संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी

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संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी
संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी
अंगारकी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत से कटेंगे सारे कष्ट, होगा पापों का शमन
श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना, व्रत-उपवास से होंगे मनोरथ पूरे
चन्द्रोदय रात्रि 8 बजकर 12 मिनट पर
सनातन धर्म में पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीगणेशजी की महिमा अनन्त है। गौरीपुत्र श्रीगणेशजी की आराधना से सुख समृद्धि खुशहाली मिलती है, साथ ही जीवन के समस्त संकटों का निवारण भी होता है। हिन्दू धर्म शास्त्रों में प्रथम पूज्य देव भगवान श्रीगणेश जी को सर्वोपरी माना जाता है। हर शुभकार्यों के प्रारम्भ में श्री गणेशजी की पूजा-अर्चना सर्वप्रथम करने का विधान है। सुख-समृद्धि के लिए संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत रखने की धार्मिक मान्यता चली आ रही है। यह व्रत महिला एवं पुरुष के लिए सामान रूप से फलदायी है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि इस बार पौष कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि मंगलवार, 25 दिसम्बर को दिन में 01 बजकर 48 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन बुधवार, 26 दिसम्बर को दिन में 10 बजकर 47 मिनट तक रहेगी। चन्द्रोदय रात्रि 08 बजकर 12 मिनट पर होगा। फलस्वरूप संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत मंगलवार, 25 दिसम्बर को रखा जाएगा। मंगलवार के दिन पड़नेवाली चतुर्थी अंगारकी श्रीगणेश चतुर्थी के नाम से भी जानी जाती है। रात्रि में चन्द्र उदय होने के पश्चात् चन्द्रमा को अर्घ्य देकर उनकी पूजा-अर्चना की जाएगी।
संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी
संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी
ऐसे केरें श्रीगणेशजी को प्रशन्न : प्रख्यात ज्योतिषिद् श्री विमल जैन जी के अनुसार संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत के दिन प्रातःकाल ब्रह्मामुहूर्त में उठना चाहिए। प्रातःकाल ब्रह्मामुहूर्त में स्नान ध्यान के पश्चात् व्रतकर्ता को अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प. फल, गन्ध व कुश लेकर श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए व्रत के दिन सायंकाल पुनः स्नान करके श्रीगणेश जी की पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार से पूजा-अर्चना करनी चाहिए। श्रीगणेशजी को मोदक एवं दूर्वा अति प्रिय है, इसलिए दूर्वा की माला, ऋतुफल, मेवे एवं मोदक अवश्य अर्पित करने चाहिए।
किस पाठ से होती है मनोरथ की पूर्ति – प्रख्यात ज्योतिषवनिद् श्री विमल जैन जी ने मुताबिक श्रीगणेशजी विषेश अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए श्रीगणेश स्तुति, श्रीगणेश संकटनाशन, श्रीगणेश अथर्वशीर्ष, श्रीगणेश स्तोत्र, श्रीगणेश सहस्त्रनाम, श्रीगणेश चालीसा एवं श्रीगणेश जी से सम्बन्धित मंत्र-स्तोत्र आदि का पाठ जो भी संभव हो, अवश्य किया जाना चाहिए। ऐसी धार्मिक व पौराणिक मान्यता है कि श्रीगणेश अथर्वशीर्ष का प्रातःकाल पाठ करने से रात्रि के समस्त पापों का नाश होता है। संध्या समय पाठ करने पर दिन के सभी पापों का शमन होता है, यदि विधि-विधानपूर्वक एक हजार पाठ किए जाएं तो मनोरथ की पूर्ति होती है और धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। जिन व्यक्तियों की जन्मकुण्डली में ग्रहों की दिशा के अनुसार प्रतिकूल फल मिल रहा हो तो संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के दिन व्रत उपवास रखकर सभी विघ्नों के विनाशक प्रथम पूज्यदेव भगवान श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना करके लाभ उठाना चाहिए। जिन्हें जीवन में संकटों का समना करना पड़ रहा हो, उन्हें भी आज के दिन विधि-विधानपूर्वक श्रीगणेश जी पूजा-अर्चना करनी चाहिए। श्रीगणेश पुराण के अनुसार भक्तिभाव व पूर्ण आस्था के साथ किए गए संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत से जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं, जीवन में सुख-समृद्धि, खुशहाली एवं सौभाग्य की अभिवृद्धि होती है।

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