शैक्षणिक स्तर के दृष्टिगत बने नीति

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कोरोना संक्रमण का व्यापक प्रभाव जनजीवन पर पड़ा है। समाज के सभी घटक इससे प्रभावित हुए हैं। जनजीवन रुक सा गया है। विकास कार्यए सामाजिक उत्सव, धार्मिक उत्सव ठप पड़े हैं। सर्वाधिक प्रभाव शैक्षणिक कार्यों पर पड़ा है। संक्रमण के चलते स्कूल व कॉलेज बंद हैं। छात्र भी दुविधा की स्थिति में हैं। कक्षा एक से लेकर आठवें तक के छात्रों को कक्षोन्नति दे दी गयी है। मिड डे मील का अनाज व कन्वर्जन कास्ट छात्रों के खाते में स्थानांतरित कराया जा रहा है। येन केन प्रकारेण बोर्ड के परीक्षाओं के परिणाम घोषित कर दिये गये हैं। पर जैसेकृजैसे शैक्षणिक सत्र प्रारभ होने का समय आ रहा हैए छात्रों की दुविधा वैसेवैसे बढ़ रही है। कोरोना संक्रमण का प्रभाव भी विकराल रूप ले रहा है। इधर, विश्वविद्यालयों व कॉलेजों ने अपनी प्रवेश प्रक्रिया शुरू कर दी है। छात्र ऑनलाइन प्रवेश प्रक्रिया में भाग तो ले रहे हैं परंतु उनमें भी दुविधा है कि प्रवेश के दौरान औपचारिकता कैसे पूर्ण किया जाएगा! यदि जरा भी चूक हुई तो संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ सकता है। एकेटीयू ने तो ओएमआर सीट पर परीक्षा लेने का फैसला किया है। उधर नीट व जेईई की परीक्षाओं की भी छात्रों को चिंता है।

प्रदेश सरकार ने बीएड की प्रवेश परीक्षा कराने का फैसला तो लिया है। सरकार ने कहा कि संक्रमण के बचाव के सारे उपाय परीक्षा केन्द्र पर उपलध रहेंगे। सरकार की तैयारियों पर प्रश्नचिन्ह तो नहीं लगाया जा सकता परन्तु संभव है कि सारी सतर्कता के बावजूद सरकारी कार्यालय यहां तक कि चिकित्सालयों में संक्रमण फैल रहा है तो बड़ी संख्या में आये परीक्षार्थियों को कैसे मैनेज किया जाएगा। यदि दुर्घटनावश साइलेंट संक्रमित परीक्षार्थी से संक्रमण फैला तो बीमारी का दायर बढ़ सकता है। यदि किसी स्तर से लापरवाही हुई तो परीक्षार्थियों के लिए मुसीबत हो सकती है। केन्द्रीय विद्यालय ने विलब से सही अपनी प्रवेश प्रक्रिया शुरू कर दी है। वही केजीबी और नवोदय व़िद्यालय के आवासीय छात्रावास सूने पड़े हैं। प्राथमिक विद्यालय खुले तो हैं परन्तु केवल अध्यापक आ रहे हैं। कई अध्यापक कोरोना संक्रमण के शिकार भी हुए हैं। यहां तक कि बेसिक शिक्षा अधिकारी भी कोरोना पाजिटिव पाये गये हैं। उधर डिग्री स्तर के छात्रों की परीक्षाएं या तो नहीं हुई हैं या आंशिक रूप से बाकी हैं। जहां सेमेस्टर सिस्टम है वहां दूसरा सेमेस्टर आ गया है। छात्रों की दुविधा है कि उन्हें कक्षोन्नति कैसे मिलेगी! यदि परीक्षा देना पड़ा तो एक साथ ढेर सारा पाठ्यक्रम उन्हें तैयार करना पड़ेगा।

यदि पूर्व की परीक्षा के आधार पर अंक दिये गये तो उन छात्रों का नुकसान होगा जिनके अंक किसी कारणवश कम रह गये थे। अभी ऊहापोह की स्थिति है। नये सत्र के लिए शैक्षणिक बदलाव की तैयारी चल रही है, इसका क्या स्वरूप होगा और शैक्षणिक स्तर पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसका आंकलन करना जरूरी है। केवल शैक्षणिक सत्र का संचालन कर परीक्षोपरान्त डिग्री प्रदान कर देना उचित नहीं होगा। प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालयों में ऑनलाइन कक्षाएं संचालित हो रही हैं परन्तु समस्या यह है कि सभी के पास एन्ड्रायड फोन नहीं हैं नेटवर्क का खर्च अलग। साथ में नेटवर्क की समस्यां निजी क्षेत्र के विद्यालयों ने तो इसे पूरी तरह से प्रभावी कर दिया है परन्तु सरकारी क्षेत्र के विद्यालयों में समस्या आ रही है क्योंकि यहां गरीब छात्रों की तादाद काफी है जो कि ऑनलाइन शिक्षा का व्यय वहन नहीं कर सकते। इसके अलावा बच्चों पर ऑनलाइन रहने का स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव भी पड़ सकता है। प्रदेश सरकार ने इस संबंध में नियम भी बनाये हैं। सरकार को चाहिए कि जो भी नियम बनाये वो शैक्षणिक स्तर पर परीक्षार्थियों के स्वास्थ्य को देखते हुए बनाये। नियमों से किसी भी प्रकार की अहित नहीं होना चाहिए। ऐसी नीति हो जिसमें शैक्षणिक स्तर भी बना रहे और परीक्षार्थियों का भी अहित या बेजा दबाव न पड़े।

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