संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी 26 मई

0
139

रविवार को श्रीगणेश-अर्चना से मिलेगी सुख-समृद्धि, खुशहाली श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत से कटेंगे सारे कष्ट, होगा पापों का शमन चन्द्रोदय : रात्रि 9 बजकर 44 मिनट पर


सनातन हिन्दू धर्मशास्त्रों में भगवान श्रीगणेशजी की महिमा अनन्त है। भारतीय सनातन धर्म में समस्त शुभ कार्य को प्रारम्भ करने से पूर्व सर्वप्रथम मंगलमूर्ति श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना करने का विधान है। हिन्दू धर्मशास्त्रों में भगवान श्रीगणेशजी की महिमा अपरम्पार है। हिन्दू धर्मशास्त्रों में पंचदेवों में प्रथम पूज्य देव भगवान श्रीगणेशजी को सर्वोपरि माना जाता है। जीवन में खुशहाली एवं संकट निवारण के लिए संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत रखने की धार्मिक मान्यता है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि इस बार यह व्रत 26 मई, रविवार को रखा जाएगा। ज्येष्ठ कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि 26 मई, रविवार की सायं 6 बजकर 07 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 27 मई, सोमवार की सायं 4 बजकर 54 मिनट तक रहेगी। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र 26 मई, रविवार को प्रातः 10 बजकर 36 मिनट से 27 मई, सोमवार को प्रातः 10 बजकर 14 मिनट तक रहेगा। चन्द्रोदय रात्रि 9 बजकर 44 मिनट पर होगा। चन्द्र उदय होने के पश्चात् विधि-विधानपूर्वक चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भगवान श्रीगणेश जी की पूजा-अर्चना की जाएगी।

पूजा का विधान – प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन ने बताया कि प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो, स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। तत्पश्चात् अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना करने के उपरान्त दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए व्रत के दिन सार्यकाल पुनः स्नान करके श्रीगणेश जी की पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए। श्रीगणेशजी को दूर्वा एवं मोदक अति प्रिय है, अतएव दूर्वा की माला, ऋतुफल, मेवे एवं मोदक अवश्य अर्पित करने चाहिए।
श्रीगणेशजी ऐसे होंगे प्रसन्न- प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी के अनुसार श्रीगणेशजी की विशेष अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए श्रीगणेश स्तुति, श्रीगणेश सहस्रनाम, श्रीगणेश अथर्वशीर्ष, श्रीगणेश चालीसा एवं संकटनाशन श्रीगणेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए तथा श्रीगणेश जी से सम्बन्धित विविध मंत्रों का जप भी करना चाहिए।

ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि जिन व्यक्तियों की जन्मकुण्डली के अनुसार केतु ग्रह की महादशा, अन्तर्दशा और प्रत्यन्तरदशा में अनुकूल फल न मिल रहा हो या जीवन में संकटों का सामना करना पड़ रहा हो तो उन्हें संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के दिन व्रत उपवास रखकर सर्वविघ्न विनाशक प्रथम पूज्यदेव भगवान श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना करके पुण्यलाभ उठाना चाहिए। श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत महिला-पुरुष तथा विद्यार्थियों के लिए समानरूप से फलदायी है। श्रद्धा, आस्था, भक्तिभाव से की गई श्रीगणेशजी की आराधना से समस्त संकटों का निवारण तो होता ही है साथ ही जीवन में खुशहाली का मार्ग प्रशस्त होता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here