैसलों से मुख्यमंत्री कमलनाथ और कांग्रेस की परेशानी जाने अनजाने ही सही अभी भी बड़ा रही है…

कांग्रेस उम्मीदवार के तौर दिग्विजय सिंह जब भाजपा ही संघ की किसी भी चुनौती से लड़ने का मन बना चुके है…तब संघ कार्यलय के बाहर तैनात सुरक्षाकर्मियों को हटाए जाने का फैसला उस वक्त सामने आया जब भाजपा के उम्मीदवार का ऐलान भी नहीं हुआ… सियासी माहौल में हिन्दुत्व और वोटों के ध्रुवीकरण को लेकर स्वयं दिग्विजय सिंह यह कह चुके कि यह सनातन हिन्दूवादी है और ऐसे में संघ का उनसे बैर समझ से परे है… सवाल संघ से लेकिन संदेश इसमें भोपाल और प्रदेश के मतदाताओं के लिए भी छुपा था…मतलब साफ एक हिन्दु होने के नाते उन्हें अपने समाज के समर्थन की दरकार है… शायद यही वजह है कि दिग्विजय सिंह को हिन्दू छवि में निखार लाने के लिए साथ कई मोर्चों पर खुद राजा, पुत्र जयवर्धन सिंह और समर्थक लगातार सक्रियता बनाए हुए है…

चाहे फिर वह आध्यात्मिक गुरु, साधु-संतों से लेकर शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद की शरण में जाना हो या फिर मंदिर मंदिर जाकर पूजा-पाठ…ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी है कि जिस दिग्विजय सिंह के करीब डेढ़ दशक बाद कोई चुनाव मैदान में जोने की रणनीति बनाना पहले ही शुरु कर दी उनकी भोपाल से लोकसभा उम्मीदवारी और चुनौतियों को शासन-प्रशासन सरकार खुद मुख्यमंत्री कमलनाथ क्या नजरअंदाज करेंगे…फैसले पर पुवर्विचार कोई ऐसी चूक माना जाए तो फिर इसके लिए आखिर जिम्मेदार कौन सिर्फ अधिकारी, गृह मंत्री या फिर मुख्यमंत्री कार्यालय क्या इसे समन्वय, सामंजस्य, संवादहीनता का नतीजा मान जाएगा… जो सियासी माहौल में सवाल मचा सकता है…।

राकेश अग्निहोत्री
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार है)

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