शुक्र प्रदोष व्रत : 3 फरवरी को

0
156

शुक्र प्रदोष व्रत से मिलती है आरोग्य, सौभाग्य एवं सुख-समृद्धि शिवजी की पूजा-अर्चना से मिलेगी अलौकिक शान्ति

भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में भगवान शिवजी तैंतीस कोटि देवी-देवताओं में देवाधिदेव महादेव की उपमा से अलंकृत हैं। इनकी कृपा से जीवन में भौतिक सुख, ऐश्वर्य, वैभव व सौभाग्य की प्राप्ति होती है। भगवान शिवजी की विशेष कृपा- प्राप्ति के लिए शिवपुराण में विविध व्रतों का उल्लेख है, जिसमें प्रदोष एवं शिवरात्रि व्रत प्रमुख हैं। प्रदोष व्रत से जीवन में सुख- समृद्धि खुशहाली मिलती है, साथ ही जीवन के समस्त दोषों का शमन भी होता है । प्रत्येक माह के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि जो प्रदोष बेला में मिलती हो, उसी दिन प्रदोष व्रत रखा जाता है। सूर्यास्त और रात्रि के सन्धिकाल को प्रदोषकाल माना जाता है। कलियुग में हर आस्थावान व धर्मावलम्बी अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए प्रदोष व्रत रखते हैं।

प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि इस बार 3 फरवरी, शुक्रवार को प्रदोष व्रत रखा जाएगा। माघ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 2 फरवरी, गुरुवार की सायं 4 बजकर 27 मिनट पर लगेगी जो कि 3 फरवरी, शुक्रवार की सायं 6 बजकर 58 मिनट तक रहेगी। प्रदोष बेला में त्रयोदशी तिथि का मान 3 फरवरी, शुक्रवार को होने के फलस्वरूप प्रदोष व्रत इसी दिन रखा जाएगा। प्रदोषकाल का समय सूर्यास्त से 48 मिनट या 72 मिनट तक माना गया है, इसी अवधि में भगवान् शिवजी की पूजा प्रारम्भ करने की परम्परा है। प्रदोष व्रत का विधान – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए।

तत्पश्चात् अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात् अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए सायंकाल पुनः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करके पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर प्रदोषकाल में भगवान शिवजी की विधि- विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए। भगवान शिवजी का अभिषेक करके उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि जो भी सुलभ हो, अर्पित करके श्रृंगार करना चाहिए। तत्पश्चात् धूप-दीप प्रज्वलित करके आरती करनी चाहिए। परम्परा के अनुसार कहीं-कहीं पर जगतजननी माता पार्वतीजी की भी पूजा-अर्चना करने का विधान है।

शिवभक्त अपने मस्तक पर भस्म व तिलक लगाकर शिवजी की पूजा करें तो पूजा शीघ्र फलित होती है । भगवान् शिवजी की महिमा में उनकी प्रसन्नता के लिए प्रदोष स्तोत्र का पाठ एवं स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोषव्रत कथा का पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए साथ ही व्रत से सम्बन्धित कथाएँ भी सुननी चाहिए। प्रदोष व्रत महिलाएँ एवं पुरुष दोनों के लिए समानरूप से फलदायी बतलाया गया है। व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए । अपनी दिनचर्या को नियमित संयमित रखते हुए व्रत को विधि-विधानपूर्वक करना लाभकारी रहता है । अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को दान करना चाहिए, साथ ही गरीबों व असहायों की सेवा व सहायता अवश्य करनी चाहिए।

श्रद्धा-भक्तिभाव के साथ किए गए प्रदोष व्रत से शिवजी की अपार अनुकम्पा मिलती है, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि, खुशहाली का मार्ग प्रशस्त होता है। वार (दिनों) के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत का अलग-अलग प्रभाव है। वारों (दिनों) के अनुसार सात प्रदोष व्रत बतलाए गए हैं, जैसे- रवि प्रदोष -आयु, आरोग्य, सुख- समृद्धि, सोम प्रदोष – शान्ति एवं रक्षा तथा आरोग्य व सौभाग्य में वृद्धि, भौम प्रदोष कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष -मनोकामना की पूर्ति, गुरु प्रदोष – विजय व लक्ष्य की प्राप्ति, शुक्र प्रदोष – आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना की पूर्ति, शनि प्रदोष पुत्र सुख की प्राप्ति । अभीष्ट की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा मनोकामना पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने की मान्यता है ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here